क्या बांग्लादेश फिर ‘एकतरफा’ चुनाव की ओर बढ़ रहा है?
१५ दिसम्बर २०२३बांग्लादेश की सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी और प्रधानमंत्री शेख हसीना लगातार चौथी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए तैयार हैं, क्योंकि यह चुनाव एकतरफा होता नजर आ रहा है.
देश के मुख्य विपक्षी दल ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी' (बीएनपी) ने कहा है कि वह कई अन्य पार्टियों के साथ मिलकर 7 जनवरी को होने वाले चुनावों का बहिष्कार करेगी. सेंटर-राइट बीएनपी ही सिर्फ ऐसी पार्टी है, जो सत्ता में मौजूद शेख हसीना को वाकई चुनौती दे सकती थी.
पार्टी का कहना है कि 28 अक्टूबर को राजधानी ढाका में बीएनपी की एक विशाल रैली निकाली गई थी. इसके बाद पिछले पांच हफ्तों में "बड़े स्तर पर कानूनी कार्रवाई” करते हुए हजारों कार्यकर्ताओं समेत उसके पूरे नेतृत्व को गिरफ्तार कर लिया गया है. वहीं, पुलिस का कहना है कि रैली के बाद हुई हिंसा में एक पुलिस अधिकारी समेत छह लोग मारे गए हैं. दूसरी ओर, बीएनपी और अन्य विपक्षी दलों ने कहा कि उनके करीब 20 कार्यकर्ता मारे गए हैं.
एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, बीएनपी के कानूनी इकाई के प्रमुख कैसर कमाल ने कहा कि इस राष्ट्रव्यापी कार्रवाई में गिरफ्तार किए जाने के बाद पुलिस हिरासत में पांच लोगों की मौत हो गई है. वहीं जेल अधिकारियों ने बताया कि कैदियों की मौत ‘प्राकृतिक कारणों से हुई.' अधिकारियों ने बीएनपी के इस दावे को भी खारिज किया कि बंदियों को प्रताड़ित किया गया था.
विपक्ष ने किया धांधली का दावा
विपक्षी पार्टी के कई कार्यकर्ताओं को आगजनी और तोड़फोड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. हालांकि बीएनपी का दावा है कि ये आरोप पूरी तरह राजनीति से प्रेरित हैं. पार्टी ने कहा कि गिरफ्तारियों के अलावा, पार्टी के कम-से-कम नौ सदस्यों को मौत की सजा सुनाई गई है. पिछले आरोपों के आधार पर 925 नेताओं और कार्यकर्ताओं को हालिया हफ्तों में जेल की सजा सुनाई गई है.
बीएनपी के प्रवक्ता ए.के.एम वाहिदुज्जमां ने डीडब्ल्यू को बताया, "ये मामले मूल रूप से राजनीतिक हित साधने के लिए उछाले गए हैं. एकतरफा कार्रवाई करते हुए पुलिस ने ऐसी घटनाओं के आधार पर फर्जी मामले दर्ज किए, जो कभी हुए ही नहीं. यहां तक कि उन लोगों के खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए, जो मर गए हैं या जबरन लापता कर दिए गए हैं.”
उन्होंने आरोप लगाया कि बिना किसी तटस्थ गवाह के, पुलिस की फर्जी गवाही एकमात्र सबूत के तौर पर पेश की गई. पहले से सोच-समझकर सुनाए गए इन फैसलों से जाहिर होता है कि देश में न्याय, निष्पक्षता और कानून का शासन खत्म हो चुका है.
वहीं दूसरी ओर, अवामी सरकार ने विपक्षी दलों पर कानूनी कार्रवाई के आरोपों को खारिज किया है. सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के सांसद मोहम्मद ए. अराफात ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "हमारा रुख स्पष्ट है. जो लोग तोड़-फोड़ या आगजनी जैसी घटनाओं में शामिल हैं, जिन्होंने पुलिस पर हमला किया है, उन्हें मारा है, उन लोगों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जा रही है. हम इस दावे को पूरी तरह खारिज करते हैं कि विपक्षी दल के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई की गई है.”
बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर चिंता
2009 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से शेख हसीना ने देश को आर्थिक रूप से काफी आगे बढ़ाया है, लेकिन लोकतंत्र की स्थिति में गिरावट और हजारों विपक्षी कार्यकर्ताओं की गैर-न्यायिक तरीके से हत्या को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता जताई गई है. पिछले दो विवादास्पद चुनावों में मतदान के दौरान बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप भी लगे हैं.
जोहानसबर्ग स्थित ‘ग्लोबल सिविल सोसाइटी अलायंस' सिविकस मॉनिटर ने पिछले सप्ताह जारी एक रिपोर्ट में बांग्लादेश के "सिविल स्पेस” को "बंद” कर दिया, जो कि इसकी सबसे खराब रेटिंग है. इस निगरानी संस्था ने 198 देशों और क्षेत्रों के लिए हाल ही में सिविक स्पेस कंडीशन संबंधी रिपोर्ट जारी किया है. इसमें कहा गया है, "यह गिरावट अगले महीने होने वाले राष्ट्रीय चुनावों से पहले विपक्षी राजनेताओं और स्वतंत्र आलोचकों के खिलाफ सरकार की व्यापक कार्रवाई की वजह से हुई है.”
वॉशिंगटन स्थित वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने कहा कि यह स्पष्ट है कि दमनकारी माहौल की वजह से बीएनपी ने चुनावों के बहिष्कार का फैसला लिया है. इस माहौल में पार्टी के लिए चुनाव अभियान चलाना मुश्किल हो गया है.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "बीएनपी का मानना है कि यह दमनकारी चुनावी माहौल तब तक दूर नहीं होगा, जब तक चुनावों की देखरेख के लिए कार्यवाहक सरकार नहीं बनाई जाती. पार्टी की यह मांग बिल्कुल जायज है.”
कुगेलमैन ने कहा, "हमने देखा है कि सरकार आलोचनाओं और असहमति को दबाने के लिए कई कानूनी तरीकों का सहारा लेती है. जैसे कि गिरफ्तारी, किसी को अपराधी ठहराना, डिजिटल सुरक्षा कानूनों की मदद, आतंकवाद विरोधी बहाने वगैरह.”
उन्होंने आगे कहा, "इससे ध्रुवीकरण तेज हो गया है. विपक्ष गुस्से में है. लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक संकट को दूर करने के लिए जरूरी बहुदलीय बातचीत के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. यह संकट चुनाव के बाद कम नहीं, बल्कि और खराब हो सकता है.”
निष्पक्ष चुनाव की मांग
बांग्लादेश में 2011 से पहले एक ‘कार्यवाहक' प्रणाली थी. इसका उद्देश्य सत्तारूढ़ दलों को चुनावी हेरफेर और धांधली से रोकना था. उस प्रणाली के तहत, जब निर्वाचित सरकार अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेती थी, तो कार्यवाहक प्रशासन तीन महीने के लिए देश के संस्थानों को अपने नियंत्रण में ले लेता था और चुनाव कराता था. इस कार्यवाहक प्रशासन में नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल होते थे.
इस प्रणाली के तहत 1996, 2001 और 2008 में आम चुनाव कराए गए, जिसे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी माना. हालांकि सत्तारूढ़ अवामी लीग ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस प्रणाली को खत्म कर दिया. इसके पीछे तर्क दिया गया कि यह प्रावधान असंवैधानिक और लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ था.
बीएनपी के प्रवक्ता वाहिदुज्जमां ने कहा कि उनकी पार्टी सिर्फ निष्पक्ष कार्यवाहक प्रशासन के तहत चुनाव कराए जाने पर ही राष्ट्रीय चुनाव में भाग लेगी. हालांकि, हसीना सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया.
पर्यवेक्षकों को एकतरफा चुनाव की उम्मीद
जर्मन इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी (आईडीओएस) की एक वरिष्ठ शोधकर्ता यासमीन लॉश ने कहा कि जनवरी के चुनाव में भाग लेने वाले किसी भी दल को वास्तव में विपक्षी दल नहीं माना जा सकता है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "वे या तो अवामी लीग पार्टी के साथ जुड़े हैं या खुद को विपक्षी दलों के रूप में पेश करते हैं, लेकिन वास्तव में अवामी पार्टी के करीब हैं.”
उन्होंने कहा, "अमेरिका और यूरोप में ज्यादातर लोग इस बात से सहमत हैं कि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं होगा. यूरोपीय संघ ने बांग्लादेश में एक खोजी मिशन के बाद फैसला किया कि वह जनवरी में होने वाले चुनाव को लेकर किसी तरह की निगरानी नहीं करेगा, क्योंकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के आसार नजर नहीं आ रहे हैं.”
दक्षिण एशिया विशेषज्ञ कुगेलमैन ने कहा, "एकतरफा मामले के अलावा किसी अन्य नतीजे की कल्पना करना मुश्किल है. जब तक बीएनपी अपना बहिष्कार वापस नहीं लेती है, अवामी लीग कार्यवाहक प्रशासन को जिम्मेदारी नहीं सौंपती है या कोई अन्य गैर-बीएनपी चुनावी गठबंधन अवामी लीग को हराने के लिए नहीं उभरता है, तब तक ऐसा लगता है कि अवामी लीग एकतरफा जीत हासिल करेगी. फिलहाल कोई अन्य गैर-बीएनपी गठबंधन बनता नहीं दिख रहा है.”