क्या नरेंद्र मोदी सुधारेंगे पाकिस्तान के साथ रिश्ते
११ जून २०२४भारत के लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए की जीत और नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से उन्हें बधाइयां दी गईं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके और शहबाज के बड़े भाई नवाज शरीफ ने मोदी को जीत की बधाई दी. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्विटर पर लिखा, "भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने पर नरेंद्र मोदी को बधाई." इसके जवाब में मोदी ने लिखा, "शहबाज शरीफ आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया."
शहबाज शरीफ ने अपने ट्वीट में बस एक ही लाइन लिखी थी, जिसे उस बधाई संदेश को औपचारिकता जैसा ही कहा जा सकता है, लेकिन नवाज शरीफ के ट्वीट में जीत की शुभकामनाओं के आगे की बात कही गई.
नवाज शरीफ ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर लिखा, "तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद संभालने पर मोदी जी को मेरी हार्दिक बधाई. हाल के चुनावों में आपकी पार्टी की सफलता आपके नेतृत्व में लोगों के भरोसे को दर्शाती है." शरीफ ने अपने ट्वीट में आगे लिखा, "आइए हम नफरत को उम्मीद में बदलें और इस अवसर का लाभ उठाते हुए दक्षिण एशिया के दो अरब लोगों का भविष्य संवारें."
वरिष्ठ पत्रकार और विदेश मामलों की जानकार स्मिता शर्मा कहती हैं, "शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जिस तरह का वन लाइन मैसेज भेजा था, ठीक वैसी ही पारस्परिकता शहबाज की तरफ से देखने को मिली उनके संदेश में, नवाज शरीफ के संदेश में थोड़ी सी ज्यादा गर्माहट नजर आई. नवाज शरीफ के साथ जो निजी समीकरण हैं नरेंद्र मोदी के वह बीते वक्त में थोड़े से ज्यादा मजबूत रहे हैं. हालांकि, उसके बाद कई दिक्कतों की वजह से भारत-पाकिस्तान संबंध पूरी तरह से ठप्प पड़े हुए हैं."
भारत और पाकिस्तान के बीच ट्विटर कूटनीति
भारतीय प्रधानमंत्री ने शरीफ के संदेश की तारीफ तो की लेकिन भारत का रुख भी साफ कर दिया. मोदी ने शरीफ को जवाब देते हुए कहा, "भारत के लोग हमेशा शांति, सुरक्षा और प्रगतिशील विचारों के पक्षधर रहे हैं. हमारे लोगों की भलाई और सुरक्षा को आगे बढ़ाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए."
नवाज शरीफ के संदेश से लगता है कि वे भविष्य में भारत के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना चाहते हैं. लेकिन मोदी ने नवाज शरीफ के ट्वीट के जवाब में जो लिखा है उससे लगता है कि आतंकवाद को लेकर उनकी नीति तीसरे कार्यकाल में भी सख्त रहने वाली है. नवाज शरीफ को मोदी की प्रतिक्रिया भारत की लंबे समय से चली आ रही स्थिति का मौन संकेत थी कि दोनों पक्ष पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद की छाया में वार्ता नहीं कर सकते.
वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर कहते हैं कि "मोदी अभी गठबंधन सरकार चला रहे हैं और ऐसे में वे वैधता पाने के लिए ऐसे मतदाताओं को खुश करना चाहेंगे जिन्होंने इस चुनाव में बीजेपी को वोट नहीं दिया." कपूर ने कहा, "मोदी पाकिस्तान से बात करने का पैगाम भेज सकते हैं."
स्मिता शर्मा कहती हैं, "इन संदेशों का बहुत ज्यादा विश्लेषण नहीं कर सकते हैं, ये औपचारिकताएं हैं, इस साल कुछ महीनों के लिए छोटी खिड़की खुल सकती है जब भारत और पाकिस्तान चाहें तो रिश्तों को सुधारने के लिए कुछ कदम उठा सकते हैं. पाकिस्तान से रह-रहकर आवाजें उठ रही हैं, खासकर व्यापार के रिश्तों को लेकर. सिख तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान की तरफ से वीजा जारी किए जा रहे हैं. लेकिन बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि गेंद पाकिस्तान के पाले में है."
पाकिस्तान को शपथ ग्रहण का न्योता नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने वाले नेताओं में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शामिल नहीं थे और ना ही चीन को न्योता दिया गया था. 9 जून को शपथ ग्रहण समारोह में बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, भूटान और सेशेल्स के नेता मौजूद थे. भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि नई दिल्ली ने "पड़ोसी पहले" की नीति के तहत सात पड़ोसी देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया.
नवाज शरीफ 2014 में नरेंद्र मोदी के पहले शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे, जबकि नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के एक साल बाद 2015 में पाकिस्तान की एक छोटी यात्रा भी की थी, जहां उन्होंने लाहौर में नवाज शरीफ की पोती की शादी में शामिल हुए थे.
स्मिता शर्मा के मुताबिक, "2014 का दौर अलग था, मोदी जीतकर आए थे और बिल्कुल नई शुरुआत कर रहे थे. एक लेगेसी प्रोजेक्ट के तौर पर उन्होंने कहा था कि सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाते हैं. नवाज शरीफ को लेकर भी पाकिस्तान में एक सकारात्मक रुख था. नवाज शरीफ भी भारत एक प्रतिनिधिमंडल लेकर आए थे. बाद में जब नरेंद्र मोदी अचानक पाकिस्तान गए थे तो निश्चित रूप से एक गर्मजोशी आई थी."
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को मोदी के शपथ ग्रहण में ना बुलाए जाने के कारणों पर स्मिता कहती हैं, "इस बार तो कोई सवाल ही नहीं उठता था. क्योंकि 2019 में जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लिया, उससे पहले जो पुलवामा में हमला हुआ और फिर बालाकोट में जो देखने को मिला, उसके बाद ऐसी कोई भी किसी को उम्मीद नहीं थी पाकिस्तान को न्योता जाएगा. भारत का ज्यादा जोर अपने हिंद महासागर क्षेत्र और उन पड़ोसी देशों को लेकर था जिनके साथ उसके रिश्ते थोड़े बहुत ठीक हैं या फिर उम्मीद हैं कि रिश्ते सुलझ सकते हैं."
भारत ने दी पड़ोसी देशों को तवज्जो
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुईजू को बुलाए जाने पर स्मिता शर्मा का कहना है, "मालदीव को बुलाना ज्यादा जरूरी था, क्योंकि मालदीव के साथ रिश्ते ज्यादा वक्त तक बिगड़े रहेंगे तो उसमें सवाल खड़े हो सकते हैं. क्योंकि आमतौर पर मालदीव के साथ भारत के रिश्ते अच्छे रहे हैं."
मुईजू को चीन का समर्थक माना जाता है और राष्ट्रपति बनने के बाद वह सबसे पहले चीन के दौरे पर ही गए थे, जहां उन्होंने कई बड़े आर्थिक और कूटनीतिक समझौते भी किए. स्मिता कहती हैं, "मालदीव उस क्षेत्र में अहम भू-रणनीतिक साझीदार है, इसलिए मालदीव के राष्ट्रपति को यहां बुलाकर रीसेटिंग की कोशिश की गई है."
2 जनवरी 2016 को पठानकोट में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध खराब हो गए. इसके बाद भारत द्वारा 2019 में जम्मू और कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने और इसे दो केंद्रशासित क्षेत्रों में विभाजित करने के बाद से दोनों के बीच संबंध और निचले स्तर पर चले गए. साल 2019 में पुलवामा में आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर बमबारी की थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए.
भारत के लिए आतंकवाद है बड़ा मुद्दा
नवाज शरीफ हमेशा से भारत के साथ शांति के पक्षधर रहे हैं, ऐसा कहा जाता है कि 2013 से 2017 के अपने अंतिम कार्यकाल के दौरान अपने देश की शक्तिशाली सेना के साथ उनके मतभेद का एक कारण यही था. हालांकि, विश्लेषकों को दोनों पक्षों के बीच निकट भविष्य में शांति वार्ता की कोई संभावना नहीं दिखती है. पाकिस्तान की लेखिका और रक्षा विश्लेषक आयशा सिद्दीका ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "मोदी अभी तैयार नहीं हैं." हालांकि, दोनों पक्षों ने कुछ गुप्त कूटनीतिक पहल की हैं, उनके मुताबिक यह "एक सौम्य शुरुआत" हो सकती है.
क्या मोदी पाकिस्तान से बातचीत कर सकते हैं, इस सवाल के जवाब में संजय कपूर कहते हैं कि "मोदी को इस बात का अहसास है कि देश में मध्यावधि चुनाव हो ही सकते हैं और चुनाव जीतने के लिए अपने यहां के मुसलमानों का वोट उनको न्यूट्रलाइज करना होगा." वो आगे कहते हैं, "पाकिस्तान से बातचीत इस दिशा में पहला कदम हो सकता है."
11 जून को भारतीय विदेश मंत्रालय का दोबारा कार्यभार संभालने के बाद एस जयशंकर ने पाकिस्तान के मुद्दे पर पत्रकारों से कहा, "पाकिस्तान के साथ हम सालों पुराने आतंकवाद के मुद्दे का समाधान खोजना चाहेंगे." भारत ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि वह सीमा पार आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा और पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए वह आतंकवाद को दरकिनार नहीं कर सकता. नई दिल्ली ने यह भी कहा है कि एक ऐसा अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी इस्लामाबाद की है जिसमें कोई आतंक, दुश्मनी या हिंसा न हो.
इसी साल की 28 मई को नवाज शरीफ ने लाहौर समझौते को लेकर कहा था कि पाकिस्तान ने 1999 में किए इस समझौता का उल्लंघन किया था. उन्होंने यह बात अपनी पार्टी पीएमएल-एन की जनरल काउंसिल की उस बैठक में कही, जहां उन्हें पार्टी का अध्यक्ष चुना गया. शरीफ ने बैठक में कहा था, "28 मई, 1998 को पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए थे. उसके बाद वाजपेयी साहिब यहां आए और हमारे साथ एक समझौता किया. लेकिन हमने उस समझौते का उल्लंघन कर दिया...यह हमारी गलती थी." शरीफ को 2018 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिया था. हालांकि छह साल बाद 2024 में उन्हें कोर्ट से इस आजीवन अयोग्यता से राहत मिल गई.