27 सालों में डूब जाएगा इस द्वीप का बड़ा हिस्सा
प्रशांत महासागर में स्थित द्वीप तुवालु जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से है. तुवालु ने जलवायु परिवर्तन और प्रशांत महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए हैं.
दक्षिणी प्रशांत का छोटा सा देश
तुवालु ऑस्ट्रेलिया और हवाई के ठीक बीच में स्थित है. यह मात्र 26 वर्ग किलोमीटर में फैला है और यहां करीब 11,200 लोग रहते हैं. समुद्र में जब ज्वार भाटाएं आती हैं तो इस द्वीप के मुख्य भूभाग का करीब 40 प्रतिशत इलाका समुद्र के नीचे डूब जाता है.
जलवायु परिवर्तन का खतरा
अनुमान है कि 2050 तक इसकी राजधानी फुनाफुटी का आधा हिस्सा डूब जाएगा. इन हालात की तैयारी करने के लिए तुवालु ने ऑस्ट्रेलिया के साथ "फलेपी यूनियन" संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत समुद्र से जमीन लेकर फुनाफुटी के क्षेत्रफल को करीब छह प्रतिशत बढ़ाने के लिए 1.69 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर मिलेंगे. इस जमीन पर नए घर बनेंगे.
मिलेगी सुरक्षा
तुवालु उन 42 देशों के समूह का सदस्य है जिन पर समुद्र के बढ़ते जलस्तर का सबसे ज्यादा खतरा है. इस संधि के तहत ऑस्ट्रेलिया तुवालु की बड़ी प्राकृतिक आपदाओं, महामारी और सैन्य आक्रमणों के दौरान भी सहायता करेगा.
दुनिया को संदेश
तुवालु के जोखिम भरे हालात ने उसे जलवायु परिवर्तन की राजनीति के केंद्र में ला दिया है. 2021 में उस समय के विदेश मंत्री साइमन कोफे ने संयुक्त राष्ट्र के कोप26 सम्मेलन को ऐसी जगह पर घुटनों तक गहरे पानी में खड़े रह कर संबोधित किया था जो पहले पानी के ऊपर थी.
कैसे बचेगी पहचान
2021 में तुवालु ने कहा था कि बढ़ता समुद्र अगर पूरे देश को ही निगल गया तो वो एक राष्ट्र के तौर पर अपनी मान्यता और अपने आर्थिक समुद्री इलाके को बरकरार रखने के तरीके तलाश रहा है. अब इस संधि के तहत ऑस्ट्रेलिया एक विशेष वीजा कार्यक्रम के तहत हर साल इस द्वीप राष्ट्र के 280 लोगों को ऑस्ट्रेलिया प्रवास करने की इजाजत देगा.
चीन से चिंता
2019 में तुवालु ने कृत्रिम द्वीप बनाने के चीनी कंपनियों के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था. यह उन 13 देशों में से थे जिनके ताइवान के साथ आधिकारिक रूप से कूटनीतिक रिश्ते हैं, जिस वजह से चीन से उसके रिश्ते अच्छे नहीं हैं. प्रधानमंत्री कौसेया नतानो पिछले साथ ताइवान गए थे और वहां "मजबूती से" चीन के साथ खड़े होने का वादा किया था. (रॉयटर्स)