93,000 युवाओं ने की आत्महत्या
बॉलीवुड के सितारे सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के मामले की हर तरफ चर्चा हो रही है. लेकिन देश में हर साल लाखों लोगों की मौत आत्महत्या की वजह से होती है. जानिए क्या कहते हैं ताजा आंकड़े.
बढ़ रही है समस्या
2019 में भारत में 1.39 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई. इसमें 2018 के मुकाबले 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
मरने वालों में ज्यादा पुरुष
2019 में आत्महत्या से मरने वालों में पुरुषो और महिलाओं का अनुपात 70.2 के मुकाबले 29.8 रहा. मरने वालों में 97,613 पुरुष थे, और उनमें सबसे ज्यादा संख्या (29,092) दिहाड़ी पर काम करने वालों की थी. 14,319 पुरुष स्व-रोजगार में थे और 11,599 बेरोजगार थे.
विवाह या दहेज बड़ा कारण
मरने वालों में कुल 41,493 महिलाएं थीं, जिनमें 21,359 गृहणी थीं, 4,772 विद्यार्थी थीं और 3,467 दिहाड़ी पर काम करने वाली थीं. महिलाओं में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण दहेज और विवाह में उत्पन्न हुई अन्य समस्याओं को पाया गया. इनमें नपुंसकता और इनफर्टिलिटी भी शामिल हैं.
पारिवारिक कलह सबसे ज्यादा जिम्मेदार
पारिवारिक कलह को आत्महत्या के सबसे ज्यादा (32.4 प्रतिशत) मामलों के लिए जिम्मेदार पाया गया है. 17.1 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या का कारण बीमारी थी. इसके अलावा 5.6 प्रतिशत मामलों के पीछे ड्रग्स की लत, 5.5 प्रतिशत मामलों के पीछे विवाह संबंधी कारण, 4.5 प्रतिशत मामलों के पीछे विफल प्रेम-प्रसंग और 4.2 प्रतिशत मामलों के पीछे दिवालियापन को कारण पाया गया.
बेरोजगारी बड़ा कारण
कम से कम 2,851 आत्महत्या के लिए बेरोजगारी को जिम्मेदार पाया गया. बेरोजगारी और भी बड़ा कारण हो सकती है क्योंकि आत्महत्या से मरने वालों में कम से कम 14,019 लोग बेरोजगार थे. ऐसे सबसे ज्यादा मामले कर्नाटक में सामने आए, उसके बाद महाराष्ट्र में, फिर तमिलनाडु, झारखंड और गुजरात में.
मर रहे हैं किसान और दिहाड़ी कमाई वाले
आत्महत्या से मरने वालों में कम से कम 42,480 किसान और दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग थे. इनमें 10,281 किसान थे और 32,559 दिहाड़ी कमाई वाले. किसानों में 5,563 पुरुष थे और 394 महिलाएं. कृषि श्रमिकों में 3,749 पुरुष थे और 575 महिलाएं. दिहाड़ी कमाई वालों में 29,092 पुरुष थे और 3,467 महिलाएं.
युवा ले रहे हैं अपनी जान
इनमें से 67 प्रतिशत, यानी 93,061, लोगों की उम्र 18-45 साल के बीच थी. युवाओं में भी आत्महत्या के मामले 2018 के मुकाबले बढ़े हैं. इनमें चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
फांसी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल
आत्महत्या के तरीकों में फांसी के मामले सबसे ज्यादा है. 53.6 प्रतिशत (लगभग 74,629) लोगों ने खुद को फांसी लगा ली.
महाराष्ट्र में स्थिति सबसे खराब
आंकड़ों को राज्यवार देखें तो सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र में सामने आए. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में ही पूरे देश के कुल मामलों में से 50 प्रतिशत मामले पाए गए. लेकिन आत्महत्या की दर चार दक्षिणी राज्य केरल, कर्नाटक, तेलांगना और तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पाई गई. बिहार में दर सबसे काम पाई गई, लेकिन वहां 2018 के मुकाबले मामले 44.7% प्रतिशत बढ़ गए.
आय और शिक्षा
मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या में लोग (23.3 प्रतिशत) मैट्रिक तक ही पढ़े लिखे थे. सिर्फ 3.7 प्रतिशत ने स्नातक या उससे ऊपर की पढ़ाई की थी. 66.2 प्रतिशत लोगों की सालाना आय एक लाख रुपए से भी कम थी, जब कि 29.6 प्रतिशत लोगों की आय एक लाख से पांच लाख के बीच थी.
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