"भारत के जरिए चीन को काबू करना चाहता है अमेरिका"
४ जनवरी २०११कारनेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की अध्यक्ष जेसिका मैथ्यूज का कहना है, "अमेरिका ने पहले ही उभरते हुए एक देश की सरपरस्ती करनी शुरू कर दी है जिसकी सीमा चीन से मिलती है. अमेरिका भारत के साथ खास रिश्ते कायम कर रहा है. भारत के साथ अमेरिका के बढ़ते रिश्तों की जिस सबसे बड़ी वजह के बारे में बात नहीं की जाती है वह है भारत के जरिए चीन को नियंत्रित करने की कोशिश."
इससे पहले न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन मध्य एशिया में चुपचाप अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. चीन के कई पड़ोसी उसके आक्रामक व्यवहार को लेकर चिंता भी जताते रहे हैं. मैथ्यूज का कहना है, "अमेरिका चीन को नियंत्रित करने की कोशिश करेगा या फिर उसके साथ सहयोग बढ़ाए, इस बात का दारोमदार बीजिंग पर ही है. एक साल पहले अमेरिका चीन से अपने संबंधों को बिल्कुल अलग ही नजर से देखता था. उसकी सोच सकारात्मक थी. लेकिन 2010 में दुनिया को चीन की कई ऐसी बातें दिखीं जिससे सोच में पूरी तरह बदलाव की जरूरत महसूस की गई. दक्षिणी चीनी सागर में चीन की हठधर्मिता और पूर्वी चीनी सागर की विवादित जलसीमा में जापान का चीनी कप्तान को गिरफ्तार किए जाने के बाद चीन का आक्रामक व्यवहार इसकी खास वजह रहा."
मैथ्यूज का कहना है कि अन्य विश्व मुद्दे भी चीन के प्रति सोच में बदलाव की वजह बन रहे हैं. वह कहती हैं, "सबसे महत्वपूर्ण है कि चीन उत्तर कोरिया के आक्रामक व्यवहार से निपटने को लेकर कोई कदम उठाने को तैयार नहीं है. यह बात उस वक्त भी साफ हो गई जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के एक पोत को डुबो दिया. हाल में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के एक द्वीप पर गोलाबारी भी की. लेकिन चीन ने दोनों ही मामलों में अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभाया."
मैथ्यूज जैसे अमेरिकी विशेषज्ञों की टिप्पणियों के बावजूद अमेरिका और भारत बराबर इस बात से इनकार करते हैं कि उनके मजबूत होते रिश्तों का मकसद चीन को नियंत्रित करना है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, दोनों का कहना है कि दुनिया में चीन और भारत के एक साथ उभरने के लिए पर्याप्त जगह मौजूद है.
जल्द ही चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ अमेरिका जाने वाले हैं. दो महीने भी नहीं हुए जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत का दौरा किया. पिछले महीने ही चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भी भारत गए और दोनों देशों के बीच कई बड़े समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एन रंजन