दुनिया के लिए कितना अहम है कॉप 28
३० नवम्बर २०२३दुबई में 28वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-कॉप 28 शुरू हो गया है. यह सम्मेलन 12 दिसंबर तक चलेगा. इसमें 160 से अधिक देशों के नेता भाग ले रहे हैं. कॉप 28 जलवायु परिवर्तन की साझा चुनौती से निपटने की रणनीति और सामूहिक प्रयासों पर चर्चा का मंच है.
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को उम्मीद है कि सम्मेलन में जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को कम करने और अनुकूलता पर वैश्विक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को तीन गुना करने और 2030 तक ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने पर समझौता हो जाएगा.
कॉप 28 में दुनियाभर के नेता इस बात पर चर्चा करेंगे कि धरती के बढ़ते तापमान को धीमा कैसे किया जाए और साथ ही बहस इस पर भी होगी कि कृषि उत्सर्जन, खाद्य असुरक्षा और कठोर मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए देश क्या कदम उठा सकते हैं.
बीता साल कई देशों के लिए कठिन रहा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण कई देशों में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया, तो कहीं भयानक बाढ़ आई. कहीं जंगलों की आग ने हजारों किलोमीटर की जमीन को खाक कर दिया.
जलवायु क्षति कोष पर नजर
दुबई में जुट रहे प्रतिनिधियों को उम्मीद है कि शिखर सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन और अन्य विभाजनकारी विषयों पर अपना ध्यान केंद्रित करने से पहले जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विकासशील देशों को मुआवजा देने के लिए हानि और क्षति कोष पर समझौता हो सकता है.
बैठक के एजेंडे में क्लाइमेट फाइनेंस या जलवायु क्षति कोष को भी उच्च स्थान पर रखते हुए सम्मेलन के पहले जलवायु आपदाओं से प्रभावित गरीब देशों में नुकसान और क्षति को कवर करने के लिए एक नए संयुक्त राष्ट्र कोष की रूपरेखा को औपचारिक रूप से अपनाने के लिए एक प्रस्ताव प्रकाशित किया गया.
ये कोष ऐसे गरीब देशों की मदद करेगा जो जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक बाढ़ या लगातार सूखे से प्रभावित होते हैं. कुछ राजनयिकों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि समझौते के मसौदे को जल्द मंजूरी मिल जाएगी.
एक प्रतिनिधि ने इस बिंदु पर आपत्तियों की संभावना को "मुसीबतों का पिटारा खोलने" जैसा बताया. यह सौदा अमीर और विकासशील देशों की कई महीनों की कठिन बातचीत के बाद तैयार किया गया है.
जीवाश्म ईंधन पर क्या नीति अपनाएंगे नेता
इसके अलावा दुनिया भर की सरकारें इस बात पर मैराथन बातचीत की तैयारी कर रही हैं कि क्या दुनिया में पहली बार ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य स्रोत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाले कोयले, तेल और गैस के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने पर सहमति दी जाए या नहीं.
दुबई में हो रहे इस सम्मेलन में दुनियाभर के नेता, कार्यकर्ता और पैरवीकार समेत 97,000 लोगों के शामिल होने की उम्मीद हैं, जिसे अपनी तरह की सबसे बड़ी जलवायु सभा के रूप में माना जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र और मेजबान संयुक्त अरब अमीरात का कहना है कि कॉप 28 के नाम से जानी जाने वाली ये वार्ता 2015 में पेरिस के बाद से सबसे महत्वपूर्ण होगी.
2015 में कॉप 21 में पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के बाद, भविष्य के सम्मेलन इसके प्रमुख लक्ष्य को लागू करने के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं- वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रोकना और वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया इन लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं है और देशों को जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभावों को रोकने के लिए उत्सर्जन में तेजी से कटौती करनी चाहिए.
इस सम्मेलन में भाग ले रहे देश 30 नवंबर से 12 दिसंबर के बीच कई जटिल मुद्दों से निपटेंगे और विशेषज्ञों का कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव और देशों में आपस में विश्वास कायम करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
दुनिया के दो सबसे बड़े प्रदूषक देशों के प्रमुख अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए दो दिनों की दुबई यात्रा पर हैं.
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका और फ्रांस ऐसा प्रस्ताव ला सकते हैं जिससे भारत को आने वाले समय में परेशानी हो सकती है. यह प्रस्ताव कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए निजी फंडिंग रोकने को लेकर है.
भारतीय विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने गुरुवार को पत्रकार वार्ता में कहा कि भारत को उम्मीद है कि इस शिखर सम्मेलन में जलवायु वित्त के बारे में एक स्पष्ट कार्य योजना पर सहमति बनेगी.
क्वात्रा ने बताया कि मोदी शुक्रवार को शिखर सम्मेलन को संबोधित करेंगे और तीन उच्च स्तरीय कार्यक्रमों में भाग लेंगे.