प्रवासी मजदूरों को नहीं मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत
८ अप्रैल २०२०कोविड-19 महामारी और उसे फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लगी तालाबंदी का प्रवासी श्रमिकों पर क्या असर हुआ है यह अब सामने आ चुका है. तालाबंदी के बाद भारी संख्या में शहरों से अपने अपने गांवों की तरफ पलायन करते हुए इन श्रमिकों ने लोगों को विभाजन के समय हुए प्रवासन की याद दिला दी. भूखे मरने से बचने की जद्दोजहद में कइयों ने पैदल चलते चलते अपनी जान गंवा दी.
पर वो इनके साथ होने वाली त्रासदी का सिर्फ पहला चरण था. रोज की कमाई पर किसी तरह गुजर बसर करने वाले इन श्रमिकों के लिए दूसरे चरण में चिंता है कि रोजगार के अभाव में उनका और उनके परिवार का गुजारा आखिर होगा कैसे? इसी प्रश्न को केंद्र में रखकर कुछ अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दे कि सभी सरकारें यह सुनिश्चित करें कि सभी प्रवासी श्रमिकों को तालाबंदी के दौरान वेतन मिलता रहे.
सरकारों ने इस बारे में तालाबंदी के शुरूआती दिनों में ही निर्देश जारी कर नियोक्ताओं से कहा था कि किसी भी श्रमिक का वेतन ना काटें. लेकिन इस याचिका में कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि इस से बेहतर यह होगा कि सरकारें खुद ही श्रमिकों को वेतन दें.
लेकिन कार्यकर्ताओं को निराश होना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है, यह कहते हुए कि सरकार जो भी कर रही है उससे बेहतर उपाय हमारे पास नहीं है. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने कार्यकर्ताओं से यह भी पूछा कि जब श्रमिकों के रहने और खाने-पीने की सरकारों ने मुफ्त व्यवस्था की है तो उन्हें वेतन की क्या जरूरत है? इस पर कार्यकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि भोजन शेल्टर घरों में दिया जा रहा है और सभी श्रमिक इन घरों में नहीं हैं.
इसी के साथ भूषण ने यह भी कहा कि प्रवासी श्रमिक वेतन का एक हिस्सा अपने परिवार को भी भेजते हैं ताकि उनका भी गुजारा हो सके. सरकार ने अपने जवाब में अदालत को बताया कि वह स्थिति पर नजर रख रही है और जरूरत के हिसाब से आवश्यक कदम उठाए जाएंगे. आगे की सुनवाई 13 अप्रैल को होगी. 14 अप्रैल को तालाबंदी की समय सीमा समाप्त हो जाएगी.
चल रहे हैं 22,000 से ज्यादा सरकारी शिविर
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को प्रवासी श्रमिकों के लिए की गई व्यवस्था का ब्यौरा दिया, जिसमें सामने आया कि कौन कौन से राज्यों में कितने श्रमिकों की देखभाल की जा रही है. देश के 578 जिलों में इस समय कुल 22,567 सरकारी राहत शिविर चल रहे हैं जिनमें छह लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. सरकारों द्वारा 7,848 भोजन शिविर भी चलाए जा रहे हैं, जिनमें 54 लाख लोगों को खाना खिलाया जा चुका है.
गैर सरकारी संगठन भी इस काम में लगे हुए हैं. उनके द्वारा 3909 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं जिनमें चार लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं. इसके अलावा 9,473 भोजन शिविर भी चलाए जा रहे हैं जिनमें 30 लाख से ज्यादा लोग खाना का चुके हैं. नियोक्ताओं द्वारा भी इस तरह के इंतजाम के कई मामले हैं. उनके द्वारा लगभग 15 लाख लोगों के रहने और खाने पीने का इंतजाम किया गया है.
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