क्या जर्मनी में काम करने के लिए जर्मन सीखना जरूरी है?
१८ अक्टूबर २०२४दुलाज मधुशन को कुत्तों का खाना सबसे ज्यादा नापसंद है. जर्मनी की राजधानी बर्लिन में अमेजॉन सॉर्टिंग सेंटर में ट्रकों से 15 किलो वाले दर्जनों पैक को कन्वेयर बेल्ट तक उठाना उनकी नौ घंटे की शिफ्ट का सबसे नापसंद काम है. मूल रूप से श्रीलंका के रहने वाले 29 वर्षीय मधुशन के लिए सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि जर्मनी में वे अन्य काम करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें मजबूरन यह काम करना पड़ रहा है.
उनके पास अपने देश में बस चलाने का लाइसेंस है और वे स्थानीय अखबारों में इस बारे में लेख देख-देख कर थक गए हैं कि कैसे जर्मन राजधानी की सार्वजनिक परिवहन कंपनी बीवीजी में कर्मचारियों की इतनी कमी है कि उसे समय के हिसाब से बसों का परिचालन करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
अपने जीवनसाथी के यूरोपीय संघ का नागरिक होने की बदौलत, आखिरकार 10 साल का रेजिडेंसी परमिट मिलने के तीन महीने बाद भी मधुशन अभी बस चलाने के करीब नहीं पहुंच पाए हैं. मधुशन ने डीडब्ल्यू को बताया, "जर्मनी में मेरे पहले कुछ महीने काफी ज्यादा तनावपूर्ण रहे. मुझे लगा था कि यहां रहना आसान होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. मुझे एक साथ ही यहां की भाषा भी सीखनी होगी और व्यावसायिक प्रशिक्षण भी हासिल करना होगा. मुझे नहीं पता कि मैं ये काम कहां से कर सकता हूं.”
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उनके प्रयास अब तक निराशाजनक रहे हैं. वे बीवीजी के जिस कार्यालय में गए वहां मौजूद व्यक्ति बहुत कम अंग्रेजी बोलता था. उसने कहा कि भर्ती से जुड़ी जानकारी देखने के लिए बीवीजी की वेबसाइट पर जाएं. यह वेबसाइट सिर्फ जर्मन में है. मधुशन को आखिरकार पता चला कि बस चालक के तौर पर काम करने के लिए उन्हें इंटरमीडिएट लेवल की जर्मन भाषा आनी चाहिए.
हालांकि, बीवीजी की वेबसाइट पर उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली कि क्या बीवीजी इस तरह का कोर्स ऑफर करता है या वे अपने श्रीलंकाई ड्राइविंग लाइसेंस को जर्मनी में मान्यता कैसे दिला सकते हैं. डीडब्ल्यू को दिए बयान में बीवीजी ने कहा कि विदेशी कर्मचारियों की भर्ती ‘एजेंडे में' थी और जर्मन पाठ्यक्रम उन लोगों के लिए उपलब्ध थे जिनके पास पहले से ही योग्यताएं हैं.
बीवीजी के प्रवक्ता ने कहा, "अभी और भी तरीकों पर विचार किया जा रहा है. हम अपने साझेदारों के साथ मिलकर बर्लिन में पहले से रह रहे विदेशी कुशल श्रमिकों की भर्ती कर रहे हैं. हम उन्हें बस चालक की नौकरी के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं.” मधुशन जब जॉब सेंटर गए, तो वहां भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वहां जिस अधिकारी ने उनसे बात की वह धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल सकती थी, लेकिन उन्होंने मधुशन से कहा कि उन्हें अनुवाद के लिए अपने साथ एक जर्मन वक्ता लाना होगा.
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इन निराशाजनक स्थितियों का सामना करते हुए मधुशन ने पैसे कमाने के लिए नौकरी करने का सबसे आसान और तेज रास्ता चुना. उन्होंने एक प्रमुख यूरोपियन भर्ती एजेंसी की मदद से अमेजॉन सॉर्टिंग सेंटर में नौकरी हासिल की. इसके लिए, न तो जर्मन भाषा जानने की जरूरत होती है और न ही किसी योग्यता की.
काम पर कोई जर्मन नहीं
मधुशन ने कहा कि इस विशाल गोदाम में शायद ही कोई जर्मन व्यक्ति है. यहां काम करने वाले मुख्य रूप से अंग्रेजी बोलते हैं, क्योंकि यह एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे लगभग सभी लोग समझते हैं. उन्होंने कहा, "मेरे सुपरवाइजर भी अफगान, सीरियाई या पाकिस्तानी हैं. इसलिए, वे मीटिंग में अंग्रेजी में ही बात करते हैं. यहां भारत और अफ्रीका के भी कई सारे कर्मचारी हैं. वे भी एक-दूसरे को समझ आने वाली भाषा में बात करते हैं.”
क्या जर्मन सीखने से उन्हें वहां काम करने के दौरान कोई फायदा होगा? इसके जवाब में मधुशन ने कहा, "नहीं, वहां कोई फायदा नहीं होगा.”
फ्रैंकफर्ट (ओडर) में वियाड्रिना यूरोपियन यूनिवर्सिटी में भाषा के इस्तेमाल और माइग्रेशन की प्रोफेसर ब्रिटा श्नाइडर ने कहा कि यह एक आम अनुभव है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जर्मनी में लोग अक्सर कहते हैं कि अप्रवासियों को जर्मन सीखनी चाहिए. अगर आप जर्मन नहीं सीखते हैं, तो इसका मतलब है कि आप इस समाज में शामिल नहीं होना चाहते हैं. हालांकि, हकीकत यह है कि कई अप्रवासियों को जर्मन की ज्यादा जानकारी नहीं होती है, इसके बावजूद उन्हें नौकरी मिल जाती है. इससे पता चलता है कि लोग जो कहते हैं और जो हकीकत है, उसमें काफी ज्यादा अंतर है.”
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श्नाइडर ने कहा कि इसका नतीजा यह है कि कई आप्रवासी जर्मन नहीं सीखना चाहते हैं. इसकी वजह यह भी है कि वयस्कों के लिए शिक्षा केंद्रों में पेश किए जाने वाले आधिकारिक जर्मन पाठ्यक्रम के लिए इतना ज्यादा समय देना पड़ता है कि नौकरी के साथ-साथ पाठ्यक्रम को पूरा करना मुश्किल हो जाता है.
उदाहरण के लिए, बर्लिन में 100 घंटे के छह मॉड्यूल वाला एक कोर्स पेश किया जा रहा है. इसे हर हफ्ते में पांच दिन तक चार घंटे के ब्लॉक में पढ़ाया जाता है. ऐसे में मधुशन के लिए नौकरी करते हुए इस पाठ्यक्रम को पूरा करना संभव नहीं है.
कई अप्रवासियों ने यह भी महसूस किया है कि जर्मनी में उन्हें नौकरी खोजना काफी मुश्किल होता है. जनवरी में जारी ओईसीडी सर्वे में, जर्मनी में पहले से मौजूद कुशल श्रमिकों या आने के इच्छुक लोगों से पूछा गया कि वे किन क्षेत्रों में ज्यादा सहायता चाहते हैं. इसके जवाब में ज्यादातर लोगों ने कहा कि वे नौकरी ढूंढने और जर्मन सीखने के लिए ज्यादा सहायता चाहते हैं.
इसी सर्वे में विदेशी श्रमिकों के बीच अपेक्षाओं और वास्तविकता में बड़ा अंतर देखने को मिला. जब उनसे पूछा गया कि क्या देश में बेहतर नौकरी पाने के लिए जर्मन सीखना महत्वपूर्ण है, तो जर्मनी में आने से पहले 52 फीसदी लोगों का जवाब हां था, लेकिन 65 फीसदी लोगों ने यहां आने के बाद सोचा कि जर्मन सीखना जरूरी है.
बहुत से विदेशी श्रमिक यह महसूस करते हैं कि जर्मनी में उनका उस तरह से स्वागत नहीं किया गया जैसा उन्होंने सोचा था. जब उनसे पूछा गया कि क्या जर्मनी को ‘विदेशी कर्मचारियों को आकर्षित करने में वाकई में दिलचस्पी' है, तो 55 फीसदी ने विदेश में रहते हुए हां कहा, लेकिन जर्मनी में रहने के बाद केवल 33 फीसदी ही इस बात से सहमत हुए.
कई भाषा बोलने वाला समाज
जर्मनी और यूरोप में, लोग अक्सर यह बात करते हैं कि आप्रवासियों के लिए जर्मन समाज का हिस्सा बनना कितना जरूरी है. हालांकि, हकीकत यह है कि जर्मन भाषा की पर्याप्त जानकारी के बिना भी कई अप्रवासी इस समाज का हिस्सा बन सकते हैं. श्नाइडर कहती हैं कि सामाजिक वास्तविकता यह है कि यहां कई भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं और जर्मन भाषा हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाती है.
उन्होंने इस धारणा पर भी सवाल उठाया कि देशों को एकभाषी होना चाहिए और सामाजिक सामंजस्य के लिए एक ही भाषा में बातचीत करना जरूरी है. उन्होंने कहा, "यह वास्तव में उचित नहीं है, क्योंकि हमारे पास कुशल श्रमिकों की कमी है.”
इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि विदेशी कर्मचारियों को आकर्षित करने के मामले में जर्मनी अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में संघर्ष कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय आप्रवासी नेटवर्क इंटरनेशंस ने विदेशी कर्मचारियों के लिए सबसे आकर्षक देशों का सर्वे किया और पाया कि जर्मनी 53 देशों में से 50वें स्थान पर आया है. जबकि, जर्मनी में नौकरी के कई अवसर उपलब्ध थे. सर्वे में पाया गया कि आप्रवासियों को यहां बसने में संघर्ष करना पड़ता है.
सर्वे से यह निष्कर्ष निकला, "आप्रवासियों को दोस्त बनाने, आवास खोजने और जर्मनी के डिजिटल बुनियादी ढांचे की कमी से निपटने में बहुत कठिनाई होती है.” ओईसीडी के 2023 के ‘टैलेंट अट्रैक्टिवनेस' इंडेक्स में जर्मनी का स्थान थोड़ा अच्छा था. इसमें जर्मनी को 38 में से 15वें स्थान पर रखा गया था. हालांकि, यह अमेरिका, यूके और कनाडा जैसे देशों से पीछे था.
इसके बावजूद, जर्मनी में नौकरी करने के लिए अंग्रेजी एक अधिक महत्वपूर्ण भाषा बनती दिख रही है, खासकर बर्लिन जैसे बड़े शहरों में. जर्मन स्टार्टअप एसोसिएशन ने इस वर्ष पाया कि बर्लिन में कामकाजी भाषा अंग्रेजी है और वहां स्टार्टअप का अनुपात 42.3 फीसदी से बढ़कर 55.8 फीसदी हो गया है.
हालांकि, माइंत्स यूनिवर्सिटी में इंटर-कल्चर कम्युनिकेशन के प्रोफेसर बर्न्ड मायर ने बताया कि यह जर्मनी के सभी इलाकों या उन क्षेत्रों के लिए सच नहीं है जहां ज्यादा श्रमिकों की जरूरत है.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "देखभाल वाले क्षेत्र या अस्पतालों में, जर्मन भाषा की जानकारी के बिना काम करना मुश्किल है. यहां काम करने वाले कर्मचारियों को मरीजों या डॉक्टरों से बात करने में सक्षम होना चाहिए.”
साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि जर्मन समाज को ज्यादा बहुभाषी बनने की जरूरत है. वह कहते हैं, "अधिकारियों, डॉक्टरों, और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोगों को कई भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि देश की जनसंख्या में अलग-अलग भाषा बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है.”
समय के साथ इस दिशा में प्रगति हुई है. जर्मनी की रोजगार एजेंसियां अब खास तौर पर ऐसे लोगों को रोजगार दे रही हैं जो अन्य भाषाएं बोल सकते हैं, विशेष रूप से तुर्की और रूसी भाषा.
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श्नाइडर का यह भी मानना है कि कंपनियां इस मामले में बेहतर कदम उठा सकती हैं. जैसे, अपनी जरूरत के हिसाब से जर्मन भाषा के छोटे कोर्स पेश करना. इससे आप्रवासियों को नौकरी की तलाश करने से पहले, भाषा के कोर्स के कई सौ घंटे बच जाएंगे. अगर मधुशन बस ड्राइवर बनना चाहते हैं, तो उन्हें जर्मन सीखनी ही होगा. हालांकि, ऐसा लगता है कि उन्हें इसका खर्च खुद से उठाना होगा, शायद अमेजॉन से होने वाली अपनी कमाई से.