1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

भारत में पूरी तरह बैन क्यों नहीं एस्बेस्टस

२२ सितम्बर २०२१

एस्बेस्टस अपने पूरे जीवनकाल में हानिकारक बना रहता है और इससे फेफड़ों के कैंसर, एस्बेस्टोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा होता है. इसलिए दुनिया के करीब 70 देशों ने एस्बेस्टस उत्पादों पर रोक लगाई है.

https://p.dw.com/p/40dPK
तस्वीर: Getty Images

भारत हर साल करीब 3.5 लाख टन एस्बेस्टस का इस्तेमाल करता है. यानी करीब 1 लाख हाथियों के भार के बराबर. यह सारा एस्बेस्टस सीमेंट रूफिंग शीट्स, सीमेंट पाइपिंग, घिसाई का सामान और कपड़े आदि बनाने में इस्तेमाल होता है. जानकार तो कहते हैं कि भारत में शायद ही कोई ऐसी प्राइवेट या सरकारी इमारत होगी, जो पूरी तरह से एस्बेस्टस से मुक्त हो.

वह यह भी कहते हैं कि एस्बेस्टस अपने पूरे जीवनकाल में हानिकारक बना रहता है और इससे फेफड़ों के कैंसर, एस्बेस्टोसिस (फेफड़ों का जानलेवा रोग) और मेसोथेलियोमा (एक तरह का ट्यूमर) जैसी गंभीर बीमारियां होने का खतरा होता है. इन वजहों से दुनिया के करीब 70 देशों ने इससे बने उत्पादों पर रोक लगा दी है.

ब्राजील में लगी रोक

भारत ने भी एस्बेस्टस की माइनिंग पर रोक है लेकिन अब भी यहां ब्राजील, रूस, चीन और कनाडा से आयातित एस्बेस्टस के दम पर धड़ल्ले से इससे बने प्रोडक्ट इस्तेमाल हो रहे हैं. अब तक भारत अपने कुल एस्बेस्टस इस्तेमाल का करीब 21 फीसदी ब्राजील से आयात करता था लेकिन हाल में ही ब्राजीली सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में वहां एस्बेस्टस के उत्पादन को बैन कर दिया है. ब्राजील की कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से एस्बेस्टस की खुदाई, खोज, प्रॉसेसिंग, मार्केटिंग, ट्रांसपोर्ट और निर्यात पर रोक लगा दी है.

तस्वीरेंः न नजर आने वाला खतरा



इस फैसले का असर भारत को होने वाले निर्यात पर भी होगा हालांकि ब्राजील अब भी भारत की तरह एस्बेस्टस का आयात कर सकता है. भारत में एस्बेस्टस का विरोध कर रही 'बैन एस्बेस्टस नेटवर्क ऑफ इंडिया' के गोपाल कृष्ण कहते हैं, "यह कदम संदेश है कि भारत की केंद्र और राज्य सरकारों को भी सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले पर ध्यान देने की जरूरत है. उन्हें एस्बेस्टस पर इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) के साल 2006 के प्रस्ताव को मानते हुए कानून बनाकर इसके हर तरह के इस्तेमाल को खत्म करने पर जोर देना चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी

भारत में भी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट एस्बेस्टस में मौजूद कैंसर की वजह बनने वाले मिनरल फाइबर पर लगातार चिंता जताते रहे हैं. ये कोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों से भी अपने कानूनों को नए सिरे से वैश्विक श्रम संगठन (ILO) के नए प्रस्ताव के मुताबिक बनाने की बात कह चुके हैं. इस प्रस्ताव में मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सफेद क्रिसोटाइल एस्बेस्टस के भविष्य के इस्तेमाल को खत्म किए जाने की मांग की गई थी. लेकिन भारत सरकार ने अब तक यह आदेश नहीं माना है.

Abwracken von Schiffen in Geddani Pakistan
तस्वीर: Roberto Schmidt/AFP/GettyImages



गोपाल कृष्ण मानते हैं कि हत्या जैसे मुकदमों से डरकर दुनियाभर की एस्बेस्टस कंपनियां गैर-एस्बेस्टस सेक्टर की ओर जा रही हैं. लेकिन अब भी भारत जैसे बड़ी गरीब आबादी वाले देश में यह इस्तेमाल हो रहा है. इसका इस्तेमाल न रुकने की एक वजह इसकी दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जानकारी न होना भी है. भारत के सबसे गरीब और कमजोर समुदाय के लोग (गांवों की 16.4 फीसदी और शहरों की 20 फीसदी आबादी) एस्बेस्टस छतों के नीचे ही रहते और काम करते हैं. करीब 79 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग (20 करोड़) ऐसे ही घरों में रहते हैं.

सीख नहीं रहे 'ब्रिक्स' देश

गोपाल कृष्ण कहते हैं, "यह भी अजीब है कि ब्रिक्स देश एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने को तैयार नहीं हैं. ब्राजील, जिसने एस्बेस्टस को हाल ही में बैन किया, वह भारत को इसका निर्यात कर रहा था. दक्षिण अफ्रीका जहां एस्बेस्टस बैन है, वह भारत से इससे बने प्रोडक्ट्स को आयात करता है. रूस और चीन, दक्षिण अफ्रीका-ब्राजील-भारत में एस्बेस्टस से जुड़े कानूनों का सम्मान करने को राजी नहीं हैं. और भारत अब भी एसबेस्टस को रूस और चीन से आयात कर रहा है."

एसबेस्टस की इमारतों का क्या करें



वे यह आरोप भी लगाते हैं, "एस्बेस्टस बनाने वाली कंपियां बहुत प्रभावी हैं और वे एस्बेस्टस विरोध की आवाजें दबाने की कोशिश करती रही हैं. ये प्रोपेगैंडा भी करती हैं और विज्ञापन के दम पर मीडिया में खबरों को दबाती हैं."

कई अच्छे बदलाव

हालांकि पिछले कुछ सालों में इस समस्या को लेकर कई बड़े बदलाव दिखे हैं. हाल ही में बिहार एस्बेस्टस फैक्ट्रियां लगाने की अनुमति नहीं देने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है. इसके अलावा 22 एस्बेस्टस फैक्ट्रियों के मालिक सीके बिड़ला ग्रुप की हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड की एस्बेस्टस सीमेंट्स प्रोडक्ट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACPMA) ने गैर-एस्बेस्टस, ईको-फ्रेंडली, ऑटोक्लेव्ड (गर्मी के जरिए वैज्ञानिक तरीके से कीटाणुओं-जीवाणुओं को मारने वाली) छतें बनानी शुरू कर दी हैं.

गोपाल कृष्ण बताते हैं, "पर्यावरण मंत्रालय ने इसके इस्तेमाल को खत्म करने की बात कही है. वहीं ह्यूमन राइट्स कमीशन ने केरल में सार्वजनिक इमारतों में इसके इस्तेमाल को रोकने की बात कही है. भारत में कई रेलवे स्टेशन भी एस्बेस्टस फ्री बनाए जा रहे हैं."

बहरहाल रोजगार के दौरान स्वास्थ्य सुरक्षा और काम की परिस्थितियों (OSHWC) से जुड़ा कानून, 2020 एस्बेस्टस और उससे जुड़े प्रोडक्ट्स के निर्माण, निपटारे और प्रोसेसिंग से जुड़ी प्रक्रिया को खतरनाक मानता है. ऐसे में जानकार चाहते हैं कि जल्द से जल्द भारत भर में एस्बेस्टस से बनी हर चीज को हटाकर उसे जमीन में गहराई में दबा दिया जाए ताकि लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी