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समाज

कोरोना का खौफ और ट्रेन का सफर

आमिर अंसारी
११ मई २०२०

सरकार की तरफ से चलाई जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन में ना केवल मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं बल्कि छात्र और पेशेवर भी हैं जो अपने परिवार के पास जाना चाहते हैं. आईटी सेक्टर वाले वर्क फ्रॉम होम का लाभ उठा रहे हैं.

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तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri

बेंगलुरू स्थित लर्निंग ऐप में बतौर प्रोडक्ट स्पेशलिस्ट काम करने वाली आशना शमीम को लगा कि दफ्तर की जगह वर्क फ्रॉम होम ही करना है तो क्यों ना अपने गृह नगर लौटा जाए और परिवार के साथ रहते हुए दफ्तर का काम कर लिया जाए. उन्होंने यह भी सोचा कि इसके साथ खाने पीने की समस्या भी नहीं रहेगी. झारखंड के जमशेदपुर की रहने वाली आशना ने 1 मई को झारखंड सरकार द्वारा प्रवासियों के घर आने के लिए जारी ऑनलाइन फॉर्म भरा. इसी के साथ उन्होंने कर्नाटक सरकार द्वारा गृह राज्य लौटने को लेकर जारी फॉर्म भी भरा.

जमशेदपुर पहुंचने पर उन्होंने डीडब्ल्यू से फोन पर बताया, "बेंगलुरू में मुझे कोरमंगला पुलिस स्टेशन से फोन आया और मुझसे बेंगलुरू आने का कारण पूछा गया. मैंने बताया कि मैं यहां नौकरी करती हूं और फिलहाल मुझे पेइंग गेस्ट में रहते हुए काफी दिक्कतें आ रही हैं, खास कर खाने की असुविधा और मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने माता-पिता के पास लौटना चाहती हूं." आशना के मुताबिक पुलिस अफसर ने उनसे 8 मई को सामान के साथ पुलिस स्टेशन पहुंचने को कहा. थाना पहुंचने पर आशना की तरह झारखंड जाने वाले लोगों की स्क्रीनिंग की गई और पुलिस स्टेशन पर ही उनके शरीर का तापमान लिया गया.

झारखंड के हटिया तक जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन में यात्रा करने वालों में प्रवासी मजदूर, छात्र, परिवार और नौकरी करने वाले लोग शामिल थे. आशना बताती हैं, "शाम गुजर जाने के बाद हम सभी लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग करते हुए अलग-अलग रेल डिब्बों में बिठाया गया. किसी डिब्बे में मजदूर थे, तो किसी डिब्बे में परिवार और छात्र. सब अपने घरों को जल्द पहुंचने की उम्मीद लगाए बैठे थे. शनिवार रात 1 बजे के करीब हमारी ट्रेन चली."

कर्नाटक सरकार की पल्टी

गृह मंत्रालय ने 29 अप्रैल को दूसरे राज्यों में फंसे कर्मचारी, छात्र और श्रद्धालु और अन्य लोगों की आवाजाही के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे और राज्यों से लोगों की वापसी के इंतजाम करने को भी कहा था. उसके बाद राज्य सरकारों ने विशेष ट्रेनों के जरिए मजदूरों को उनके गृह राज्य भेजने का फैसला किया. कर्नाटक सरकार के उस फैसले की भी कड़ी निंदा हुई थी जिसमें सरकार ने श्रमिकों को ले जाने वाली विशेष ट्रेन रद्द करने का फैसला किया था, विरोध के बाद सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा और लोगों को वापस उनके गृह राज्य में भेजने के लिए ट्रेनें चलानी पड़ी.

रविवार 10 मई को झारखंड के हटिया पहुंचने पर यात्रियों की दोबारा स्क्रीनिंग की गई और उन्हें उनके गृह नगर बसों द्वारा भेजा गया. आशना के मुताबिक, "जब हम अपने शहर पहुंचे तो लगा कि अब घर ज्यादा दूर नहीं है और कुछ देर बाद हम अपने परिवार के बीच में होंगे लेकिन घर से एक किलोमीटर पर स्थित एक स्कूल में हमारा सैंपल लिया गया और अब हम एक क्वारंटीन सेंटर में हैं. रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही हमें घर जाने दिया जाएगा."

करीब 34 घंटे के सफर के दौरान इस ट्रेन ने पांच राज्यों की सीमा पार की और तीन से चार ही स्टेशनों पर सिर्फ जरूरी काम के लिए रुकी. जिसमें भोजन, पानी की व्यवस्था और सुरक्षा जांच शामिल थी. इस ट्रेन में सवार एक और यात्री सुमित बेरा बताते हैं कि ट्रेन के भीतर तो सोशल डिस्टेंसिंग जैसी कोई चीज नजर ही नहीं आई. वे कहते हैं, "यात्रा के दौरान सिर्फ एक ही बार सैनेटाइजन किया गया, लोग भी करीब-करीब बैठे नजर आए. ट्रेन चलाने का जो मकसद था वह खत्म होता दिखा. रांची पहुंचने पर भी बसों में भीड़ थी और लोग बगल-बगल बैठकर अपने शहरों की तरफ जाते दिखे."

बड़े शहरों में पेइंग गेस्ट में रहने वाले छात्र और नौकरी पेशा लोगों के लिए इस समय संकट खाने का भी है. कई पेइंग गेस्ट ऐसे होते हैं जहां सिर्फ रहने की व्यवस्था होती है. लॉकडाउन की वजह से ऐसे पेइंग गेस्ट में रहने वाले बच्चे और नौकरी करने लोगों के साथ-साथ अभिभावक भी परेशान हैं.

आईटी सेक्टर पर प्रभाव

भारत की करीब 200 अरब डॉलर की आईटी इंडस्ट्री के लिए कोविड-19 लॉकडाउन एक डरावने सपने से कम नहीं है, रातों रात वर्क फ्रॉम होम मॉडल पर शिफ्ट करना उसके लिए मुश्किल भरा काम था. हालांकि अब सरकार ने कुछ इलाकों में कंपनियों को सीमित क्षमता के साथ काम करने की अनुमति दे दी है लेकिन कंपनियां अब जल्दबाजी में नजर नहीं आ रही है. दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, बेंगलुरू, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता में आईटी की कई कंपनियां हैं और वहां लाखों युवा काम करते हैं. कई तो पेइंग गेस्ट में रहते हैं और कई कमरा साझा कर साथी या दोस्त के साथ रहते हैं. आईटी सेक्टर के विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 का इस क्षेत्र पर गहरा असर पड़ेगा. कंपनियों की तरफ से लागत कम करने के कारण जॉब कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं होंगे. यात्रा पर प्रतिबंधों के कारण मौजूदा प्रोजेक्टस पहले से ही मार झेल रही हैं. हालांकि लॉकडाउन की वजह से आईटी कंपनियों को रिमोट एक्सेस के जरिए काम करने की अपनी क्षमता को मूल्यांकन करने का मौका जरूर मिला है. नैस्कॉम इंडिया के मुताबिक भारतीय कंपनियां जल्दबाजी में दफ्तर नहीं खोलेंगी, पहले वह कंपनियों में सैनेटाइजेशन का काम करेंगी, कर्मचारियों के कॉन्टैक्टलेस परिवहन और उनकी सुरक्षा के बारे में सोचेंगी.

श्रमिक, छात्र या फिर नौकरी पेशा लोग, घर वापसी की उनकी यात्रा इस बार बहुत अलग है. वे शहर तो पहुंच गए हैं लेकिन अपने घर और परिवार के बीच नहीं हैं. शहर तो अपना है लेकिन वे क्वारंटीन केंद्रों में अपनी रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं ताकि नेगेटिव आते ही खुशी-खुशी अपने घर को लौट पाए.

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