समुद्र में फंसे रोहिंग्याओं को विवादित द्वीप पर भेजा गया
४ मई २०२०बांग्लादेश सरकार ने एक आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि 29 रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को भासन चार द्वीप पर भेज दिया गया है. बांग्लादेश तटरक्षक दल के एक जहाज ने एक नाव पर सवार करीब 500 रोहिंग्याओं को बचाया था. ये सभी मलेशिया जाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मलेशिया ने कोरोना वायरस के चलते अपनी जलसीमा पर पेट्रोलिंग सख्त कर दी जिसकी वजह से ये वहां प्रवेश नहीं कर सके. करीब 58 दिन समुद्र में भटकने के बाद बांग्लादेश के तटरक्षक दल ने इन्हें बचाया. इस नाव पर सवार 28 लोगों की मौत हो गई जिन्हें जिंदा लोगों ने समुद्र में फेंक दिया.
बांग्लादेश शरणार्थी सहायता आयोग के अध्यक्ष महबूब आलम तालुकदार ने बताया," द्वीप पर भेजे गए इन शरणार्थियों में 15 महिलाएं और 6 बच्चे हैं. ये सभी कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविर में जाना चाहते थे. वे अभी नौसेना की देखरेख में रहेंगे जब तक आयोग आधिकारिक रूप से इनकी पूरी जिम्मेदारी नहीं ले लेता है." कॉक्स बाजार में बांग्लादेश का सबसे बड़ा रोहिंग्या शरणार्थी शिविर है जिसमें करीब 10 लाख लोग रहते हैं. इसकी देखरेख का जिम्मा बांग्लादेश शरणार्थी सहायता आयोग के पास ही है. कई मानवाधिकार समूहों का कहना है कि म्यांमार में रोहिंग्याओं की बढ़ रही प्रताड़ना के चलते इन्हें अपना देश छोड़कर भागना पड़ रहा है. इसके चलते ये समुद्र में फंस रहे हैं और अपनी जान तक गंवा रहे हैं.
क्या ये द्वीप सुरक्षित है?
बांग्लादेश सरकार ने 2015 में इस द्वीपर रोहिंग्या शरमार्थियों को बसाने का फैसला किया था. भासन चार द्वीप बांग्लादेश की मुख्यभूमि से दूर है. ये एक बाढ़ प्रभावित द्वीप है. समुद्र के पानी की वजह से यहां अक्सर बाढ़ आती रहती है. बांग्लादेश की इस योजना की संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने निंदा की थी. इस द्वीप को यूएन ने पहले इंसानों के रहने के लिए अनुपयोगी घोषित किया था. ये द्वीप समुद्र में से 20 साल पहले ही निकला है. इस दलदली द्वीप पर कोई रहता नहीं था, लेकिन बांग्लादेश ने इस द्वीप पर करीब एक लाख रोहिंग्याओं को बसाने की योजना बनाई है.
बांग्लादेश ने इस द्वीप पर लोगों के रहने के लिए मकान भी बनाया है. 29 लोगों का यह समूह इस द्वीप पर रहने वाले लोगों का पहला समूह बनेगा. इन लोगों के भासन चार पर पहुंचने के बाद खाने के साथ डॉक्टर और पुलिस की टीम भी द्वीप पर पहुंची है. म्यांमार में दशकों से रोहिंग्याओं के साथ हिंसा की घटनाएं सामने आती रही हैं. 2017 में बौद्ध बहुल म्यांमार में सेना द्वारा रोहिंग्याओं के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद बांग्लादेश में बड़ी संख्या में रोहिंग्या आने लगे. म्यांमार हमेशा से सेना कार्रवाई को उचित ठहराता आया है. उसका कहना है कि सेना ने सिर्फ जिहादी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की जो देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहे थे. म्यांमार ने रोहिंग्याओं से नागरिकता भी छीन ली जिससे वो स्टेटलैस हो गए.
भारत में भी हैं रोहिंग्या शरणार्थी
दुनिया में फिलहाल सबसे ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में हैं. इनकी संख्या करीब 13 लाख है. पाकिस्तान में करीब साढ़े तीन लाख, सऊदी अरब में 1 लाख 90 हजार, मलेशिया में करीब डेढ़ लाख, यूएई में 50 हजार, भारत में करीब 40 हजार, अमेरिका में करीब 12 हजार, थाईलैंड में करीब 5 हजार और इंडोनेशिया में करीब 1 हजार रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं. भारत में दिल्ली में रोहिंग्याओं का एक बड़ा कैंप है. अक्सर मीडिया रिपोर्ट्स के दौरान होने वाली बातचीत में रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार नहीं जाने की बात कहते हैं.
म्यांमार की जानी मानी लोकतांत्रिक नेता आंग सान सू ची से रोहिंग्या संकट के समाधान की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन इस विवाद में उन्होंने भी सेना का समर्थन ही किया है. रोहिंग्या संकट में सेना की भूमिका पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई भी हुई है. चीन की तरह भारत भी रोहिंग्या विवाद में म्यांमार सरकार का समर्थन करता नजर आया है. उसने भारत में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने की बात की है और रखाइन प्रांत में घर बनाने में भी मदद की है ताकि वापस जाने वाले शरणार्थी वहीं रह सकें.
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