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मिसाइल डिफेंस की सफलता से और बढ़ेगी हथियारों की होड़

३ मई २०२४

इस्राएल, लाल सागर और यूक्रेन की जटिल परिस्थितियों में बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस की सफलता दुनिया भर की सेनाओं में इस महंगे तंत्र की मांग बढ़ा देगी. इससे मिसाइल जैसे हथियारों की रेस भी तेज होने का अंदेशा है.

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पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम
हाल के वर्षों में मिसाइल डिफेंस सिस्टम की कई सफलताएं दुनिया को दिखाई पड़ी हैंतस्वीर: Johan Nilsson/TT/IMAGO

अमेरिकी और इस्राएली अधिकारियों के मुताबिक, बीते महीने 13 अप्रैल को ईरान ने इंटरमीडिएट रेंज की 120 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थीं. अमेरिका के एसएम-3 और इस्राएली एरो ने इनमें से लगभग सभी मिसाइलों को बीच में ही रोक कर ध्वस्त कर दिया. ड्रोन और दूसरी छोटी मिसाइलों को आयरन डोम सिस्टम के भरोसे पर छोड़ दिया गया.

इससे पहले के कुछ महीनों में अमेरिका के विध्वंसक जहाजों से छोड़े गए इंटरसेप्टर मिसाइलों ने हूथी विद्रोहियों के एंटीशिप बैलिस्टिक मिसाइलों को रोक दिया. उधर यूक्रेन में अमेरिका से बन कर आई एमआईएम-104 पैट्रियट बैट्रियों ने रूस के उन्नत इसकंदर और खिंजाल मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया.

साझा एयर डिफेंस सिस्टम के करीब आ रहा है यूरोप

इन सब घटनाओं को देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में कई देशों की सेनाएं बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टमों में निवेश करना चाहेंगी. यह स्थिति इन सिस्टमों को बनाने वाली लॉकहीड मार्टिन और रेथियॉन जैसी कंपनियों के लिए काफी मुनाफे का सौदा साबित हो सकती हैं. 

ईरान से दागे गए मिसाइलों और ड्रोन को बेकार करता आयरन डोम
ईरान से दागे गए ज्यादातर मिसाइलों को इस्राएल के मिसाइल डिफेंस ने बेकार कर दियातस्वीर: picture alliance/dpa/XinHua

अमेरिकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस से जुड़े अंकित पांडा का कहना है, "इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि तकनीकी साधनों से लैस अमीर देश मिसाइल डिफेंस में निवेश जारी रखेंगे. ये सब पारंपरिक हथियारों की होड़ जारी रखने का नुस्खा बनाते हैं."

पश्चिम से मध्यपू्र्व तक पैट्रियट का जलवा

नीदरलैंड्स, जर्मनी, स्वीडन और पोलैंड पहले से ही आरटीएक्स की सब्सिडियरी रेथियॉन की पैट्रियट बैट्री का इस्तेमाल करते हैं. पश्चिमी देशों के उन्नत मिसाइल डिफेंस सिस्टम में यह सबसे आम है.

मिसाइल हमलों से यूक्रेन को कितना बचा पाएंगे एयर डिफेंस सिस्टम

सऊदी अरब हूथी विद्रोहियों के हमले से बचने के लिए सालों से पैट्रियट का इस्तेमाल कर रहा है. संयुक्त अरब अमीरात भी लॉकहीड मार्टिन का टर्मिनल हाइ एल्टिट्यूड एयर डिफेंस यानी थाड सिस्टम का इस्तेमाल करता है. पैट्रियट का इस्तेमाल करने वालों में कुवैत, कतर और बहरीन भी शामिल हैं. ओमान ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है.

यूक्रेन में जर्मनी की तरफ से भेजा गया पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम
पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर कई देशों ने भरोसा जताया हैतस्वीर: BildFunkMV/IMAGO

अमेरिका में लॉकहीड मार्टिन को अप्रैल में अगली पीढ़ी के इंटरसेप्टर फॉर द ग्राउंड बेस्ड मिडकोर्स डिफेंस यानी जीएमडी प्रोग्राम के लिए 17.7 अरब डॉलर का ठेका मिला है. यह अमेरिकी महाद्वीप की ओर छोटी संख्या में दागी जाने वाली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों यानी आईसीबीएम को निशाना बना कर उन्हें ध्वस्त करेगा.

एशिया पर असर

हालांकि सबसे ज्यादा असर एशिया पर होगा, जहां चीन ने पारंपरिक हथियारों वाले बैलिस्टिक मिसाइलों में भारी निवेश किया है. अमेरीकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट बताती है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स के पास 5 सौ डीएफ-26 मिसाइलें हैं, जो हजारों किलोमीटर की दूरी तक सटीक निशाना लगाने के लिए डिजाइन की गई हैं. अमेरिका और उसके सहयोगियों के जापान और गुआम के ठिकाने इसके हमले की जद में आ सकते हैं. हमला होने पर महज 20-30 मिनट पहले ही चेतावनी मिल सकेगी. 

नए मिसाइल डिफेंस की रणनीति पर विचार कर रहा है जर्मनी

कैलिफोर्निया के मिडलबरी इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में ईस्ट एशिया नॉन प्रोलिफरेशन प्रोग्राम के निदेशक जेफ्री लुइस का कहना है, "प्रशांत क्षेत्र में आप मिसाइल डिफेंस में रुचि और बढ़ते देखेंगे, जिसके नतीजे में चीन पर और सिस्टम बनाने का दबाव बढ़ेगा." लुइस के मुताबिक, "देश (हमलावर) मिसाइलें हासिल करना चाहेंगे क्योंकि वो दूसरे देशों को उन्हें इस्तेमाल करते देखते हैं... इससे फिर मिसाइल डिफेंस की मांग बढ़ेगी."

जापान भी पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम का उपयोग करता है
जापान अपनी रक्षा तैयारियों को बेहतर करने में जुट गया हैतस्वीर: Ryo Masuyama/Jiji Press/dpa/picture alliance

चीन का अपनी मिसाइलों के बारे में चर्चा करना दुर्लभ है. ज्यादा से ज्यादा वो यही बयान देते हैं कि उनकी सेना शांति को बचाए रखने के लिए है, किसी खास देश को लक्ष्य बनाने के लिए नहीं.

मिसाइल डिफेंस सिस्टम का भारी भरकम खर्च

बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस लॉन्च होते वक्त या फिर उड़ान के दौरान हथियार का पता लगाता है, इसके बाद सतह पर मौजूद रडार की मदद से इंटरसेप्टर को निशाने की जानकारी देता है.

इंटरसेप्टर या तो वातावरण में या फिर अंतरिक्ष में हथियारों को रोकते हैं. इसके हिसाब से अलग मिसाइल की जरूरत होती है. मिसाल के लिए फिन वातावरण के बाहर काम नहीं करते तो फिर वहां छोटे स्टीयरिंग रॉकेट की जरूरत पड़ती है.

उच्च क्षमता वाले जरूरी कंप्यूटर, बहुत दूरी तक काम करने वाले रडार और मिसाएलें साथ ही विशाल टेलिफोन के खंभे ये सब सस्ते नहीं हैं. कुल मिला कर इनकी कीमत अरबों डॉलर हो जाती है. मिसाल के लिए 2022 में अमेरिका ने सऊदी अरब को पैट्रियट और थाड सिस्टम बेचने की मंजूरी दी थी. यह सौदा 5.3 अरब डॉलर में हुआ था.

पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम
पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम में लगे उन्नत उपकरण और मिसाइलें उसे बेहद खर्चीला बनाती हैंतस्वीर: Bernd Wüstneck/dpa/picture alliance

अमेरिका के कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस की 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक पैट्रियट बैट्री की कीमत 1.1 अरब डॉलर है. इसमें सिस्टम की कीमत करीब 40 करोड़ डॉलर और मिसाइलों की 69 करोड़ डॉलर कीमत होती है.

मिसाइल डिफेंस के प्रबल उम्मीदवार

लुईस का कहना है कि भारत प्रशांत क्षेत्र में जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया जैसे अमीर देश मिसाइल डिफेंस के प्रबल उम्मीदवार हैं. ये हालत तब है जबकि एशिया के लगभग सभी देश पहले से ही मिसाइलों में निवेश कर रहे हैं.

जापान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि देश को, "इंटीग्रेटेड एयर एंड मिसाइल डिफेंस समेत रक्षा क्षमताओं को बुनियादी तौर पर और तेजी से सुदृढ़ बनाने की जरूरत है." जापान ने बताया है कि बेहतर पैट्रियट मिसाइलों, बेहतर रडारों और एंटी नेवल मिसाइल क्षमता को सुधारने में वह निवेश कर रहा है.

दक्षिण कोरिया ने अपने ताजा रक्षा बजट में कोरिया एयर एंड मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए धन 12 फीसदी बढ़ा दिया है. कोरियाई रक्षा मंत्रालय का कहना है, "इस्राएल-हमास संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध ने उन्नत मिसाइलों के बढ़ते खतरे का जवाब देने के लिए बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम के महत्व पर दोबारा मुहर लगा दी है."

अप्रैल के मध्य में ऑस्ट्रेलिया ने लॉकहीड मार्टिन से 32.8 करोड़ डॉलर का करार ज्वाइंट एयर बैटल मैनेजमेंट सिस्टम के लिए किया. यह सिस्टम हमला करने वाले विमानों और मिसाइलों का पता लगा कर उन्हें ध्वस्त करता है.

बैलिस्टिक मिसाइलों की कीमत उतनी नहीं है जितना कि उन्हें रोकने वाले सिस्टम की. हालांकि जापान के सेल्फ डिफेंस फ्लीट के पूर्व कमांडर और मिसाइल डिफेंस के पैरोकार योजी कोडा का कहना है कि खर्च को इस तरह से नहीं देखना चाहिए.

कोडा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "युद्ध की अर्थव्यवस्था में जो सस्ता है वह बेहतर है. हालांकि कई बार जरूरी यह होता है कि हमें प्रमुख बुनियादी ढांचे या कमांड सेंटरों को हर कीमत पर बचाना होता है. क्योंकि उनके बगैर हम हार जाएंगे."

चीन का मसला

चीन की ज्यादातर पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलें जमीनी ठिकाने को निशाना बनाने के लिए डिजाइन की गई हैं. हालांकि उसने ऐसे हथियार भी तैनात किए हैं, जो सागर में जहाजों को निशाना बना सकते हैं. इनमें डीएफ-21डी और डीएफ-26 के संस्करण शामिल हैं. इन्हें चीन की सरकारी कंपनी चायना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन ने विकसित किया है.

इस तरह के एंटी शिप बैलिस्टिक मिसाइलों का पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ था. 2023 के आखिर में यमन के हूथी विद्रोहियों ने ईरान में बनी ऐसी मिसाइलों का लाल सागर में पहली बार इस्तेमाल किया. अमेरिका के सेंट्रल कमांड का कहना है कि नवंबर से लेकर अप्रैल तक के बीच में 85 एंटीशिप बैलिस्टिक मिसाइल दागे गए. इनमें से 20 मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया गया जबकि एक नागरिक जहाज इनके हमले से डूब गया. 

हूथी विद्रोहियों के मिसाइल हमले के बाद डूबा जहाज
हूथी विद्रोही एंटीशिप बैलिस्टिक मिसाइल का उपयोग करते हैंतस्वीर: Khaled Ziad/AFP/Getty Images

सेंट्रल कमांड ने ईरानी मिसाइलों के असर के बारे में ज्यादा ब्यौरा नहीं दिया. हालांकि यह जरूर बताया कि जिन मिसाइलों को इंटरसेप्ट नहीं किया जा सका, उनसे कोई नुकसान नहीं हुआ है.

कार्नेगी चीन में न्यूक्लियर पॉलिसी प्रोग्राम के सीनियर फेलो तोंग झाओ का कहना है कि जमीन और सागर में मिसाइल डिफेंस का असर चीन का ध्यान जरूर खींचेगा. झाओ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "इसने यह संभावना बढ़ा दी है कि अमेरिका और उसके सहयोगी, बैलिस्टिक मिसाइल हमले के सामने मिसाइल डिफेंस पर निर्भर होंगे."

चीन के मिसाइलों की तकनीक बहुत गोपनीय रखी जाती है. हालांकि इनमें भारी निवेश का मतलब कि इन्हें ज्यादा भरोसेमंद बनाया जा रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इंटरसेप्शन को जटिल बनाने के लिए जवाबी तकनीक का इस्तेमाल इनमें किया जाएगा.

रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूट के सीनियर रिसर्च फेलो सिद्धार्थ कौशल का कहना है, "रूस या ईरान से बड़ी मात्रा में मिसाइलों का जखीरा रखने वाले और ज्यादा उन्नत सिस्टम तैनात करने वाले चीन जैसे विरोधियों के लिए... यह साफ नहीं है कि वे मौजूदा निर्माण संरचना को छोड़ने का सबक सीखेंगे."

जेफ्री लुइस के मुताबिक मिसाइल डिफेंस में निवेश के राजनीतिक और व्यवहारिक फायदों के देखते हुए देश इसकी अनदेखी नहीं करते. लुइस का कहना है, "रक्षा खरीद के सारे फैसले आखिरकार राजनीतिक होते हैं. इनकी राजनीति बहुत सरल हैः आप अपने देश की रक्षा चाहते हैं या नहीं? और जीत हमेशा 'हां' की होती है."

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)