अदालत ने दी 33 हफ्तों के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत
६ दिसम्बर २०२२26 साल की महिला ने अदालत से अपील की थी कि भ्रूण में दिमागी असामान्यताएं नजर आ रही हैं, इसलिए उसे गर्भपात की अनुमति दे दी जाए. दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने महिला की अपील को ठुकरा दिया था.
बोर्ड ने कहा था कि गर्भावस्था काफी आगे के चरण में है इसलिए गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती. कानूनी तौर पर देश में गर्भपात की अनुमति देने के लिए 24 हफ्तों की ऊपरी सीमा है. इस मामले में गर्भावस्था नौ हफ्ते और आगे थी, यानी लगभग आठवें महीने में.
बोर्ड से अनुमति ना मिलने के बाद महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट के दरवाजे खटखटाए थे. जज प्रतिभा सिंह ने महिला की बात सुनी और अस्पताल के न्यूरोसर्जन और स्त्री-रोग विशेषज्ञ से भी विमर्श किया.
भविष्य का सवाल
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि न्यूरोसर्जन ने भ्रूण में मानसिक असामान्यताओं के होने की पुष्टि की लेकिन साथ ही यह भी कहा अगर इस बच्चे का जन्म होता है तो आगे चल कर इसका जीवन कैसा होगा यह अभी से कहना मुश्किल है.
न्यूरोसर्जन ने यह भी कहा था कि जन्म के 10 हफ्तों बाद एक सर्जरी कर कुछ समस्याओं का इलाज किया जा सकता है. जज प्रतिभा सिंह के बयानों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मामले को लेकर वो पशोपेश में थीं.
उनका कहना था तकनीक जैसे जैसे उन्नत होती जा रही है, भविष्य में गर्भ के अंदर पल रहे भ्रूण के बारे में काफी बातों का पता लगाया जा सकेगा. संभव है कि जेनेटिक जांच और आईक्यू जांच भी की जा सके. ऐसे में क्या माता-पिता ऐसे बच्चों को पैदा करने से मना कर देंगे?
सिंह ने आगे कहा, "मैं कोई पक्ष नहीं ले रही हूं. मैं बस इतना कह रही हूं कि क्या हम भविष्य में ऐसे समाज की तरफ देख रहे हैं जिसमें सिर्फ परफेक्ट बच्चे होंगे?" हालांकि अंत में सिंह ने फैसला दिया कि भारतीय कानून के तहत गर्भावस्था को आगे बढ़ाना है या नहीं यह सिर्फ मां का फैसला होता है, इसलिए महिला को गर्भपात की अनुमति दी जाती है.
अदालत ने आदेश दिया कि महिला एलएनजेपी अस्पताल में ही या अपनी पसंद के किसी भी अस्पताल में तुरंत गर्भपात करवा सकती है. इस मामले ने गर्भपात को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है. अभी तक देश में गर्भपात की अनुमति के लिए 24 हफ्तों की समयसीमा तय थी, लेकिन इसके बाद के मामलों के लिए यह मामला नजीर बन सकता है.