अफगानिस्तानः अफीम उत्पादन गिरने से गहराएगा मानवीय संकट!
६ नवम्बर २०२३अफगानिस्तान अब तक दुनिया में अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है और यूरोप व एशिया में हेरोइन का सबसे बड़ा स्रोत भी. तालिबान शासन ने देश से नशीले पदार्थों का कारोबार खत्म करने का वादा किया था, जिसके चलते अप्रैल 2022 में अफीम की खेती पर रोक लगाई गई.
यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) की इस रिपोर्ट में यह पाया गया है कि पिछले साल अफीम की खेती में करीब 95 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है. 2022 के अंत में 2,33,000 हेक्टेयर क्षेत्र पर अफीम उगाई जा रही थी लेकिन 2023 के अंतिम महीनों तक आते-आते यह 10,800 हेक्टेयर पर सिमट चुकी थी.
वजन के स्तर पर देखा जाए तो साल 2022 में 6,200 टन के मुकाबले 2023 में यह 333 टन पर पहुंच गया है. रिपोर्ट बताती है कि उत्पादन के लिहाज से इस साल 24-38 टन निर्यात योग्य हेरोइन पैदा हुई है. यह 2022 में 350-580 टन के मुकाबले काफी कम है.
गिरावट का असर
उत्पादन में गिरावट का सीधा असर किसानों की आय पर पड़ा है जिसमें इस साल 92 फीसदी की गिरावट देखी गई है. यानी किसानों की अनुमानित आय 136 अरब डॉलर से गिरकर 110 अरब डॉलर पर आ गई. 2022 में अफीम की खेती, अफगानिस्तान के कुल कृषि उत्पादन का लगभग एक तिहाई रही.
संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट आगाह करती है कि अफीम उत्पादन की यह भारी गिरावट, इसमें लगे लोगों के दूसरी अवैध गतिविधियों में शामिल होने का डर पैदा करती है. जैसे हथियारों की स्मग्लिंग या नकली दवाओं का कारोबार.
इसी तरह की एक और रिपोर्ट सितंबर महीने में भी आई थी जिसमें इसी एजेंसी ने कहा था कि अफगानिस्तान में नशीली दवा मेथामफेटामिन का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ रहा है.
मानवीय संकट बढ़ने का खतरा
यह रिपोर्ट इस बात का भी जिक्र करती है कि अफीम उद्योग को खत्म करने का एक गंभीर और नकारात्मक असरआम लोगों की रोजी रोटी पर पड़ने से कई और विकराल समस्याएं पैदा हो सकती हैं. जैसे कमजोर और गरीब ग्रामीण समुदायों के सामने मानवीय संकट खड़ा हो सकता है.
यूएनओडीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गाडा वली का कहना है कि अफगानिस्तान में लोगों को आपात सहायता की जरूरत है ताकि आय का स्रोत खत्म होने के असर को दूर करके जिंदगियां बचाई जा सकें.
वली कहती हैं कि अफीम के मुकाबले, कपास और गेहूं जैसी फसलों में पानी बहुत खर्च होता है और अफगानिस्तान में पिछले तीन साल से लगातार सूखा पड़ रहा है. अफगानिस्तान को आजीविका के सस्टेनेबल तरीकों के लिए भारी निवेश की जरूरत है, ताकि अफीम से दूर अफगान लोगों को काम के मौके मिलें.
अफगानिस्तान लगातार भयंकर मानवीय संकट से जूझ रहा है, जिसकी तह में हैं दशकों से चल रही लड़ाई और भूकंप व सूखे जैसी प्राकृतिक विपदाएं. यही नहीं, हाल ही में पाकिस्तान ने अपने देश से रिफ्यूजियों को बाहर निकलने का आदेश दिया. जिसकी वजह से अफगानिस्तान में रिफ्यूजियों का आना भी संकट का कारण है.
संकट गहराने की एक वजह अंतरराष्ट्रीय सहायता में आई भारी कमी भी है. तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद से, कई देशों ने उसे औपचारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है.
चुनी हुई सरकार को हटाकर सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने महिला अधिकारों और लड़कियों के हक खत्म किए और बुनियादी अधिकारों को भी ताक पर रख दिया. जिसके बाद देश को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता में बहुत कटौती हुई है.
एसबी/सीके (एपी,एएफपी,रॉयटर्स,डीपीए)