भारत बना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अखाड़ा
३ मार्च २०२३गुरूवार दो मार्च को हुई जी20 के विदेश मंत्रियों की बैठक के नतीजे के विपरीत तीन मार्च को क्वॉड के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा बयान जारी हुआ. बयान में क्वॉड समूह ने एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया.
बैठक में इंडो-पैसिफिक में मौजूदा स्थिति की व्यापक समीक्षा की गई जिसके बाद मंत्रियों ने कहा कि वो कानून के शासन, संप्रभुता, प्रादेशिक अखंडता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का मजबूती से समर्थन करते हैं. मंत्रियों में भारत के एस जयशंकर, अमेरिका के एंटनी ब्लिंकेन, जापान के योशिमासा हायाशी और ऑस्ट्रेलिया की पेनी वोंग शामिल थे.
अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बचाना
यूक्रेन युद्ध से जन्मी स्थिति की तरफ इशारा करते हुए बयान में यह भी कहा गया कि "नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और सभी देशों की संप्रभुता, राजनीतिक स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता के सहारे ही टिकी हुई है. हम संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को एकतरफा ढंग से नष्ट करने के प्रयासों को संबोधित करने में सहयोग करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं."
यूक्रेन युद्ध का जिक्र करते हुए साझा बयान में कहा गया कि सदस्य देश इस पर सहमत हैं कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करना या इस्तेमाल करने की धमकी देना अस्वीकार्य है. बयान में चीन का जिक्र नहीं किया गया लेकिन रायसीना डायलॉग के दौरान एक सवाल के जवाब में सदस्य देशों ने कहा कि क्वॉड कोई सुरक्षा और डिफेंस का गठबंधन नहीं है, बल्कि विकास और सहयोग का गठबंधन है और किसी को भी इससे बाहर रखने का कोई इरादा नहीं है.
चीन पर भी नजर
रायसीना डायलॉग के कार्यक्रम भी अलग से चर्चा में रहे. क्वॉड के विदेश मंत्रियों के साथ चर्चा के अलावा रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी एक अलग चर्चा में कई बातें कहीं.
पश्चिमी देशों पर एक बार फिर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हीं देशों ने यूक्रेन को जी20 का केंद्रबिंदु बना दिया है जबकि जी20 जब शुरू हुआ था तब उसका उद्देश्य सिर्फ दुनिया की आर्थिक समस्याओं पर चर्चा करना था. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या पूर्व में कभी जी20 ने इस तरह सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान या युगोस्लाविया के मुद्दे को भी इस तरह उठाया है?
भारत और चीन के बारे में लावरोव ने कहा ये दोनों महान देश हैं और रूस चाहता है कि ये दोनों देश दोस्त बन कर रहें. उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है भारत और चीन एक दूसरे से सीधे बातचीत ना करना चाहें, ऐसे में उन दोनों के लिए बीच में रूस का मौजूद रहना शायद बेहतर हो.