कोरोना काल में वायु प्रदूषण की दस्तक
९ अक्टूबर २०२०कुछ शोधकर्ता दावा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस हवा में भी फैलता है और बंद कमरों में इसका प्रसार हो सकता है. लेकिन इन सब चिंताओं के बीच दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए आने वाले दिनों में दोहरी मुसीबत आती दिख रही है. राष्ट्रीय राजधानी की हवा की गुणवत्ता इस हफ्ते "खराब" श्रेणी में रही. वहीं सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) ने पूवार्नुमान में कहा कि एक्यूआई अगले तीन दिनों में रविवार (11 अक्टूबर) तक और बिगड़ेगा. यह राजधानी में कोविड-19 रोगियों के लिए गंभीर रूप से खतरनाक साबित हो सकता है. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाली सफर ने प्रदूषण बढ़ने के लिए आस-पास के राज्यों में पराली जलाए जाने को बड़ी वजह बताया है.
इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं सितंबर के महीने में ही शुरू हो गई थी. इस बार घटनाएं भी अधिक दर्ज की गईं. नासा ने पराली जलने की तस्वीरें भी जारी की थी. पिछले साल के मुकाबले इसी अवधि में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक सितंबर के आखिरी हफ्ते में पराली जलाने के रोजाना 150 मामले दर्ज किए गए और अक्टूबर के पहले हफ्ते में पराली को आग लगाने के मामले 150 से लेकर 200 के बीच दर्ज किए गए. दिल्ली के आसपास के कृषि प्रधान राज्यों में पराली के जलने से सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलता है. किसान अक्टूबर में धान की फसल काट लेते हैं, जो गेहूं की बोआई के अगले दौर से लगभग तीन सप्ताह पहले पराली जलाना शुरू कर देते हैं लेकिन इस बार तो पराली पहले ही जलने लगी.
खेत पर मजदूरी का खर्च बचाने के लिए मशीन से फसल की कटाई के बाद पराली बच जाती है, जिसे नष्ट करने के लिए किसान सबसे आसान विकल्प का सहारा लेते हैं, यानी पराली को खेतों में जला देते हैं. दुनिया के अलग-अलग देशों में पराली जिसे ठूंठ भी कहा जाता है, उसका इस्तेमाल अन्य चीजों के लिए किया जाता है और उसके बदले किसानों को पैसे भी मिलते हैं. लेकिन जागरुकता की कमी के कारण किसान मजबूरी में इसे जला देते हैं.
जानकार कहते हैं कि मौसम के सर्द होने के साथ-साथ कोरोना और प्रदूषण का गठजोड़ लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. कोलंबिया एशिया अस्पताल के सांस रोग विशेषज्ञ पीयूष गोयल के मुताबिक, "शहर में खराब वायु गुणवत्ता के कारण अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं. पिछले साल पराली का धुआं आने के बाद सांस लेने में तकलीफ बताने वाले मरीजों की संख्या में बाकी सालों की तुलना में 30 से 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी."
प्रदूषण से निपटने की क्या है तैयारी
बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 15 अक्टूबर से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू हो जाएगा. इसके तहत दिल्ली-एनसीआर में डीजल जेनरेटर के इस्तेमाल पर रोक लग जाएगी. जीआरएपी के मुताबिक होटलों, ढाबों और रेस्तराओं में लकड़ी और कोयला जलाने पर भी रोक लग जाएगी. जीआरएपी के निर्देश अगले साल तक लागू रहेंगे. इसके चार चरणों में वायु प्रदूषण के विभिन्न परिस्थितियों से निपटने के प्रावधान हैं. जैसे कि पहले चरण में लैंडफिल साइट पर कचरे जलाने पर पाबंदी, जिन सड़कों पर ट्रैफिक ज्यादा रहता है वहां सफाई और निर्माण क्षेत्र में धूल पर नियंत्रण करना. सुप्रीम कोर्ट से अधिकार प्राप्त प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने इस एक्शन प्लान तैयार किया है. इसके अलावा दिल्ली सरकार द्वारा सर्दियों में प्रदूषण से निपटने के लिए एंटी डस्ट मुहिम की शुरुआत की गई है. इस मुहिम में पर्यावरण विभाग की 14 टीमें दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में निरीक्षण कर प्रदूषण फैलाने वाली साइटों पर कार्रवाई करेगी.
वॉर रूम
दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए वॉर रूम की शुरुआत की है. इसके तहत पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने को लेकर रियल टाइम मॉनिटरिंग की जाएगी. दिल्ली सरकार का कहना है कि इस वॉर रूम के जरिए प्रदूषण की स्थिति में पल-पल हो रहे बदलावों पर नजर रखी जाएगी और रोकथाम के उपाय किए जाएंगे. कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने युद्ध प्रदूषण के विरुद्ध नाम से अभियान की शुरुआत की थी. वॉर रूम भी इसी अभियान का हिस्सा है. वॉर रूम में हॉट स्पॉट, रियल टाइम पीएम-10, पीएम 2.5 समेत अन्य गैसों की स्थिति पर नजर रखी जाएगी. इसके अलावा नासा और इसरो के सैटेलाइट से दिल्ली और आसपास के पड़ोसी राज्यों में पराली या कूड़ा जलाने का भी पता लग जाएगा.
दिल्ली सरकार प्रदूषण से जुड़ी शिकायतों को दर्ज करने के लिए ग्रीन दिल्ली ऐप भी लॉन्च करने जा रही है.
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