वोटर कार्ड-आधार जोड़े जाने पर विवाद
२२ अगस्त २०२२वोटर कार्ड (मतदाता पहचान पत्र) को आधार से जोड़ने का प्रावधान दिसंबर 2021 में चुनावी कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021, के पारित होने के बाद लाया गया था. इसके तहत स्वैच्छिक तौर पर वोटर आईडी को आधार से जोड़ने की अनुमति दी गई थी, ताकि मतदाता सूची में डाले गए नामों का सत्यापन कराया जा सके.
लेकिन निजता कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि सरकार ने चुपचाप नए कानून के तहत दोनों को जोड़ना अनिवार्य कर दिया है. बल्कि ऐसे दावे भी किए जा रहे हैं कि चुनाव आयोग के अधिकारी तो यहां तक कह रहे हैं कि आधार नंबर ना देने से मतदाता सूची से नाम हटा दिया जाएगा और मत डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
एनजीओ इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने ट्विटर पर लिखा कि उसके एक कर्मचारी को उसके बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) ने संपर्क कर कहा कि वो अपना आधार नंबर दें नहीं तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा.
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स्वैच्छिक या अनिवार्य
उस अधिकारी ने यह भी बताया कि 16 अगस्त को जारी एक पत्र के जरिए हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सभी बीएलओ से कहा कि वो घर घर जा कर मतदाताओं के आधार नंबर हासिल करें. उस पत्र में लिखा हुआ है कि आधार नंबर देना स्वैच्छिक है, लेकिन आयोग के अधिकारी इसे अनिवार्य बता रहे हैं.
आईएफएफ का कहना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि कानून जब संसद से पारित हुआ तब उसमें तो 'स्वैच्छिक आधार' का जिक्र किया गया था लेकिन बाद में विधि मंत्रालय ने जब कानून के नियम बनाए तो उनमें आधार नंबर देना अनिवार्य कर दिया गया.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह चिंता का विषय है क्योंकि मत डालने के अधिकार को आधार की जानकारी साझा करने या ना करने से नहीं जोड़ा जा सकता. आधार के बारे में तो खुद यूआईडीएआई कहती है कि वह "ना तो नागरिकता का प्रमाण है और ना निवास का."
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डाटा की सुरक्षा
इस संबंध में हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया है कि आधार नंबर लेने का उद्देश्य मतदाताओं की जानकारी का सत्यापन है और यह पूरी तरह से स्वैच्छिक है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि आधार नंबर ना देने से किसी का भी नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा.
लेकिन इसे लेकर पहले भी चिंताएं जताई जा चुकी हैं. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने कुछ ही दिनों पहले चुनाव आयोग को एक पत्र लिखकर इस विषय को उठाया था.
कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आधार के डाटाबेस में मतदाता सूची के डेटाबेस से ज्यादा त्रुटियां पाई जाती हैं, इसलिए इन्हें जोड़ना ठीक नहीं होगा.
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दूसर, डाटा सुरक्षा कानून के अभाव में नागरिकों का डेटा जमा करने वाले संस्थानों की संख्या का बढ़ना ठीक नहीं है क्योंकि डाटा की सुरक्षा की गारंटी कोई नहीं दे पाएगा और उसके दुरूपयोग का खतरा हमेशा बना रहेगा.