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भारत में मुस्लिमों का सिमटता प्रतिनिधित्व

७ जुलाई २०२२

मुख्तार अब्बास नकवी के राज्यसभा कार्यकाल के अंत के साथ इतिहास में पहली बार संसद में बीजेपी का एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं बचा है. इस समय देश की किसी भी विधान सभा में भी बीजेपी का एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है.

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Indien | Jama Masjid Moschee in Mumbai
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS

लोकसभा में तो पहले से ही बीजेपी का कोई सदस्य नहीं था, राज्यसभा में अभी तक तीन सदस्य थे. इनमें से पूर्व केंद्रीय मंत्री एम जे अकबर का कार्यकाल 29 जून को और बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद जफर आलम का कार्यकाल चार जुलाई को समाप्त हो गया.

नकवी का कार्यकाल सात जुलाई को समाप्त हो गया. इसके बाद बीजेपी के पास पूरे देश में ना एक भी मुस्लिम सांसद बचेगा ना विधायक. बीजेपी के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है. मुस्लिमों को चुनावी टिकट ना देने की पार्टी में कोई आधिकारिक नीति नहीं है.

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बीजेपी के पास इस समय 396 सांसद और 1,379 विधायक हैं और इनमें से एक भी मुस्लिम नहीं हैतस्वीर: Markus Schreiber/AFP

बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवारों को अलग अलग चुनावों में टिकट देती रही है, लेकिन बहुत कम संख्या में. 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने कुल 482 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से सिर्फ सात मुस्लिम थे. जीता एक भी नहीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे और उनमें से भी कोई नहीं जीता.

वैसे मुस्लिम सांसदों और विधायकों के मामले में कई दूसरी पार्टियों का रिकॉर्ड भी काफी खराब है, लेकिन बीजेपी पर ज्यादा ध्यान इसलिए जा रहा है क्योंकि वो इस समय जन प्रतिनिधियों की संख्या के लिहाज से देश की सबसे बड़ी पार्टी है. पार्टी के पास इस समय 396 सांसद और 1,379 विधायक हैं और इनमें से एक भी मुस्लिम नहीं है. यह ऐसे समय में हुआ है जब बीजेपी पर देश और विदेश में इस्लामोफोबिया फैलाने के आरोप लग रहे हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में करीब 15 प्रतिशत यानी कम से कम 20 करोड़ मुसलमान रहते हैं. यह देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है और आंकड़े दिखाते हैं कि इसका विधायिका में प्रतिनिधित्व सिमटता जा रहा है.

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यह ऐसे समय में हुआ है जब बीजेपी पर देश और विदेश में इस्लामोफोबिया फैलाने के आरोप लग रहे हैंतस्वीर: Debarchan Chatterjee/Zumapress/picture alliance

स्टैटिस्टा वेबसाइट के मुताबिक भारतीय संसद में मुस्लिम सदस्यों का आंकड़ा 1970 और 1980 के दशकों में सबसे ज्यादा, यानी नौ प्रतिशत के ऊपर, था. उसके बाद से इसमें गिरावट ही आती रही है और 2021 में यह आंकड़ा पांच प्रतिक्षत पर पहुंच गया. 

अल्पसंख्यक मंत्रालय का हाल

सरकार में मंत्री बने रहने के लिए विधायिका का सदस्य होना अनिवार्य होता है, इसलिए नकवी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से छह जुलाई को ही इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह अल्पसंख्यक मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी को दिया गया है.

ईरानी के पति तो पारसी हैं लेकिन वो खुद को हिंदू बताती हैं. उनके माता-पिता हिंदू हैं. इस लिहाज से अल्पसंख्यक मंत्रालय के इतिहास में भी पहली बार उसका कार्यभार एक ऐसे मंत्री को दिया गया है जो खुद अल्पसंख्यक नहीं है. मंत्रालय की स्थापना 2006 में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए की गई थी. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग भी इसी मंत्रालय के तहत काम करता है.

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