जज छोड़ने लगें केस तो कैसे होगा इंसाफ?
४ अक्टूबर २०१९सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को खत्म होने वाली नवलखा की हिरासत से सुरक्षा की मियाद को 15 अक्टूबर तक बढ़ा दिया है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में सर्वोच्च अदालत में नवलखा के साथ जो हुआ वो काफी अजीब और असाधारण है.
महाराष्ट्र पुलिस ने नवलखा पर इल्जाम लगाया है कि उन्होंने 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद नामक संगठन की बैठक का आयोजन करने में मदद की थी. पुलिस का आरोप है कि उसके अगले दिन पुणे के ही समीप भीमा-कोरेगांव में जो हिंसा हुई थी उसके लिए ये बैठक ही जिम्मेदार है.
इस मामले में पुलिस ने अगस्त 2018 में नवलखा समेत 5 लोगों को हिरासत में लिया था. जून 2018 में पांच और एक्टिविस्ट पहले ही हिरासत में लिए जा चुके थे. पुलिस का आरोप है कि इन सभी लोगों का प्रतिबंधित माओवादियों से संबंध है. बाद में पुलिस ने ये भी दावा किया कि ये सभी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की एक साजिश बना रहे थे.
नवलखा को पहले नई दिल्ली में नजरबंद रखा गया था. महाराष्ट्र पुलिस जब उन्हें पुणे ले जाने के लिए वारंट ले कर आई तब नवलखा ने एक निचली अदालत द्वारा जारी किये गए उस वारंट को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी. कुछ हफ्तों की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने नवलखा के पक्ष में फैसला देते हुए वारंट को खारिज कर दिया और उन्हें बरी कर दिया। अदालत ने ये भी कहा की उन्हें हिरासत में लेते वक्त उचित कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी.
इसके बाद नवलखा ने अपने ऊपर लगे इल्जामों को बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और अपील की कि उनके खिलाफ लगे आरोपों को खारिज किया जाए. दलीलें सुनने के बाद अदालत ने आरोपों को खारिज करने से इंकार कर दिया लेकिन नवलखा को 4 अक्टूबर तक हिरासत से सुरक्षा दे दी. नवलखा ने फिर अपनी याचिका ले कर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया पर उसके बाद जो हुआ उसे लेकर भारत में कानून के जानकारों में काफी चिंता है.
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30 सितम्बर से लेकर 3 अक्टूबर तक, सर्वोच्च अदालत के एक के बाद एक पांच जजों ने नवलखा की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. और भी चौंकाने वाली बात ये थी कि इनमें से एक भी जज ने मामले से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया. अहम बात यह है कि सुनवाई से खुद को अलग करने वाले पहले जज थे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई.
सर्वोच्च अदालत में किस जज और किस बेंच को कौनसा मामला सौंपा जाएगा, इसका फैसला मुख्य न्यायाधीश ही करते हैं. तो सवाल ये उठता है कि जब न्यायमूर्ति गोगोई को खुद को मामले से अलग ही करना था तो उन्होंने सुनवाई अपनी बेंच को सौंपी ही क्यों?
नवलखा का केस ऐसे ही कई रहस्मयी सवालों के बीच में डूबा हुआ है. ऐसा नहीं कि सर्वोच्च अदालत में इस तरह से जजों का सुनवाई से खुद को अलग करना पहली बार हुआ है. लेकिन एक ही मामले से पांच जजों का हट जाना चिंता का विषय है. नालसार विधि विश्वविद्यालय के उप-कुलपति फैजान मुस्तफा ने डॉयचे वेले को बताया कि जज को किसी मामले से खुद को दो ही सूरतों में अलग करना चाहिए - या तो जब जज का याचिकाकर्ता या आरोपी से कोई संबंध हो या जब जज का मामले में हितों का कोई टकराव हो.
मुस्तफा ने ये भी कहा कि ऐसा करते समय जजों को खुद को अलग करने का कारण भी बताना चाहिए. सांसद और अधिवक्ता मजीद मेमन भी ऐसा ही मानते हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "आजकल देश की सबसे ऊंची अदालत के जजों के लिए बिना कोई कारण दिए अपने आप को मामलों से अलग कर लेना बहुत आसान हो गया है. और खास कर इस मामले में जिस तरह से एक के बाद एक पांच जजों ने अपने आप को अलग कर लिया, ये आश्चर्यजनक,असामान्य और असाधारण है". मेमन ने यह भी कहा कि इस तरह के अहम मामले में देश की सबसे ऊंची अदालत के पांच जजों ने बिना कोई कारण बताए, क्यों खुद को मामले से अलग कर लिया, इसके पीछे के कारण को समझना मुश्किल है.
भारत की न्याय प्रणाली में सिर्फ जजों को ही यह फैसला लेने का अधिकार है कि वो खुद को किसी सुनवाई से अलग करना चाहेंगे या नहीं. कई बार याचिकाकर्ता खुद अपील करते हैं कि किसी जज को सुनवाई से हट जाना चाहिए. संबंधित जज उस अपील को मानेगा या नहीं, ये उसके ऊपर है.
कुछ महीनों पहले पहले प्रशासनिक अधिकारी हर्ष मंदर, जो अब एक मानवाधिकार एक्टिविस्ट के रूप में जाने जाते हैं, ने न्यायमूर्ति गोगोई से ही अपील की थी कि वो असम राज्य से अवैध अप्रवासियों की पहचान और निर्वासन से संबंधित एक सुनवाई से खुद को अलग कर लें क्यूंकि वो खुद असम के रहने वाले हैं और उनके पिछली कुछ टिप्पणियां ऐसी हैं जिनमेअप्रवासियों के खिलाफ पूर्वाग्रह का आरोप लग सकता है. मंदर की अपील थी की वो यह नहीं कह रहे कि न्यायमूर्ति पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं, लेकिन न्याय के बारे में ये जानी मानी अवधारणा है कि न सिर्फ वो निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि उसे निष्पक्ष दिखना भी चाहिए.
न्यायमूर्ति गोगोई ने ये अपील खारिज करते हुए खुद को इस सुनवाई से अलग करने से मना कर दिया था और मंदर को कड़े शब्दों में ये भी कहा था, "हम किसी को भी सर्वोच्च अदालत को धौंस देने की इजाजत नहीं देंगे". उन्होंने ये भी कहा था, "जजों का मामलों से हटना इस संस्थान के लिए विनाशकारी होगा.
क्या पांच पांच जजों का एक के बाद एक गौतम नवलखा के केस की सुनवाई से हट जाना अदालत की साख के लिए हानिकारक नहीं है? इस पर फैजान मुस्तफा कहते हैं, "एक अदालत जो संवैधानिक रूप से नागरिक स्वंत्रतताओं की रक्षक है, उसके जजों का बिना कारण बताये खुद को मामलों से अलग कर लेने का लोगों की नागरिक स्वंत्रतताओं पर डरावना असर होगा."
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