शिक्षा: अमीर और गरीब बच्चों के बीच क्यों बढ़ रही है असमानता
२२ दिसम्बर २०२३कोरोना महामारी की वजह से बच्चों की शिक्षा पर काफी ज्यादा असर पड़ा. 2018 से 2022 के बीच गणित, विज्ञान और बोलकर पढ़ने की क्षमता में काफी ज्यादा गिरावट आई. यह प्रवृति दुनिया भर में देखी गई.
शोध से पता चलता है कि समाज के वंचित तबके के बच्चों को आर्थिक तौर पर सशक्त परिवार के बच्चों के मुकाबले ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. आर्थिक विषमता की वजह से अमीर और गरीब परिवार के बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन में अंतर बढ़ रहा है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रवृति वैसे तो पूरी दुनिया में देखी जा रही है, लेकिन अमेरिका और जर्मनी जैसे अमीर देशों में यह विशेष तौर पर देखने को मिल रहा है. अब एक नए वैश्विक अध्ययन के नतीजों का लक्ष्य यह बताना है कि ऐसा क्यों हो रहा है.
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में कार्यरत और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक रॉब ग्रुइटर्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "बहुत से लोगों का मानना है कि कम आय वाले परिवार के छात्रों में कुछ सामाजिक और भावनात्मक कौशल की कमी होती है, जैसे आगे बढ़ने की मानसिकता या दृढ़ता या फिर स्कूली शिक्षा के प्रति उनका रवैया नकारात्मक होता है. यही कारण है कि वो बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं. जबकि, इस विचार से जुड़े कोई खास अनुभवजन्य साक्ष्य नहीं हैं.”
सोशियोलॉजी ऑफ एजुकेशन जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में 74 देशों के आंकड़े शामिल किए गए हैं. इसमें तर्क दिया गया है कि बच्चों में आत्म-जागरूकता और व्यक्तिगत कौशल विकसित करने से, अमीर और गरीब बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन के अंतर को दूर नहीं किया जा सकता. इस विचार का समर्थन अन्य क्षेत्र के शोधकर्ताओं ने भी किया है.
जर्मनी की बीलेफेल्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा विशेषज्ञ एंटोनेटा पोट्सी ने कहा, "नए लेख से पता चलता है कि मानसिकता या दृष्टिकोण से यह तय नहीं होता कि कोई बच्चा शैक्षणिक तौर पर बेहतर प्रदर्शन करेगा या नहीं. अनुसंधान से यह पता चलता है कि सामाजिक और शैक्षणिक असमानता की मुख्य वजह गरीबी है.” हालांकि, पोट्सी नए अध्ययन में शामिल नहीं थे.
अमेरिका में नीति निर्माताओं ने इस विचार पर ध्यान केंद्रित किया कि कम आय वाले परिवार के बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति के तौर पर ‘काम के प्रति समर्पण' और ‘चरित्र विकास' सिखाया जा सकता है.
इस अध्ययन में 2018 प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट (पीआईएसए) के डेटा का इस्तेमाल किया गया है. पीआईएसए एक तरह की जांच परीक्षा होती है. इसके तहत दुनिया भर में गणित, बोलकर पढ़ने और विज्ञान के क्षेत्र में 15 साल के बच्चों के प्रदर्शन का आकलन और तुलना की जाती है.
पीआईएसए में मनोवैज्ञानिक उपाय भी शामिल हैं. इनमें आगे बढ़ने की मानसिकता, खुद को बेहतर बनाना और किसी काम में विशेषज्ञता हासिल करना शामिल है. अध्ययन के दौरान इस बात का भी विश्लेषण किया गया कि शैक्षणिक असमानता को बढ़ाने में इन सामाजिक-भावनात्मक कौशल की कितनी भूमिका है.
ग्रुइटर्स ने कहा, "हमने पाया कि अमीर और गरीब बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन में सिर्फ नौ फीसदी अंतर इन सामाजिक और भावनात्मक कौशल की वजह से होता है. इसका मतलब है कि अगर हम उच्च और निम्न आय वर्ग वाले बच्चों में समान स्तर के सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करें, तो इससे उनके शैक्षणिक प्रदर्शन में अंतर थोड़ा ही कम हो सकता है.”
सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा से नहीं पड़ेगा ज्यादा फर्क
अध्ययन के लेखकों का तर्क है कि सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा को बढ़ावा देने से शैक्षणिक असमानता कम होने की संभावना नहीं है.
ग्रुइटर्स ने कहा, "शैक्षणिक असमानता को सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा के माध्यम से दूर नहीं किया जा सकता है. बच्चों में आगे बढ़ने की मानसिकता और सकारात्मक कार्य नीति विकसित करके संरचनात्मक कमियों को दूर किया जा सकता है, यह विचार वंचित तबके के छात्रों के सामने आने वाली असल बाधाओं को नजरअंदाज करता है. साथ ही, इससे असमानता बढ़ने के लिए उन्हीं छात्रों को दोषी ठहराया जा सकता है.”
पोट्सी ने कहा कि असल समस्या यह है कि घरेलू माहौल में कई गरीब बच्चों को पढ़ने और सीखने के लिए पर्याप्त साधन और अवसर नहीं मिल पाते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "इस अध्ययन से पता चलता है कि हम नीतिगत दृष्टिकोण की वजह से गलत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा की मदद से शैक्षणिक प्रणाली में मौजूद असमानता को दूर करने की बात पूरी तरह से गलत और भ्रामक है. हमें इस असमानता को दूर करने के लिए गरीबी से लड़ना होगा, ताकि सभी के लिए समान अवसर मुहैया कराए जा सकें.”
यह समस्या कोरोना महामारी के दौरान स्पष्ट रूप से देखने को मिली थी. उस समय स्कूल बंद हो गए थे और गरीब बच्चों के पास घर पर कंप्यूटर या किताब उपलब्ध नहीं थे. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में कराए गए एक सर्वे से पता चला कि महामारी के दौरान गरीब बच्चों में से एक तिहाई के पास घर पर पढ़ाई के लिए जरूरी साधन नहीं थे.
सरकारें क्या कर सकती हैं?
ग्रुइटर्स ने कहा कि शैक्षणिक व्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव की जरूरत है. उन्होंने बताया, "बच्चों के स्कूल पहुंचने से पहले ही पढ़ाई से जुड़ी कई तरह की असमानताएं सामने आने लगती हैं. जब बच्चे तीन से पांच साल के होते हैं, तो हम उनके कौशल और क्षमताओं में पर्याप्त अंतर देख सकते हैं. अगर आपके पास उच्च गुणवत्ता वाले ऐसे प्री-स्कूल होते जहां सभी बच्चे पढ़ते, तो कम उम्र में ही अलग-अलग वर्गों के बच्चों के बीच दिखने वाली असमानताओं को दूर किया जा सकता है.”
ग्रुइटर्स ने बताया कि एक अन्य उपाय यह है कि वंचित क्षेत्रों के स्कूलों में बेहतर शिक्षकों को पढ़ाने के लिए भेजा जाए और पर्याप्त संसाधन मुहैया कराए जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.
वह आगे कहते हैं, "कई देशों में हमें विपरीत स्थिति देखने को मिलती है. सबसे ज्यादा संसाधनों वाले स्कूलों में मध्यम और उच्च आय वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं. इसके अलावा, यही बच्चे निजी तौर पर ट्यूशन भी पढ़ते हैं. साथ ही, पाठ्यक्रम के अलावा अन्य गतिविधियों के लिए भी भुगतान करते हैं. जाहिर है, इससे शैक्षणिक असमानता तो बढ़ेगी ही.”