जम्मू-कश्मीर में चुनाव से क्या मिलेगा लोगों को
७ सितम्बर २०२४बीते महीनों में खासतौर से हिंदू बहुल जम्मू इलाके में ज्यादा हमले हुए हैं, जो बीते तीन दशकों की अलगाववादी हिंसा के दौरान मोटे तौर पर शांत रहा है.
2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के साथ ही उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था. तभी से यहां उप-राज्यपाल के जरिए केंद्र का शासन चल रहा है. अब विधानसभा चुनाव होने से एक बार फिर राज्य के शासन में स्थानीय लोगों की भूमिका अहम हो जाएगी.
क्या कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है
मतदान की तारीखें करीब आने के साथ ही चुनाव प्रचार में तेजी आ रही है. कांग्रेस पार्टी ने कश्मीर में फारुख अबदुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन किया है. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी है, जिसका कश्मीर घाटी में राजनीतिक आधार कमजोर है. हालांकि जम्मू के इलाके में यह काफी मजबूत है.
कश्मीर के विवाद का इतिहास
1947 में ब्रिटिश राज खत्म होने और आजादी मिलने के साथ ही भारत दो हिस्सों में बंट गया. कश्मीर का मसला विवादित रहा. इसके बाद के घटनाक्रम में कश्मीर का एक हिस्सा भारत और दूसरा हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया. पाकिस्तान लंबे समय से कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के 1948 में पारित प्रस्ताव को लागू कराने की मांग करता है. इस प्रस्ताव में कश्मीरियों को जनमत संग्रह के जरिए यह बताने का मौका देने की बात है कि वे किस देश के साथ रहना चाहते हैं.
भारतीय कश्मीर में 1989 से ही भारत सरकार के शासन के खिलाफ चरमपंथी हमले हो रहे हैं. कश्मीर में चल रही इन गतिविधियों को भारत, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद कहता है. हालांकि पाकिस्तान इससे इनकार करता है. अब तक इस संघर्ष में दसियों हजार आम लोगों, विद्रोहियों और भारतीय सैनिकों की मौत हो चुकी है. बहुत से कश्मीरी मुसलमान इसे आजादी का जायज संघर्ष करार देते हैं.
जम्मू-कश्मीर तीन दिन में तीन आतंकी हमले
जम्मू कश्मीर का वर्तमान दर्जा क्या है
जम्मू-कश्मीर में 2018 से ही स्थानीय सरकार नहीं है. उस वक्त भारतीय जनता पार्टी ने सत्ताधारी क्षेत्रीय दल- पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी. इसके बाद विधानसभा भंग कर दी गई. करीब एक साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इलाके का अर्ध-स्वायत्त दर्जा खत्म कर इसे एक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया. इसके नतीजे में कश्मीर को अपना झंडा, क्रिमिनल कोड, संविधान के साथ ही जमीन और नौकरी के मामले में मिला संरक्षण खोना पड़ गया.
प्रदेश को दो केंद्र प्रशासित राज्यों- लद्दाख और जम्मू कश्मीर में बांट दिया गया. सत्ता सीधे केंद्र सरकार के हाथ में चली गई. भारत सरकार को यहां के लिए प्रशासक नियुक्त करने और बगैर चुनाव के अधिकारियों की मदद से राज्य का प्रशासन चलाने का अधिकार मिल गया. इसके बाद से यहां कई कानूनी और प्रशासनिक बदलाव हुए हैं जिसमें स्थानीय लोगों की कोई खास भागीदारी नहीं रही.
स्थानीय लोगों की सबसे ज्यादा नाराजगी कथित रूप से नागरिक अधिकारों और मीडिया पर शिकंजे को लेकर रही है. दूसरी तरफ भारतीय अधिकारी बार-बार इस कदम को "नया कश्मीर" बनाने की कवायद बताते हैं. उनके मुताबिक, राज्य में अलगाववाद से निपटने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ ही इलाके को पूरी तरह भारत के साथ एकजुट करने के लिए यह जरूरी था.
भारत सरकार ही करेगी फैसले
जम्मू-कश्मीर में चुनाव 18 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच होंगे जबकि वोटों की गिनती 8 अक्टूबर को होगी. सैद्धांतिक रूप से राज्य का प्रशासन स्थानीय विधानसभा के जरिए चुने गए मुख्यमंत्री के पास आ जाएगा. मुख्यमंत्री के पास एक मंत्रिपरिषद होगी और यह कुछ कुछ वैसा ही होगा जैसे 2018 के पहले था. हालांकि इन चुनावों से बनने वाली नई सरकार के पास पहले जैसी वैधानिक शक्तियां नहीं मिलेगी.
जम्मू-कश्मीर चुनाव के बाद भी एक केंद्रशासित प्रदेश ही बना रहेगा. चुनी हुई सरकार के पास केवल शिक्षा और संस्कृति जैसे मसलों पर नाममात्र के ही अधिकार होंगे. अहम फैसले केंद्र सरकार ही करेगी. प्रदेश की नई सरकार को अधिकार देने के लिए उसके राज्य के दर्जे को बहाल करना होगा. नेशनल कांफ्रेंस और पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ने कश्मीर की अर्ध-स्वायत्तता को वापस दिलाने के लिए कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ने की बात कही है.
कश्मीरी लोगों के लिए ये चुनाव क्या हैं?
बहुत से लोगों में इन चुनावों को लेकर कोई उत्साह नहीं है, खासतौर से घाटी में. हालांकि ऐसे लोग भी हैं जिन्हें लग रहा है कि प्रधानमंत्री की पार्टी के खिलाफ नाराजगी जताने का यह अच्छा मौका है. वे अपने वोटों के जरिए यह काम करना चाहते हैं. इलाके में रहने वाले बहुत से मुस्लिम भारत से आजादी की बात करते हैं, लेकिन यहां के राजनीतिक दलों के नेता भारत के साथ रहना चाहते हैं. इनमें से कई नेताओं को शांति भंग करने के आरोप में महीनों तक जेल में रखा गया. कुछ लोग भ्रष्टाचार के आरोपों में भी जेल में बंद रहे. ये लोग इन चुनावों को राज्य में सत्ताधारी पार्टी की तरफ से हुए बदलावों का विरोध करने के मौके के रूप में देख रहे हैं.
ऐतिहासिक रूप से भारतीय कश्मीर में चुनाव संवेदशील मामला रहा है. बहुत से लोगों का मानना है कि इलाके के भारत समर्थक राजनेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए चुनावों में कई बार धांधली भी हुई है. इससे पहले के चुनावों में कश्मीर की अलगाववादी पार्टियों के नेता इनका बहिष्कार करते रहे हैं. वे भारत की संप्रभुता को चुनौती देते हैं और इसे सैन्य कब्जे में अवैध कार्रवाई करार देते हैं.
एनआर/आरएस (एपी)