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चीन की ना ने किया दुनिया को परेशान

२३ अप्रैल २०१९

पश्चिम के विकसित देशों से प्लास्टिक का कचरा लेने पर रोक लगा कर चीन ने लंबे समय से चले आ रहे रीसाइक्लिंग के इंतजाम को हिला दिया. हालांकि चीन के इस कदम से कुछ नए ठिकाने पैदा तो हुए लेकिन प्लास्टिक की समस्या हल नहीं हुई.

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Recycling von Plastikflaschen in China
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, चीन इन सबका इस्तेमाल किया हुआ प्लास्टिक कचरा लेता और उसे रीसाइकिल कर बढ़िया क्वालिटी का कच्चा माल तैयार करता, जिसे फिर उद्योग धंधों में लगाया जा सके. जब कई सालों तक ऐसा करने के बाद, सन 2018 की शुरुआत में अपने पर्यावरण और हवा को बचाने के लिए चीन ने विदेशी प्लास्टिक कचरा लेना बंद किया तो सवाल उठा कि इतना सारा प्लास्टिक कहां जाएगा.

ब्रसेल्स स्थित ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल रीसाइक्लिंग के महासचिव अर्नाड ब्रुनेट कहते हैं, "यह किसी भूकंप जैसा था. पूरे वैश्विक बाजार ने इसका बड़ा झटका महसूस किया." फिर हुआ यूं कि भारी मात्रा में प्लास्टिक को दक्षिणपूर्व के एक दूसरे ठिकाने पर भेजा जाने लगा, जहां कई चीनी रीसाइक्लिंग कारोबारी शिफ्ट हो गए थे. इन चीनी कारोबारियों के लिए पहली पसंद था मलेशिया, जहां चीनी भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यक रहते हैं. आंकड़े दिखाते हैं कि 2016 के मुकाबले 2018 में प्लास्टिक का आयात तीन गुना होकर 870,000 टन पर पहुंच गया.

राजधानी कुआलालम्पुर के पास ही एक छोटे से शहर जेनलारोम में देखते देखते बड़ी संख्या में प्लास्टिक प्रोसेसिंग प्लांट लग गए. दिन रात इनसे जहरीला धुआं निकलने लगा. हर ओर प्लास्टिक कचरे के बड़े बड़े ढेर दिखते, जो कि जर्मनी, ब्राजील और अमेरिका जैसे दूर दराज के देशों से आता. निवासियों को जल्द ही ऐसी अजीब सी गंध की आदत पड़ने लगी, जो घटिया क्वालिटी के प्लास्टिक को जलाने से आती है और पर्यावरण के लिए बहुत खराब होती है. स्थानीय निवासी पुआ ले पेंग बताती हैं, "जहरीला धुआं लोगों पर हमला कर रहा है. रात में जगाता है, इससे खूब खांसी आती है. मैं तो न सो सकती थी, न आराम कर सकती और हमेशा थका थका महसूस करती."

Infografik Verpackung Abfall Gesamt in der EU EN

पुआ और दूसरे निवासियों ने अपने स्तर पर इसकी जांच की तो उन्हें ऐसे 40 प्रोसेसिंग प्लांट्स का पता चला, जो बिना किसी वैध परमिट के गुपचुप तरीके से खोले गए थे. लगातार दबाव बनाने पर सरकार को इनके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी. कुल 33 फैक्ट्रियां बंद भी की गईं लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि उन्हें चुपचाप कहीं और शिफ्ट कर दिया गया. प्रशासन ने इस शहर में अवैध फैक्ट्रियों को बंद करना शुरु कर दिया. साथ ही प्लास्टिक आयात के परमिट पर अस्थाई देशव्यापी बैन लगा दिया. निवासियों का कहना है कि इन सबके बाद हवा कुछ तो साफ हुई है.

लेकिन एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अमेरिका और कई अन्य विकसित देश परेशान हैं कि प्लास्टिक का कचरा अब वे कहां भेजें. अपने ही देश में उसकी रीसाइक्लिंग करवाना उन्हें इतना महंगा पड़ता कि कहीं कहीं इन्हें लैंडफिल में भरवा दिया गया. ऑस्ट्रेलिया की औद्योगिक इकाई वेस्ट मैनेजमेंट एंड रिसोर्स रिकवरी एसोसिएशन ने अध्यक्ष गार्थ लैम्ब कहते हैं, "बारह महीने होने को हैं लेकिन हमें अब तक कोई उपाय नहीं मिला है." कुछ जगहों पर अब कचरे का 80 फीसदी तक स्थानीय स्तर पर ही प्रोसेस कर लिया जा रहा है और बाकी कचरा भारत को भेजा जा रहा है. स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देकर रीसाइक्लिंग की कीमत को लगभग चीन वाले स्तर पर लाने में कामयाबी मिली है.

चीन में आयात घट कर 2016 के 600,000 टन प्रति माह के स्तर से 2018 में 30,000 टन प्रति माह पर आ गया. मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम जैसे जिन देशों पर चीन के बैन का शुरुआती असर हुआ था, उन्होंने भी प्लास्टिक आयात को सीमित करने को लेकर नियम कानून बना दिए. लेकिन ग्रीनपीस की रिपोर्ट दिखाती है कि अब इंडोनेशिया और तुर्की जैसे देशों में बिना रोक टोक के कचरा पहुंचाया जा रहा है.

दुनिया में बनने वाली प्लास्टिक का महज नौ फीसदी ही रीसाइकिल होता है. जानकार कहते हैं कि प्लास्टिक की समस्या से निपटने का सिर्फ एक ही सही तरीका है कि कंपनियां कम से कम प्लास्टिक बनाएं और लोग कम से कम प्लास्टिक खरीदें और इस्तेमाल करें.

आरपी/एए (एएफपी)

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