संकट में घिरा स्पेन
३ जून २०१३ज्यादा वक्त नहीं बीता जब स्पेन को यूरोप का मॉडल माना जाता था. गतिशील अर्थव्यवस्था, सनसनीखेज निर्माण की योजनाएं, कला और फिल्मों के दम पर दुनिया का ध्यान खींचते स्पेन ने फ्रैंको की तानाशाही के स्याह वर्षों को बहुत पीछे छोड़ दिया था. 1975 में जनरल की मौत ने देश में लंबे समय से सोए पड़े राजनीतिक दलों को जगाया और लोकतंत्र की तरफ कदम बढ़ाए गए. 1986 में जब स्पेन यूरोपीय समुदाय में शामिल हुआ तब इस आर्थिक और मौद्रिक ढांचे में उसकी मौजूदगी ने एक शानदार भविष्य की उम्मीद जगाई.
2007 में हालात बदलने शुरू हो गए. आर्थिक संकट से निर्माण जगत का बुलबुला फूट गया और भूमध्यसागरीय देश मंदी के आगोश में चला गया. हजारों कंपनियां तबाह हुईं और बैंकिंग का तंत्र ध्वस्त हो गया. सागर तटों के किनारे कई किलोमीटर तक दिखने वाले अधूरे मकानों की कतारों से पता चला कि स्पेन कितना ज्यादा कर्ज में जी रहा है और वो भी इस गलत उम्मीद में कि यह ऊपर उठता जाएगा.
ग्रीस के साथ स्पेन फिलहाल यूरोप की सबसे बड़ी चिंता है. साल 2012 के आखिर में बेरोजगारी 26 फीसदी थी. इसका मतलब है कि करीब 60 लाख स्पेनी नागरिकों के पास नौकरी नहीं है यानी काम करने के लायक हर चार लोगों में एक के पास नौकरी नहीं है. 25 साल से कम आयु के युवाओं के बीच तो यह तस्वीर और डरावनी है. इस उम्र के दायरे में बेरोजगारी की दर 52 फीसदी है. केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2013 में स्पेन 884 अरब यूरो के कर्ज के साथ दाखिल हुआ जो इसके आर्थिक प्रदर्शन का करीब 84 फीसदी है. यूरोपीय संघ के समझौतों में तय ऊपरी सीमा से यह करीब 60 फीसदी ज्यादा है.
स्पेन की सरकार ने कई महीने तक खर्च में कटौती के उपायों को लागू करने में खर्च किए जिससे कि यूरोपीय संघ की शर्तों को पूरा किया जा सके. सुधार के कार्यक्रम में सबसे अहम है नौकरी बाजार में बुनियादी बदलाव. इसमें नौकरी देने वालों को ज्यादा आसानी से नौकरी छीनने का अधिकार दे दिया गया. शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में कटौती की गई और टैक्स का बोझ बढ़ा दिया गया.
खर्च में कटौती का विरोध
सुधारों ने सामाजिक व्यवस्था के सामने खतरा पैदा कर दिया क्योंकि हजारों लोग बदलावों और कटौतियों का विरोध करने के लिए करीब करीब हर हफ्ते बड़े शहरों की सड़कों पर निकलने लगे. अब तक हिंसा सिर्फ छोटे मोटे प्रदर्शनों में ही हुई है और जर्मन चैम्बर ऑफ कॉमर्स फॉर स्पेन के प्रमुख वाल्थर फॉन प्लाटेनबर्ग का कहना है कि स्पेन के लोग अपनी किस्मत के साथ अच्छे से निपट रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में प्लेटेनबर्ग ने कहा, ''लोग जानते हैं कि उन्होंने 10-15 साल अपनी औकात से ज्यादा संसाधनों खर्च किए हैं.'' उनका कहना है कि लोग अब बलिदान करने के लिए तैयार हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ''लेकिन यह अब चरम पर पहुंच रहा है क्योंकि खर्च में कटौती के उपायों का हर किसी पर बहुत ज्यादा असर हुआ है.''
स्पेन के ग्रेजुएट इस वक्त दिशाहीनता की स्थिति से गुजर रहे हैं और ऐसे में उन्हें ''खोई पीढ़ी'' कहा जाने लगा है. बहुत से पढ़े लिखे और प्रेरणा से भरे युवा काम की तलाश में अपना घर छोड़ विदेशों में जा रहे हैं, हालांकि यह वो लोग हैं जिनकी देश को इस संकट से बाहर निकलने के लिए जरूरत है. आर्थिक और सामाजिक दिक्कतें कितनी ज्यादा हैं, इसका अंदाजा स्पेनी रेड क्रॉस की एक पहल से लगा. हाल ही में इस संगठन ने विकासशील देशों की बजाए स्पेन के जरूरतमंद लोगों के लिए दुनिया के विकसित देशों से चंदा मांगना शुरू किया. स्पेन में फिलहाल 30 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें अपना खाना जुटाने के लिए इस एजेंसी की मदद की जरूरत पड़ रही है.
इस आर्थिक दिक्कत और लोगों के गुस्से से कुछ लोगों को फायदा भी हो रहा है, जैसे कि क्षेत्रीय राष्ट्रवादी. स्पेन के कैटेलोनिया प्रांत को पहले से ही कुछ स्वायत्तता मिली हुई है, अब वहां स्पेन से आजाद होने की मांग प्रबल होने लगी है.
इसी साल जनवरी के आखिर में संसद के कैटेलोनियाई सदस्यों ने अपने इलाके को संप्रभुता का अधिकार देने के पक्ष में वोट दिया. स्पेन की सरकार संवैधानिक अदालत की घोषणा के खिलाफ अपील करने की योजना बना रही है. कैटेलोनिया स्पेन का सबसे अमीर इलाका है और उसने दूसरे जरूरतमंद इलाकों की राह पर चलते हुए अपने कर्ज चुकाने के लिए केंद्रीय सरकार से पैसे की मांग शुरू कर दी है.
सामने आया भ्रष्टाचार
प्रधानमंत्री मारियानो राखोय का मंत्रिपरिषद एक साथ इन सारे झमेलों से नहीं निबट सका. साथ ही वे निजी तौर पर भी आरोप झेल रहे हैं. अखबारों की खबर पर यकीन करें तो रूढ़िवादी पार्तिदो पॉपुलर के प्रमुख सदस्य जिनमें खुद प्रधानमंत्री भी शामिल हैं 1990 से ही कंपनियों से पैसा ले रहे हैं. सरकार ये तो कह चुकी है कि वह भ्रष्टाचार से लड़ने की योजना बना रही है, लेकिन आशंकाओं में घिरे लोगों को भरोसा दिलाने के लिए अभी तक कुछ खास किया नहीं गया है.
संकट की घड़ी में राजशाही लोगों से जुड़ने की कोशिश में है. किंग खुआन कार्लोस और क्राउन प्रिंस फिलिप ने जून 2012 में एलान किया कि वो अपने सालाना वेतन में 7.1 फीसदी की कटौती स्वीकार करेंगे. इस कटौती के पहले तक किंग को हर साल सरकार से 272,000 यूरो मिलते हैं जबकि इसकी आधी रकम उनके बेटे को. भारी संपत्ति और कमाई के दूसरे जरियों को देखते हुए राजपरिवार का त्याग सांकेतिक ही है या फिर यूं कहें कि अपनी खराब छवि को थोड़ा चमकाने की कोशिश.
राजपरिवार की बदनामी
महज एक साल पहले तक खुआन कार्लोस को जनता खूब पसंद करती थी. आधुनिक और खुले विचारों वाला माने जाने वाले किंग ने फ्रांको के बाद के युग में स्पेन के लोकतंत्र की तरफ बढ़ते कदमों का समर्थन किया और 1981 में सैन्य तख्तापलट का विरोध. अप्रैल 2012 में जब किंग देश की जनता को कटौती के उपायों के बीच अकेला छोड़ बोत्सवाना में हाथियों का शिकार करने चले गए तो लोगों को बुरा लगा. ऐसी अफवाह भी उठी कि शिकार के दौरान उनके साथ कोई प्रेमिका भी थी. इसके साथ ही शाही परिवार के सदस्यों के भ्रष्टाचार में शामिल होने के दावे भी सामने आए. इन सबसे राजा की छवि लगातार खराब होती गई और उन्होंने इसे ठीक करने के लिए कुछ किया भी नहीं.
फिलहाल इन सारी वजहों के साथ स्पेन एक विभाजित देश दिखाई देता है. करोड़ों लोग स्थिरता की तलाश में है और सिर्फ राजनेताओं ने ही नहीं बल्कि उनके राजा ने भी उन्हें अकेला छोड़ दिया है.
रिपोर्टः राल्फ बोजेन/एनआर
संपादनः महेश झा