इस बीमारी के कारण बर्बाद हो रही महिलाओं की जिंदगी
२१ जनवरी २०२२रेहाना कादिर दाद की उम्र 30 साल है. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर पसंद की नौकरी करना चाहती थीं. हालांकि, तीसरे बच्चे के जन्म के दौरान ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला (प्रसूति नालव्रण) बनने की वजह से वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकीं. दाद, पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत स्थित घोटकी के अली माहेर गांव की रहने वाली हैं. वह उन हजारों महिलाओं में से एक हैं जो ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला बनने से पीड़ित हुई हैं. यह एक वजायनल इंजरी है जो प्रसव के दौरान हो जाती है. इस इंजुरी की वजह से महिलाओं में योनी के जरिए पेशाब व मल लीक होने की समस्या हो सकती है.
इससे उन्हें शर्मिंदगी, स्वास्थ्य समस्याएं, सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है. आमतौर पर यह समस्या लंबे प्रसव या प्रसव में दिक्कत आने के दौरान यूरिनरी ट्रैक्ट या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट और जेनिटल ट्रैक्ट के बीच असमान्य गतिविधियों के कारण होती है. हालांकि इसका पूरी तरह इलाज संभव है. यह दर्द महिलाओं को सिर्फ शारीरिक रूप से ही प्रभावित नहीं करता बल्कि उन्हें परिवार और समाज से भी अलग कर देता है. पाकिस्तान में ऐसी महिलाओं को उनके घरों से निकाल दिया जाता है या सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया जाता है.
शादी बना ‘बुरा सपना'
पढ़ने की चाह रखने और अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करने का सपना संजोये दाद की शादी 2012 में कर दी गई थी. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि आमतौर पर किसी की शादी उसकी जिंदगी में खुशी का सबसे बड़ा पल होता है, लेकिन उनके लिए यह ‘बुरा सपना' साबित हुआ. उन्होंने बताया कि उनका पति हमेशा उनका अपमान करता था. अक्सर उनके साथ हिंसा करता था. उन्होंने कहा कि वह पारिवारिक सम्मान के लिए अपने पति के दुर्व्यवहार को बर्दाश्त करती रहीं, लेकिन 2020 के नवंबर महीने में तीसरे बच्चे को जन्म देने के बाद उनकी जिंदगी नर्क से भी बदतर हो गई.
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दाद ने बताया, "मेरी सर्जरी के समय काफी ज्यादा परेशानी हुई. मुझे स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया था. यहां एक नर्स की गलती की वजह से मेरे शरीर से बहुत ही ज्यादा खून निकला. मुझे काफी ज्यादा दर्द हुआ. मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या हुआ." दाद ने आगे कहा, "नर्स ने मेरे पति को मेरे बारे में बार-बार कहा कि उसे संक्रमण है और तुरंत किसी अच्छे डॉक्टर से दिखाने की जरूरत है. इसके बाद, मेरे पति ने मुझे अपमानित करना शुरू कर दिया. उसने मुझे पैर से मारा. मुझे नहीं पता था कि ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला क्या होता है, लेकिन मेरे गांव की एक महिला को भी यही समस्या थी."
क्या कहते हैं आंकड़े?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, हर साल पूरी दुनिया में 50 हजार से एक लाख महिलाओं को ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला की समस्या का सामना करना पड़ता है. इस वजह से काफी महिलाएं बच्चे को जन्म देते समय अपनी जिंदगी गंवा देती हैं या बच्चे को खो देती हैं. जो महिलाएं इनसे बच जाती हैं उन्हें भी जिंदगी भर गंभीर स्वास्थ्यगत समस्याओं या शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है.
महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति होने वाली उदासीनता, इलाज में मदद में देरी आदि के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 23 मई को ‘इंटरनेशनल डे टु एंड ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला' मनाया जाता है, ताकि इस समस्या की वजह से किसी भी महिला को परेशानी न उठानी पड़े. इसकी शुरुआत 23 मई 2013 को हुई थी.
महिलाओं के साथ भेदभाव
दाद ने कहा कि बहुत से लोग उन्हें शर्मिंदा करने लगे. वह कहती हैं, "मैं जहां भी जाती, लोग मुझे घूरने लगते थे. लोग मेरा मजाक उड़ाते थे, अपमानित करते थे और कहते थे कि मैं अब कभी बच्चे पैदा नहीं कर पाऊंगी. कोई भी मेरे करीब नहीं आना चाहता था. जब मेरे ससुराल वाले देखते थे कि मुझे पेशाब लीक हो रहा है, तो वे हंस पड़ते थे. दिन में कई बार मेरी सलवार और पैंट धोयी जाती थी."
दाद के पिता ने इस स्थिति में उनकी काफी मदद की. उन्हें इलाज कराने में साथ दिया. वह कहती हैं, "मेरे पिता मुझे इलाज के लिए सिंध और पंजाब ले गए. आने-जाने के दौरान बस के चालक गाली-गलौज और अपमान करते थे, लेकिन उन्होंने चुपचाप सब बर्दाश्त किया." दाद की इलाज करने वाली एक महिला डॉक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया कि कराची के कूही गोथ महिला अस्पताल में इसका इलाज किया जा सकता है. इसके बाद, उनका परिवार उन्हें तुरंत कराची ले गया. मार्च 2021 में उनके ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला का ऑपरेशन हुआ.
दाद कहती हैं, "अब, मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं और प्रसव में सहायता देनेवाली दाई का कोर्स कर रही हूं. मैं इस बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहती हूं." हालांकि, वह अभी भी इस बीमारी की कीमत चुका रही हैं. वह कहती हैं, "मेरे तीन बच्चे हैं, लेकिन मेरे पति ने उनमें से दो को छीन लिया है. मैं महीनों से अपने बच्चे को नहीं देख पाई हूं." जिस अस्पताल में दाद का इलाज किया गया था, उस अस्पताल में कार्यरत स्त्री रोग विशेषज्ञ और एंडोस्कोपिक सर्जन डॉ. सना अशफाक ने कहा कि वह ऐसी कठिनाइयों का सामना करने वाली कई पाकिस्तानी महिलाओं में से एक थी.
वह कहती हैं, "ऐसी महिलाएं जिनकी उम्र ज्यादातर 18 से 35 के बीच होती है, अक्सर परिवार से अलग हो जाती हैं. उन्हें तलाक दे दिया जाता है. साथ ही, उन्हें अपमानित किया जाता है, गालियां दी जाती हैं, और कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है." अशफाक ने बताया कि इन महिलाओं के लिए यात्रा करना भी बुरा सपना बन जाता है, क्योंकि पेशाब लीक होने की वजह से कभी-कभी बस चालक उन्हें गाड़ी से उतार देते हैं.
बेघर हो जाती हैं महिलाएं
कराची की रहने वाली डॉक्टर शाहीन जफर ने डॉयचे वेले को बताया, "ऐसी महिलाओं को काफी ज्यादा ताने सुनने पड़ते हैं. लोग कहते हैं कि जरूर इसने (पीड़ित महिला) कोई पाप किया होगा या इसके अंदर कोई बुरी आत्मा है. पहले उनके पति उन्हें बिस्तर से और फिर घरों से बाहर निकाल देते हैं. महिलाओं के साथ ऐसी बीमारी के लिए भेदभाव किया जाता है जिसका आसानी से इलाज किया जा सकता है. समय पर इलाज कराने से यह बीमारी दूर हो सकती है."
अशफाक ने बताया कि इस स्थिति से सबसे ज्यादा पीड़ित वे महिलाएं हैं जो देश के दूर-दराज वाले इलाकों में रहती हैं और जिनके पास अस्पताल जाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं. वह कहती हैं, "कूही गोथ अस्पताल में ऐसी महिलाओं का मुफ्त में इलाज होता है. वहीं, निजी अस्पतालों में इसकी शुरुआती जांच के दौरान 20 से 35 हजार रुपये और सर्जरी कराने में काफी पैसे खर्च हो सकते हैं. इन्हीं तमाम खर्च को देखते हुए, लोग फकीरों या झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं. यहां स्थिति और खराब होने लगती है."
जफर का मानना है कि गांव की अप्रशिक्षित दाई भी इस समस्या को जटिल बनाने में जिम्मेदार हैं. वह कहती हैं कि इस बीमारी पर काफी कम शोध किया गया है. वह फिस्टुला फाउंडेशन के डेटा पर भरोसा करती हैं. इस संगठन का दावा है कि पाकिस्तान में हर साल ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला के लगभग 3,000 से 3,500 मामले सामने आते हैं. वह कहती हैं, "कूही में हम हर महीने 20 से 25 महिलाओं का ऑपरेशन करते हैं, लेकिन 22 करोड़ की आबादी वाले देश में सिर्फ यही एक अस्पताल है जहां इसका इलाज होता है."