हाथरस मामले में गिरफ्तार पत्रकार एक महीने से जेल में
६ नवम्बर २०२०कप्पन को पांच अक्टूबर को मथुरा में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था जब वो हाथरस में सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के परिवार के सदस्यों से मिलने उनके गांव जा रहे थे. उनके साथ अतीक-उर-रहमान, मसूद अहमद और आलम नामक तीन एक्टिविस्टों को भी गिरफ्तार किया गया था और चारों के मोबाइल, लैपटॉप और कुछ साहित्य को जब्त कर लिया गया. पुलिस ने दावा किया था कि चारों पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक संस्था के सदस्य हैं.
केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्लयूजे) ने उसी समय कहा था कि सिद्दीक कप्पन पत्रकार हैं और संगठन की दिल्ली इकाई के सचिव भी हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले से पीएफआई के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने संस्था को राज्य में नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले साल शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों का जिम्मेदार ठहराया था और उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
लेकिन कप्पन के पीएफआई के सदस्य होने का सार्वजनिक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है. इसके बावजूद उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (दो समूहों के बीच शत्रुता फैलाना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करना), यूएपीए और आईटी अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं. बाद में उनके खिलाफ जाति के आधार पर दंगे भड़काने की साजिश और राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश के आरोप भी लगा दिए गए.
नहीं मिलने दिया जा रहा परिवार और वकील से
कप्पन तब से मथुरा जेल में बंद हैं और इस बीच उन्हें उनके परिवार के सदस्यों और उनके वकीलों से भी मिलने या बात नहीं करने दिया जा रहा है. केयूडब्लयूजे के वकील विल्स मैथ्यूज ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें उत्तर प्रदेश प्रशासन ने कप्पन से मिलने और फोन पर बात करने की अनुमति नहीं दी. मैथ्यूज का कहना है कि यह पूरी तरह से गैर कानूनी है क्योंकि हर आरोपी को अपने वकील से मिलने का पूरा अधिकार होता है.
कई दिनों तक कप्पन को उनकी 90 वर्षीया मां, उनकी पत्नी और उनके बच्चों से भी बात करने की अनुमति नहीं दी गई थी और उनकी कोई भी जानकारी उनके परिवार तक पहुंचाई भी नहीं गई थी. अभी तक उन्हें सिर्फ अपनी मां से बात करने दिया गया है और वो भी सिर्फ एक बार.
पिछले सप्ताह केयूडब्लयूजे ने कप्पन को न्याय दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सर्वोच्च अदालत से भी उन्हें तुरंत राहत नहीं मिली. छह नवंबर को अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई की पहली तारीख तय की. सुनवाई 16 नवंबर को होगी. हैबियस कोर्पस के तहत दायर किए गए आवेदन में यूनियन ने कप्पन की जमानत की याचिका पर तुरंत सुनवाई करने की अपील की है और साथ ही उन्हें नियमित रूप से अपने परिवार और अपने वकीलों से वीडियो कॉल करने की अनुमति देने की भी अपील की है.
क्या होता है छोटी जगहों के पत्रकारों के साथ
कप्पन के साथ जो हो रहा है वो यह दर्शाता है कि देश में छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों के साथ क्या क्या होता है. वरिष्ठ पत्रकार महताब आलम ने डीडब्ल्यू से कहा कि रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस ने जब गिरफ्तार किया तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उसकी निंदा करते हुए दो ट्वीट किए, लेकिन कैसी विडम्बना है कि उन्हीं के प्रदेश में दर्जनों पत्रकार या तो कप्पन की तरह जेल में हैं या उन पर हमले हो रहे हैं या उनके खिलाफ फर्जी मुकदमे दायर किए गए हैं.
वैसे गिरफ्तारी के दो दिन बाद गोस्वामी भी अभी तक जेल में हैं, लेकिन उनके और कप्पन के मामलों में कई बड़े अंतर हैं. एक तो कप्पन के खिलाफ लगाए गए आरोपों का कोई स्पष्ट आधार नहीं है जबकि गोस्वामी का नाम उस व्यक्ति की आखिरी चिट्ठी में है जिसकी आत्महत्या के मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया है. दूसरा अंतर यह कि गोस्वामी भले ही अभी तक जेल में हों, लेकिन उन्हें एक दिन के अंदर ही अदालत तक पहुंचने का मौका और फिर सुनवाई की तारीख भी मिल गई.
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