दूसरे राज्यों से घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों का क्या होगा?
८ मई २०२०लॉकडाउन की वजह से अलग-अलग राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए राज्य सरकारों ने अपनी ओर से पहल की है तो तमाम हील-हवाले और राज्यों के अनुरोध पर रेल मंत्रालय ने भी इन मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं. एक ओर ट्रेन के किराये पर जमकर विवाद हो रहा है तो इन श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले ज्यादातर मजदूरों की शिकायत है कि उनसे न सिर्फ किराया वसूला गया बल्कि कई घंटों की यात्रा के दौरान वो भूखे-प्यासे रहे. वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में मजदूरों के लौटने से पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक जैसे कई राज्यों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं.
पंजाब और हरियाणा सरकार ने तो मजदूरों से वहीं रुकने और अपने घरों को न जाने का अनुरोध किया और किसी तरह की दिक्कत न होने का भरोसा दिया जबकि कर्नाटक सरकार इससे दो कदम आगे निकल गई और मजदूरों को भेजने के फैसले को ही पलट दिया. लेकिन चहुंओर इस फैसले पर उठते सवालों के बाद राज्य सरकार ने अपना फैसला फिर बदल दिया और ट्रेनों को जाने की अनुमति दे दी. विभिन्न राज्यों से यूपी और बिहार में लौटने वाले वे मजदूर हैं जो उन राज्यों में चौदह दिन की क्वारंटीन अवधि पूरी कर चुके हैं. हालांकि इन्हें अपने गृह जनपदों में घरों तक जाने के पहले टेस्टिंग से गुजरना होगा और ये घरों तक कब पहुंच पाएंगे, तय नहीं है. लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपनी नौकरी और छोटे-मोटे रोजगार छोड़कर आए ये मजदूर अब अपने घरों पर क्या करेंगे और जीवन निर्वाह कैसे करेंगे?
गृह राज्यों में काम देने का आश्वासन
उत्तर प्रदेश की सरकार ने बाहर से आने वाले श्रमिकों को राज्य के भीतर ही काम देने का आश्वासन दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को रोजगार की व्यापक कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने बताया कि सरकार प्रदेश के सभी 7 लाख प्रवासी मजदूरों को वापस लाना चाहती है. आने वाले प्रत्येक श्रमिक और कामगार का सरकार स्किल डाटा तैयार करा रही है और होम क्वारंटीन पूरा होते ही यूपी के अंदर ही उन्हें रोजगार दिलाने की तैयारी की जा रही है. एक जिला एक उत्पाद यानी ओडीओपी योजना के जरिये हस्तकला में प्रशिक्षित प्रवासी मजदूरों को गांवों में ही काम मिल जाएगा. लेकिन सवाल यह है कि ऐसे कितने मजदूर हैं जो ओडीओपी जैसी योजना में योगदान देने के लिए प्रशिक्षित हैं. ज्यादातर मजदूर अन्य राज्यों में या तो औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम कर रहे थे, घरेलू कार्यों में लगे थे या फिर प्राइवेट कंपनियों में नौकरी कर रहे थे.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों भी श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एक समिति गठित करने के निर्देश दिए थे. यह समिति बैंकों के जरिये ऋण मेले और रोजगार मेले भी आयोजित कराएगी ताकि लोगों को रोजगार के अधिक से अधिक अवसर मुहैया कराए जा सकें. समिति एमएसएमई के तहत विभिन्न उद्योगों में रोजगार के अवसर सृजित करने की संभावनाएं भी तलाशेगी. राज्य सरकार ने बाहर से लौटे मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने के लिए जरूरी जॉब कार्ड भी तुरंत बनवाए जाने के निर्देश दिए हैं ताकि गांवों में जल्द ही मनरेगा के तहत काम शुरू कर दिया जाए.
कैसे मिलेगा लोगों को काम?
यह कितना संभव हो पाएगा, इसे लेकर जानकारों को संशय है. पहली बात तो यह कि सरकार ने उन सात लाख प्रवासी श्रमिकों के हिसाब से कार्ययोजना तैयार करने को कहा है, जो उसकी नजर में अन्य राज्यों में काम छिन जाने के बाद आए हैं. जबकि श्रमिकों की यह संख्या इससे कहीं ज्यादा है. दस लाख से ज्यादा श्रमिक तो सिर्फ मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों से आए हैं. दरअसल, सरकार के पास सिर्फ वो आंकड़े हैं जो उसके साधनों से आए, जबकि अपने आप आने वालों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द कुमार सिंह कहते हैं कि इसके लिए पंचायतों को और अधिक मजबूत, सशक्त और आत्म निर्भर बनाना पड़ेगा. वे कहते हैं, "सरकार को यह डाटा बेस तैयार करना होगा कि किन क्षेत्रों में कौन से लोग खासतौर पर प्रशिक्षित हैं." बताया जा रहा है कि सरकार की ओर से गठित समिति इस बात की भी संभावनाएं तलाशेगी जिससे कुछ छोटे उद्योगों को ग्रामीण स्तर पर भी स्थापित किया जा सके और श्रमिकों को आस-पास ही काम मिल सके.
श्रमिक नेता राम अधार पांडेय बताते हैं, "उत्तर प्रदेश में पहले बड़ी संख्या में छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां थीं और निजी स्तर पर भी तमाम कारखाने थे. धीरे-धीरे ये सब बंद होते गए और लोगों को रोजी-रोटी के लिए महानगरों का रुख करना पड़ा. यदि लोगों को आजीविका के लिए अपने क्षेत्र में ही काम मिलने लगे तो भला घर-परिवार को छोड़कर बाहर कौन जाना चाहेगा.” ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव अमरजीत कौर कहती हैं, "लॉकडाउन की स्थिति में सबसे जरूरी तो यह है कि मजदूरों को वित्तीय सहायता दी जाए ताकि वह अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें. नेशनल रजिस्टर बने ताकि प्रवासी श्रमिकों का ब्यौरा दर्ज हो और उनका डाटा शेयर किया जाए और उनके हितों की रक्षा हो सके. होटल, सिनेमा, ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूरों के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएं ताकि इन क्षेत्रों में लगे श्रमिकों का इस्तेमाल भी हो सके और वो आर्थिक रूप से पंगु भी न होने पाएं.”
मजदूरों को वायदों पर भरोसा नहीं
राज्य सरकार ने लॉकडाउन के तीसरे चरण के साथ ही एक्सप्रेस वे और कुछ दूसरे निर्माण कार्यों को खोलकर श्रमिकों को समायोजित करने की कोशिश की है लेकिन इनमें उन्हीं श्रमिकों को काम मिला है जो पहले से यहीं काम कर रहे थे. राज्य सरकार अभी योजना बना रही है, उसके बाद उसे क्रियान्वित करना है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़े विश्वास के साथ कहा है कि वो दूसरे राज्यों से आए श्रमिकों को अपने ही राज्य में काम देंगे, लेकिन बाहर से आए श्रमिक अभी इस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा ‘मोना' राज्य सरकार की इन कोशिशों में गंभीरता नहीं देखती हैं. उनका कहना है कि लॉकडाउन लागू हुए डेढ़ महीने से ज्यादा बीत चुके हैं और सरकार अभी मजदूरों की समुचित वापसी का भी प्रबंध नहीं कर सकी है. वो कहती हैं, "मजदूर अभी भी अपने घर पहुंचने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं. ऐसे में सरकार उनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था करेगी, इसमें संदेह है. यूपी में लाखों की संख्या में बेरोजगार लोग पहले ही घूम रहे हैं, करीब 16 लाख श्रमिकों की वापसी के बाद उन्हें सरकार काम दे देगी, इस पर विश्वास करना मुश्किल है.”
बुधवार को पंजाब से बरेली आए कुछ श्रमिकों का कहना था कि अभी तो उन्हें चौदह दिन क्वारंटीन में ही रहना है, उसके बाद वो काम के बारे में सोचेंगे. वहीं दिल्ली की एक ऑटोमोबाइल कंपनी में काम करने वाले प्रतापगढ़ के निवासी रघुवीर दयाल बेहद गुस्से में कहते हैं, "काम मिले या न मिले, दूसरी जगहों पर मजदूरों की जो दुर्दशा हुई और जिस तरीके से उनका अपमान हुआ, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया, उसे देखते हुए लगता नहीं कि ये लोग लौटकर फिर कहीं काम-धाम के लिए जाएंगे. मैं तो अब जीवन में कभी दिल्ली नहीं जाऊंगा. हम अपने गांव में रहकर खेती करके जिंदगी चला लेंगे लेकिन बाहर नहीं जाएंगे.”
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