भारत के 10 शहरों में 7 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण सेः रिपोर्ट
४ जुलाई २०२४भारत के दस सबसे बड़े शहरों में सात फीसदी मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है. गुरुवार को जारी एक विस्तृत रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में दसियों हजारों लोगों की जानें बचाने के लिए फौरन कदम उठाए जाने की जरूरत है.
बड़े पैमाने पर हुए शोध के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि दिल्ली समेत तमाम बड़े शहरों की जहरीली हवा लोगों के फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है और आने वाले समय में स्वास्थ्य के लिए यह और बड़ा खतरा बन सकता है.
36 लाख मौतों का विश्लेषण
कई भारतीय वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किए गए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी में पीएम2.5 माइक्रोपार्टिकल के स्तर का अध्ययन किया. यह पार्टिकल कैंसर के लिए जिम्मेदार माना गया है.
‘लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ' पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट कहती है कि 2008 से 2019 के बीच कम से कम 33 हजार लोगों की जान इसी पीएम2.5 पार्टिकल के कारण गई. यह इस अवधि में इन दस शहरों में हुईं कुल मौतों का 7.2 फीसदी है. वैज्ञानिकों ने इन शहरों में हुईं लगभग 36 लाख मौतों का विश्लेषण किया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पीएम2.5 पार्टिकल का प्रति घन मीटर 15 माइक्रोग्राम से ज्यादा का स्तर सेहत के लिए खतरनाक है. लेकिन भारत में यह स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रखा गया है जो डब्ल्यूएचओ की सिफारिश से चार गुना है.
सबसे खतरनाक दिल्ली
मौतों के मामले में सबसे ज्यादा खतरनाक दिल्ली को बताया गया है, जहां सालाना लगभग 12 हजार यानी 11.5 फीसदी लोगों की जान वायु प्रदूषण के कारण हुई. दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है. भारत को पिछले साल दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक आंका गया था.
रिपोर्ट कहती है कि जहां वायु प्रदूषण का स्तर उतना खतरनाक नहीं है, मसलन मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में भी पीएम2.5 के कारण मौतों की संख्या बहुत ज्यादा थी.
प्रदूषण के कारण इस अवधि में अहमदाबाद में 2,495, बेंगलुरू में 2,102, चेन्नई में 2,870, दिल्ली में 11,964, हैदराबाद में 1,597, कोलकाता में 4,678, मुंबई में 5,091, पुणे में 1,367, शिमला में 59 और वाराणसी में 831 लोगों की जान गई.
अमीर देशों को वायु प्रदूषण के खतरों की चिंता नहीं है
वैज्ञानिकों की सिफारिश है कि वायु प्रदूषण को काबू करने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए. शोधकर्ताओं में से एक, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के जोएल श्वार्त्स ने कहा कि पीएम2.5 का स्तर कम करने और इसकी सीमा को घटाने से हर साल दसियों हजार लोगों की जान बचाई जा सकती है.
एक बयान में श्वार्त्स ने कहा, "प्रदूषण को काबू करने के तरीके मौजूद हैं और दुनिया में कई जगह इन्हें अपनाया जा रहा है. भारत में इन्हें आपातकालीन तरीके से लागू करने की जरूरत है.”
अन्य देशों से तुलना
रिपोर्ट कहती है कि पीएम2.5 के स्तर में दो दिन में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से इन दस शहरों में मौतों की संख्या 1.42 फीसदी बढ़ गई.
चीन और भारत में हुई वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें
भारत में होने वाली मौतों की तुलना अन्य देशों में हुए ऐसे ही अध्ययनों से करने पर पता चलता है कि भारत में मृत्यु दर बहुत अधिक है. चीन में 272 शहरों के अध्ययन के बाद पाया गया था कि वायु प्रदूषण के कारण 0.22 फीसदी मौतें ज्यादा हुईं. पूर्वी एशिया के 11 शहरों में यह दर 0.38 फीसदी थी.
हालांकि ग्रीस (2.54 फीसदी), जापान (1.42 फीसदी) और स्पेन (1.96 फीसदी) के मुकाबले भारत में मृत्यु दर कम पाई गई.
शोधकर्ताओं ने मॉडलिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए वायु प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों जैसे परिवहन, कूड़े को जलाना और डीजल जेनरेटर आदि को अलग कर दिया था. वे कहते हैं कि अगर इन स्रोतों को भी मिला लिया जाए तो रोजाना होने वाली मौतें 3.45 फीसदी बढ़ जाएंगी.
रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)