1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

"हिजाब पहनोगी, तो नौकरी नहीं मिलेगी"

२२ सितम्बर २०२०

सिंगापुर के एक सरकारी अस्पताल में हर दिन काम शुरू करने से पहले फराह को अपना हिजाब उतारना पड़ता है. उन्हें ऐसा करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता क्योंकि वह किशोरावस्था से ही हिजाब पहन रही हैं.

https://p.dw.com/p/3ipqQ
Frauen Gesichtsschleier Verschleierung Tudung Indonesien
सिंगापुर में सार्वजनिक जगहों पर हिजाब पहनने पर रोक नहीं है (फाइल फोटो)तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Khan

सिंगापुर की 40 लाख की आबादी में 15 प्रतिशत मुसलमान हैं और बहुत सारी जगहों पर मुस्लिम महिलाएं बिना रोकटोक हिजाब पहन सकती हैं. लेकिन कुछ पेशों में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं है. एक हालिया मामले के बाद सिंगापुर में कार्यस्थल पर विविधता और भेदभाव को लेकर बहस तेज हो गई है.

अब सिंगापुर में बहुत से युवा हिजाब के खिलाफ बैन को हटाने की मांग कर रहे हैं. फराह भी इनमें शामिल हैं. उन्होंने एक ऑनलाइन मुहिम शुरू की है और वे 50 हजार लोगों के हस्ताक्षर जुटा रहे हैं. दो साल पहले अपने जॉब इंटरव्यू को याद करते हुए फराह बताती हैं, "उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं हिजाब पहनूंगी तो मैं उनके यहां काम नहीं कर सकती." अब वह इसी अस्पताल में बतौर फिजियोथेरेपिस्ट काम करती हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें काम के दौरान अपना हिजाब छोड़ना पड़ा. 27 साल की फराह कहती हैं, "मैंने खुद को लाचार महसूस किया. यह ठीक नहीं है. हिजाब हमारी नौकरी के रास्ते में बाधा क्यों बनना चाहिए."

फराह जैसे और भी कई मामले हैं. पिछले महीने उस वक्त विवाद हो गया जब एक महिला से स्थानीय डिपार्टमेंटल स्टोर में प्रमोटर के तौर पर काम करने के लिए अपना हिजाब उतारने को कहा गया. यह स्थिति तब है जब देश की पहली महिला राष्ट्रपति हलीमा याकूब खुद हिजाब पहनती हैं. जब इस मामले पर उनकी राय पूछी गई तो उन्होंने कहा कि भेदभाव के लिए "कोई जगह नहीं" है.

डिपार्टमेंटल स्टोर ने अपनी पॉलिसी बदल दी. लेकिन बहुत से लोगों ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाया कि कई क्षेत्रों में अब भी कर्मचारियों को हिजाब पहनने से रोका जाता है जैसे कि पुलिसकर्मियों और नर्सों को.

ये भी पढ़िए: बुरका, हिजाब या नकाब: फर्क क्या है?

रोजी रोटी

सिंगापुर में हिजाब को लेकर बहस नई नहीं है. एक शहर में बसा यह आधुनिक देश अपने यहां रहने वाले अलग अलग संस्कृति के लोगों पर गर्व करता है. हालांकि देश की बहुसंख्यक आबादी चीनी मूल की है जिसमें ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म को मानने वाले हैं.

वर्ष 2013 में मुस्लिम मामलों के मंत्री याकूब इब्राहिम ने कहा कि जिन कुछ पेशों में यूनिफॉर्म पहननी पड़ती है, उनमें हिजाब पहनने से "बहुत समस्या होगी". इसके अगले साल प्रधानमंत्री ली ह्साइन लूंग ने कहा कि "जिस तरह का समाज हम सिंगापुर में बनाना चाहते हैं", हिजाब उससे जुड़ा है.

थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने इस बारे में सिंगापुर के पुलिस बल और स्वास्थ्य मंत्रालय से बार बार उनकी राय पूछी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

डिपार्टमेंटल स्टोर वाले मामले के संदर्भ में सिंगापुर की राष्ट्रपति ने कहा कि कार्यस्थल पर भेदभाव "परेशान करता है", क्योंकि यह किसी व्यक्ति से अपनी रोजी रोटी कमाने का अधिकार छीनता है.

राष्ट्रपति हलीमा ने फेसबुक पर लिखा, "लोगों का मूल्यांकन सिर्फ उनके गुणों और काम करने की क्षमता के आधार पर होना चाहिए, किसी और आधार पर नहीं." उनकी इस पोस्ट पर 500 से ज्यादा कमेंट आए. उन्होंने लिखा, "कोविड-19 के इस दौर में जब नौकरियों और रोजी रोटी को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं, तब भेदभाव की घटनाएं चिंता को और बढ़ाती हैं और लोगों को खतरा महसूस होता है."

ये भी पढ़िए: पर्दा: फैशन या मजबूरी

विभाजन

दुनिया भर में हिजाब पर मुसलमानों की राय बंटी हुई दिखती है. बहुत सी महिलाएं अपने सिर को ढंकना पसंद करती हैं जबकि अन्य के लिए यह महिलाओं के दमन का प्रतीक है. मध्य पूर्व के कई देशों में तो हिजाब ना पहनने पर जेल की सजा हो जाती है.

इंडोनेशिया के रुढ़िवादी आचेह प्रांत में महिलाओं को हिजाब ना पहनने पर कोड़ों से मारने की सजा दी जाती है. मलेशिया में भी इस्लामी अधिकारी हिजाब ना पहनने वाली महिलाओं पर कार्रवाई करते हैं.

लेकिन सिंगापुर में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मुस्लिम महिलाओं को ही तय करने दीजिए कि वे हिजाब पहनना चाहती हैं या नहीं. उनका कहना है कि इस तरह की पाबंदियां महिलाओं के लिए नौकरी के अवसरों में बाधा बनती हैं, खासकर ऐसे समय में जब महामारी के कारण सिंगापुर मंदी के दौर में चला गया और कंपनियां बहुत से लोगों को नौकरी से निकाल रही हैं.

फिल्जाह सुमारतोनो लेखिका हैं और सिंगापुर में मुस्लिम महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठाने के लिए "बियोंड द हिजाब" नाम से एक वेबसाइट चलाती हैं. वह कहती हैं, "महिला को अपने धर्म के मुताबिक चलने की पूरी आजादी होनी चाहिए. उन्हें अपनी धार्मिक परंपराओं और नौकरी में किसी एक को ना चुनना पड़े." उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "सिंगापुर में सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही इस समस्या का सामना कर रही हैं. यह मुस्लिम महिलाओं के प्रति बहुत ज्यादा भेदभाव वाली नीति है."

पहचान

वहीं कुछ लोगों का कहना है कि सबके लिए एक जैसी नीति होनी चाहिए, खास कर जब सिखों को पगड़ी पहनने की अनुमति है तो मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पर भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. कानून की पढ़ाई करने वाली नूर ने जून में अपनी एक ऑनलाइन पोस्ट में लिखा, "दोहरे मानदंड़ क्यों?" इस 22 वर्षीय छात्रा का कहना है कि उनकी मां और बहन दोनों को ही अपने काम पर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं है. उनकी मां एक नर्स हैं जबकि बहन एक सिक्योरिटी कंपनी में काम करती हैं.

फिल्जाह कहती हैं, "कुछ महिलाओं को यह मंजूर नहीं कि वे सिर्फ पैसे कमाने के लिए हिजाब उतारें जो उनकी पहचान का हिस्सा है." इससे वे नौकरी की रेस से ही बाहर हो जाती हैं. फिल्जाह के मुताबिक, "मुस्लिम महिलाओं के लिए ऐसे मुश्किल हालात पैदा करना तो उनके साथ नाइंसाफी होगी."

एके/आरपी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

हिजाब वाली बार्बी डॉल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी