भारत के दुनिया की बड़ी ड्रोन शक्ति बनने के दावे में कितना दम
१७ फ़रवरी २०२२भारत सरकार तकनीकी उपकरणों के निर्माण और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए आक्रामक कोशिशें कर रही है. इस साल गणतंत्र दिवस के जश्न में इसकी एक झलक देखने को मिली, जब भारत में निर्मित करीब 1000 ड्रोनों ने रायसीना पहाड़ियों के ऊपर आसमान को रौशन कर दिया. शाम को लयबद्ध उड़ते ड्रोन आकाश में भारत का नक्शा और महात्मा गांधी की तस्वीर जैसी कई जटिल कलाकृतियां बना रहे थे.
यह सिर्फ गणतंत्र दिवस का जश्न नहीं था, टेक्नोलॉजी में भारत के बढ़ते असर को दिखाने की कोशिश भी थी, और इसके केंद्र में थे ड्रोन. इससे जोड़कर देखें तो गणतंत्र दिवस के सिर्फ 11 दिन बाद ही भारत के विदेश निर्मित ड्रोन पर पूरी तरह से बैन पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
ड्रोन को सरकारी प्रोत्साहन
पिछले साल तक भारत का रुख ड्रोन को लेकर ऐसा नहीं था. यहां सामान्य ड्रोन रखना भी आसान नहीं था. लेकिन पिछले महीनों में सरकार ने एक के बाद एक कदम उठाकर, न सिर्फ इसके रखने के नियम आसान बनाने की कोशिश की है बल्कि इसके तमाम अलग-अलग तरीके के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का काम भी किया है.
जैसे कृषि संबंधी कामों में ड्रोन के इस्तेमाल की छूट और पीएम स्वामित्व योजना के तहत गांवों में लोगों की संपत्तियों के सर्वे के लिए भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है. हाल ही में सरकार की ओर से जानकारी दी गई कि 1 लाख से भी ज्यादा गांवों में इस टेक्नोलॉजी से भूमि सर्वे का काम किया जा चुका है. यानी भारत के लगभग 17 फीसदी गांव अब तक इस तकनीक से मापे जा चुके हैं.
लेकिन दाम अब भी रोड़ा
हालांकि जानकार अभी भारत में ड्रोन ईकोसिस्टम की स्थिति को लेकर पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. ड्रोन एंटरप्रेन्योर डॉ. सरिता अहलावत कहती हैं कि ड्रोन को आम दोपहिया जैसा इस्तेमाल करने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना पूरा होना अभी आसान नहीं है. अहलावत के स्टार्टअप बॉटलैब डायनामिक्स ने ही गणतंत्र दिवस पर करतब दिखाने वाले ड्रोन तैयार किए थे. उनका स्टार्टअप दिल्ली आईआईटी के संरक्षण में काम करता है.
नए प्रयासों से वह खुश हैं लेकिन कहती हैं, "जो कदम उठाए गए हैं, उन्हें कुछ साल पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था." भारतीय ड्रोन इंडस्ट्री को घरेलू या रक्षा जरूरतें पूरा करने के लिए वह परिपक्व मानती हैं लेकिन कहती हैं लेकिन स्वीकार करती हैं कि भारतीय ड्रोन अब भी आयातित चीनी ड्रोन के मुकाबले बेहद महंगे हैं.
इसलिए ड्रोन बैन, पुर्जे नहीं
जानकार कहते हैं कि भारत निर्मित ड्रोन के महंगे होने की वजह भारत में ड्रोन ईकोसिस्टम का न के बराबर होना है. यही वजह है कि सरकार ड्रोन आयात पर तो बैन लगा सकी लेकिन ड्रोन पुर्जों का अब भी आयात किया जा सकता है. ड्रोन बनाने के लिए जरूरी मोल्डिंग, माइक्रो कंट्रोलर, डायोड और रजिस्टर जैसी चीजों का निर्माण भारत में न के बराबर होता है. इसके अलावा अच्छे ड्रोन के लिए गुणवत्ता वाली मोटर और लीथियम आयन बैटरी का निर्माण भी भारत में नहीं होता. इसके चलते ड्रोन निर्माता इन चीजों का चीन जैसे देशों से आयात करते हैं.
इस स्थिति में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल ड्रोन और उसके पुर्जे बनाने के लिए एक प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना की शुरुआत की थी और हाल ही में अगले तीन सालों में ड्रोन निर्माताओं को 120 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि देने की बात भी कही है. सरकार को उम्मीद है कि अगले तीन सालों में इस सेक्टर में 50 अरब रुपये का निवेश होगा और साल 2026 तक ड्रोन सेक्टर भारत में करीब दो अरब डॉलर की इंडस्ट्री बन जाएगा.
सुरक्षा नजरिए से भी जरूरी मसला
लेकिन विदेशी ड्रोन बैन किए जाने के पीछे बढ़ता ड्रोन व्यापार एकमात्र वजह नहीं है. भारत इसे सुरक्षा का मसला भी मानता है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह बैन भारतीय वायुक्षेत्र से चीनी ड्रोन बाहर रखने की कोशिश भी है. इन रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत दुनियाभर में नामी चीन की बड़ी ड्रोन कंपनी एसजेड डीजेआई टेक्नोलॉजी जैसे ड्रोनमेकर को सुरक्षा लिहाज से भी रोकना चाहता था क्योंकि उसे चिंता है कि यह कंपनी भारत की कुछ रणनीतिक जानकारियों जैसे पुलों और बांधों की स्थिति का ब्यौरा चीनी इंटेलिजेंस एजेंसियों के साथ साझा करती है.
वैसे डिफेंस ड्रोन के मामले में भारत अभी काफी हद तक अमेरिकी, इस्राएली और रूसी ड्रोनों पर निर्भर है. ये डिफेंस ड्रोन कठिन परिस्थितियों के हिसाब से बनाए जाते हैं, जो लद्दाख जैसे इलाकों में ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम होते हैं. ये अच्छे कैमरों और बढ़िया जीपीएस सिस्टम से लैस होते हैं और कई किलो का वजन उठा सकते हैं. हालांकि भारत में भी डिफेंस ड्रोन का निर्माण तेजी से बढ़ रहा है. भारतीय जानकार इसे इंटेलिजेंस जरूरतों के हिसाब से अच्छा मानते हैं.
ड्रोन शक्ति बनने की ओर बढ़ा दिया कदम
हाल ही में भारतीय कंपनी आईडिया फोर्ज ने भारतीय सेना के साथ मिलिट्री ड्रोन बनाने की करीब 1.5 अरब रुपये की डील की है. यह कंपनी पहले ही सेना को हजारों ड्रोन सप्लाई कर चुकी है. डील के महत्व को कंपनी के जनरल मैनेजर नवीन नवलानी के इस बयान से समझा जा सकता है, "यह डील प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत का साकार रूप है. इलाकों पर बाज जैसी नजरें बनाए रखने से सेना गलवान जैसी घटनाओं को टाल सकेगी." यानी एक ओर चीन पर निर्भरता कम करना और दूसरी ओर रणनीतिक महत्व.
हालांकि ज्यादातर जानकार मानते हैं कि भारत में ड्रोन निर्माण के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और ईकोसिस्टम बनाने में अभी पांच से दस साल लगेंगे. और अभी जरूरी यह रहेगा कि सरकार ने जो सुधार और प्रोत्साहन शुरू किया है, उसे अच्छी तरह से लागू किया जाए. तब तक सस्ते विदेशी पुर्जे आयात कर देश में ही ड्रोन निर्माण का काम एक सही दिशा होगी.