विदेशों में फंसे भारतीयों का सोशल मीडिया ट्रायल गलत
१२ मई २०२०भारत सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 23 मार्च से लॉकडाउन लगाया था. इस लॉकडाउन को दो बार बढ़ाकर 17 मई तक कर दिया गया. लॉकडाउन के चलते लोगों की आजीविका पर असर पड़ा है. रोजगार ना होने से लोग अपने भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं. लाखों की संख्या में मजदूर पलायन कर अपने घरों को वापस लौट रहे हैं. सरकार ने मई की शुरुआत में इनके लिए कई रेलगाड़ियां भी चलाईं. लेकिन तब तक लाखों लोग पैदल या दूसरे तरीकों से अपने घर पहुंच गए. उनकी परेशानियां बड़ी हैं इसमें कोई शक नहीं है.
भारत सरकार ने 7 मई से विदेशों में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए वंदे भारत मिशन शुरू किया है. इसके शुरू होते ही ये बहस शुरू हो गई कि भारत सरकार मजदूरों की जगह एनआरआई लोगों पर ध्यान दे रही है. लेकिन क्या ये खेमाबंदी ठीक है? क्या एनआरआई लोगों को विदेशों में कोई परेशानी नहीं है? क्या उनकी परेशानियों को सरकार को नजरअंदाज कर देना चाहिए? क्या सोशल मीडिया पर हर मुद्दे पर किसी को विलेन बनाना जरूरी है?
खाड़ी हो या यूरोप एक जैसी मुश्किलें
भारत से बाहर दुनिया के अलग-अलग देशों में करीब डेढ़ करोड़ भारतीय नागरिक रहते हैं. इनमें से सबसे ज्यादा भारतीय खाड़ी देशों और अमेरिका में रहते हैं. यूरोप के अलग-अलग देशों में भी लाखों भारतीय रहते हैं. खाड़ी देशों में रहने वाले अधिकतर भारतीय वहां मजदूरी वाले काम ही करते हैं. खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था मुख्य तौर से तेल पर निर्भर है. कोरोना वायरस के शुरुआती दौर में ही तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई जिसका असर इन देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ा. यहां पर काम करने वाले लोगों को इन देशों में नौकरी से निकाला जाने लगा.
खाड़ी देशों में कोरोना वायरस से भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में प्रभावित हुए हैं. इसकी वजह इन देशों में रहने वाले भारतीयों का एक साथ बड़ी संख्या में रहना है. यहां छोटे कमरों में भारतीय समूहों में रहते हैं. इसकी वजह से कई समूह संक्रमित भी हुए हैं. विदेशों में लोगों को पैसा ज्यादा मिलता है लेकिन यहां रहने का खर्च भी ज्यादा होता है. ऐसे में बिना नौकरी और बिना आमदनी के दूसरे देश में रहना भी बहुत परेशानी भरा हो जाता है.
अमेरिका में रहने वाले लोगों की आय सामान्य तौर पर अच्छी है. लेकिन अमेरिका में भी 1929 की ऐतिहासिक मंदी के बाद सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर पहुंच गई है. नौकरी गंवाने वालों में भारतीय लोग भी शामिल हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन ने वीजा नियमों में बहुत बदलाव किए हैं. इसके चलते भी कई लोग अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं. भविष्य को लेकर इस अनिश्चितता के चलते एनआरआई घर लौटना चाहते हैं. बिना नौकरी के अमेरिका जैसे महंगे देशों में रहना बड़ा ही मुश्किल है.
बेरोजगार हुए भारतीयों की समस्या
यूरोप में भी बड़ी संख्या भारतीय रहते हैं. यूरोप में आईटी कंपनियों में काम करने वाले भारतीय तीन महीने से एक साल तक के लिए काम करने आते हैं. अगर किसी व्यक्ति का कॉन्ट्रैक्ट मार्च में खत्म हो गया तो ऐसे लोगों को दो महीने तक यहां बिना नौकरी के रहना पड़ रहा है. जर्मनी में एक महीने रहने का एक व्यक्ति का औसत खर्च 50 हजार रुपये से ज्यादा हो जाता है. ऐसे में यहां बिना नौकरी के रह पाना बड़ी परेशानी का काम है.
विदेशों में पढ़ने वाले विद्यार्थी पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-मोटे पार्ट टाइम काम कर अपना खर्चा चलाते हैं. बहुत से देशों में लॉकडाउन के चलते ये काम बंद हो गए हैं. ऐसे में इन लोगों की आय भी बंद हो गई है लेकिन खर्चे बंद नहीं हुए हैं. खाने पीने के खर्च के अलावा घरों का किराया भी चुकाना है. ऐसे में कुछ देशों ने विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता भी दी है लेकिन अधिकतर देशों में अभी ऐसा नहीं है. भारतीय दूतावास इनकी मदद भी कर रहे हैं लेकिन परेशानियां बनी हुई हैं. यूरोपीय देशों में बहुत से पर्यटक भी फंसे हुए हैं, जो लॉकडाउन के कारण वापस नहीं जा पाए हैं.
इसके अलावा कई लोग ऐसे भी हैं जिनके घर में परिजनों की मौत हुई है. लेकिन वो चाहकर भी अपने घर नहीं लौट सके. अगर किसी के घर में सिर्फ उनके माता-पिता हैं और दोनों में से किसी एक की मौत हो जाए तो विदेश में फंसे व्यक्ति के मानसिक तनाव को समझा जा सकता है. इसलिए ऐसे लोग हर हाल में अपने घर लौटना चाहते हैं.
वंदे भारत में भी लौटकर सब आसान नहीं
वंदे भारत मिशन सरकारी प्लान है लेकिन यह फ्री बिल्कुल नहीं है. इस मिशन के तहत अभी तक फ्लाइटों की संख्या निश्चित है. इसलिए घर आने के इच्छुक लोगों को वहां पर मौजूद भारतीय मिशन यानी दूतावास और उच्चायुक्तों में अपना रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ रहा है जिसमें वापस लौटने की वजह बतानी होगी. इसके बाद मिशन उन सब लोगों में से चुनेगा कि किन लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी. इन लोगों से फ्लाइट के किराए के अलावा भारत पहुंचने पर 14 दिन के क्वारंटीन का किराया भी लिया जाएगा. फ्लाइट के किराए भी सामान्य परिस्थितियों से अभी ज्यादा हैं. लंदन से भारत का एक तरफ का किराया सामान्य परिस्थितियों में 35 हजार से ज्यादा नहीं होता लेकिन अभी लंदन से भारत का किराया 50 हजार लिया जा रहा है. इसके अलावा भारत पहुंचने पर 14 दिन तक उन्हें क्वारंटीन में रहना होगा जिसके पैसे भी क्वारंटीन में रहने वाले लोगों को ही देने होंगे. तब जाकर वो अपने घर जा सकेंगे.
विदेश में फंसे लोग आर्थिक संकट के साथ-साथ उसी मानसिक संकट से गुजर रहे हैं जिससे भारत में रह रहे प्रवासी मजदूर गुजर रहे हैं. नौकरी खो देने के बाद से भारत में अपने घर तक लौटने में एनआरआई लोगों का बहुत पैसा खर्च होगा. इसके अलावा इन लोगों के सामने भी नई नौकरी तलाशने का संकट भी होगा.
भारत में रह रहे एनआरआई भी परेशान
विदेशों में रह रहे कई एनआरआई वापस भारत आने के लिए परेशान हैं. ऐसे ही किसी काम से या छुट्टी बिताने भारत आए एनआरआई भी परेशान हैं. कई एनआरआई छुट्टी बिताने के लिए भारत आए थे लेकिन अब वो वहीं फंस गए हैं. ऐसे में वो अपने काम पर वापस जाना चाह रहे हैं लेकिन अभी जा नहीं पा रहे हैं. साथ ही कई लोग ऐसे फंसे हैं जिनका परिवार विदेश में है और वो अकेले देश में फंस गए हैं. कई लोगों के वीजा बढ़वाने की अपॉइंटमेंट अप्रैल और मई में जिस देश में रहते हैं उसमें ही फिक्स थी. लेकिन वो मार्च में भारत आए और लॉकडाउन में फंस गए. अब इनके वीजा एक्सपायर होने लगे हैं. ऐसे में वापस उस देश में जाना नामुमकिन है. इन्हें परिस्थितियों के सामान्य होने पर भारत में फिर से वीजा लेना पड़ेगा और तब वापस जा सकेंगे.
सोशल मीडिया ट्रायल करने वाले लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए कि आज के माहौल में बिना परेशानी के कोई भी यात्रा करना पसंद नहीं करेगा. जो लोग यात्रा कर रहे हैं वो किसी ना किसी तरह से मजबूर हैं. कोरोना महामारी कोई सामान्य स्थिति नहीं है. ये किसी एक इलाके को प्रबावित नहीं कर रहा है. दुनिया का कोई भी इलाका हो, लोग अपने अपने तरह की परेशानियां झेल रहे हैं. ऐसे में किसी के खिलाफ दुष्प्रचार कर उनकी मानसिक पीड़ा को बढ़ाना ठीक नहीं है.
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