अमीर देशों को वायु प्रदूषण के खतरों की चिंता नहीं है
१८ अक्टूबर २०२३एक नई रिपोर्ट में नाईजीरिया, आइवरी कोस्ट, माली, टोगो और घाना को उन प्रमुख देशों में शामिल किया गया है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र को सौंपे क्लाइमेट एक्शन प्लान में हवा की गुणवत्ता को लेकर चिंता जताई है.
एस क्लाइमेट एक्शन प्लान को नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूसंस (एनडीसी) कहा जाता है. बुधवार को जब ग्लोबल क्लाइमेट हेल्थ अलाएंस, जीसीएचए ने स्कोरकार्ड जारी किया तो पता चला कि शीर्ष पर मौजूद 15 देशों में 14 देश कम या फिर मध्यम आय वाले देश हैं.
इनमें कोलंबिया, माली शीर्ष पर हैं. उच्च आय वाले देशों की तरफ से अकेला चिली है. जितने एनडीसी का विश्लेषण हुआ है उनमें कुल मिला कर एक तिहाई यानी 170 एनडीसी में से केवल 51 ने वायु प्रदूषण के सेहत पर असर का जिक्र किया है.
वायु प्रदूषण से 65 लाख लोगों की मौत
इसका मतलब है कि करीब 6 अरब लोग ऐसे देशों में रह रहे हैं जहां स्वस्थ हवा और जलवायु के बीच संबंधों को एनडीसी में चिह्नित नहीं किया गया है. स्कोरकार्ड में बढ़िया प्रदर्शन करने वाले कई देशों में भी वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर काफी ज्यादा है.
सुप्रीम कोर्ट ने उठाए वायु प्रदूषण को लेकर सवाल
वायु प्रदूषण मुख्य रुप से जीवाश्म ईंधन के जलने से पैदा होता है. इसकी वजह से हर साल दुनिया भर में 65 लाख लोगों की मौत होती है. पिछले साल लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यह संख्या लगातार बढ़ रही है.
दिसंबर की शुरुआत में दुबई में होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप28 में पहली बार एक दिन को सेहत के नाम पर समर्पित किया गया है.
इसके पीछे मकसद यह है कि ज्यादा से ज्यादा देश जलवायु परिवर्तन से जुड़े सेहत के खतरों की पहचान करें और उससे निपटने के लिए कदम उठाएं. सालाना सम्मेलन में एक मंत्री स्तर की परिचर्चा भी होगी जहां आपस में जुड़ी समस्याओं से निबटने पर बात होगी.
हालांकि नागरिक समुदाय और सामाजिक कार्यकर्ता इस बात से चिंतित हैं कि कॉप28 के पहले घोषणापत्र के ड्राफ्ट में वायु प्रदूषण का जिक्र नहीं है. इसी घोषणापत्र के अंतिम प्रारूप पर सभी देशों की सरकारें दस्तखत करेंगी.
वायु प्रदूषण से बचने की नीतियां
जीसीएचए की नीति प्रमुख जेसिका बेगले का कहना है, "एनडीसी से वायु प्रदूषण के विचारों का गायब रहने का मतलब है कि धरती, लोग और अर्थव्यस्थाओं के लिए मौका खो दिया गया."
जीसीएचए की रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल और घरों की रसोई में खाना बनाने में स्वच्छ उर्जा के इस्तेमाल जैसी नीतियों में सेहत से जुड़े खतरों से निपटने की क्षमता है. इसके साथ ही इनसे अस्थमा और दिल की बीमारियों पर होने वाले खर्च की समस्या से भी निबटा जा सकता है.
गंदी हवा में सांस ले रहा है लगभग हर यूरोपवासी
बेगले का यह भी कहना है, "एक बार जब आप स्वास्थ्य और डॉलरों के लिहाज से क्लाइमेट एक्शन को तय करने लगेंगे तो जाहिर तौर पर इसे ज्यादा समर्थन भी मिलेगा."
बेगले ने बताया कि एनडीसी राष्ट्रीय जलवायुप्राथमिकताओं की झलकियां दिखाता है और स्कोरकार्ड वायु प्रदूषण का सेहत पर खतरों की पहचान और उनसे निबटने के लिए कदम उठाने और उसके फायदों के हिसाब से अंक देता है.
उदाहरण के लिए नाईजीरिया की ताजा एडीसी में ऐसे कदमों का ब्यौरा है जिसमें जलावन की लकड़ी की बजाय साफ ईंधन से खाना बनाने को बढ़ावा दिया जाएगा.
सरकार का कहना है कि इससे एक तरफ जंगल बचेंगे दूसरी ओर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आएगी और साथ ही 2030 तक कम से कम 30,000 लोगों की असमय मौत से बचा जा सकेगा.
2020 में वर्ल्ड बैंक की एक स्टडी से पता चला कि कारों, औद्योगिक क्षेत्रों और जेनरेटरों से निकलने वाला धुआं लागोस में हवा की खराब गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार है. इसकी वजह से बीमारियां बढ़ रही हैं और लोगों की असमय मौत हो रही है. इसका स्थानीय लोगों पर बहुत बुरा असर हो रहा है.
बीमारियों के बोझ में बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण का
विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया भर के देशों पर बीमारियों का जो बोझ है उसमें पर्यावरण के लिहाज से सबसे ज्यादा हिस्सेदारी वायु प्रदूषण की है. वायु प्रदूषण को जलवायु की योजनाओं में शामिल करने के लिए बहुत व्यापक तैयारी और बड़ी नीतियों की जरूरत है.
वायु प्रदूषण के असर को घटाने के लिए खासतौर से शहरों का जीवन बदलना ज्यादा जरूरी हो गया है. उदाहरण के लिए इलेक्ट्रिक कार से कार्बन उत्सर्जन घट सकता है लेकिन पैदल चलना या फिर साइकिल का इस्तेमाल ज्यादा सेहतमंद है. इसके साथ ही पार्कों और पेड़ पौधों के लिए ज्यादा जगह भी मिल सकेगी.
भारत समेत कई देशों में प्रदूषण छीन रहा है जिंदगी के पांच साल
गंदी हवा से निबटने में एक बड़ी बाधा है इसका खर्च. खासतौर से फंडिंग की जो कमी है उसे देखते हुए यह बाधा और बड़ी हो जाती है. हाल में जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर क्वालिटी फंडी रिपोर्ट बताती है कि अंतरराष्ट्रीय विकास निधी का केवल 1 फीसदी ही वायु प्रदूषण से निबटने में खर्च किया गया है. यह आंकड़ा 2015 से 2021 के बीच का है. इसी अवधी में अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु निधी पर 2 फीसदी खर्च किया गया.
एनआर/सीके (रॉयटर्स)