केन्या की अदालत ने अदाणी ग्रुप के साथ हवाई अड्डा सौदा रोका
११ सितम्बर २०२४केन्या के हाई कोर्ट ने भारत के अदाणी ग्रुप द्वारा जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (जेकेआईए) के संचालन की योजना पर अस्थायी रोक लगा दी है. यह फैसला स्थानीय विरोध के बाद आया है, जिसे आलोचक "केन्या के लोगों की जीत" के रूप में देख रहे हैं. उनका आरोप है कि यह सौदा देश की अर्थव्यवस्था और संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है.
याचिका दायर करने वाले समूह के वकील ओचियल डडली ने कहा, "यह केन्या के लोगों की जीत है, जिनकी चिंताओं को एक राजनीतिक वर्ग ने अनदेखा कर दिया था, जो एक संदिग्ध सौदे को आगे बढ़ाने में लगा हुआ था."
अदाणी ग्रुप और केन्या सरकार के बीच 1.85 अरब डॉलर का समझौता हुआ था. इसके तहत अदाणी को 30 साल के लिए राजधानी नैरोबी के जेकेआईए के संचालन और विस्तार का अधिकार मिलना था. इस समझौते में हवाई अड्डे के पुराने ढांचे को आधुनिक बनाने के अलावा एक नया रनवे और नया यात्री टर्मिनल बनाना शामिल था. हालांकि, कई लोगों का मानना है कि यह समझौता केन्या के लिए घाटे का सौदा है और इससे स्थानीय नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है.
विरोध और कानूनी चुनौती
समझौते के खिलाफ लॉ सोसायटी ऑफ केन्या (एलएसके) और केन्या ह्यूमन राइट्स कमीशन (केएसआरसी) ने अदालत में याचिका दायर की थी. इन संगठनों का कहना था कि जेकेआईए एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति है और इसे इतने लंबे समय के लिए विदेशी कंपनी को सौंपना अनुचित और असंवैधानिक है.
क्यों अटक गई है अदाणी की धारावी पुनर्वास योजना
एलएसके और केएचआरसी के वकील ओचियल डडली ने अदालत में कहा, "अदाणी का प्रस्ताव न तो आर्थिक रूप से फायदेमंद है, न ही यह जनता के हित में है. इस सौदे से नौकरियां जाने और वित्तीय नुकसान होने का खतरा बढ़ता है और करदाताओं को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा." उन्होंने कहा कि केन्या इस परियोजना के लिए जरूरी 1.85 अरब डॉलर बिना किसी दीर्घकालिक समझौते के खुद जुटा सकता है.
हाई कोर्ट के जज जॉन चिगीटी ने मामले को "तत्काल" जरूरी मानते हुए अदाणी के साथ हो रहे इस सौदे पर अस्थायी रोक लगा दी और सुनवाई की अगली तारीख 8 अक्टूबर तय की.
केन्या के लिए समझौते का महत्व
जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अफ्रीका के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक है. 2022-2023 में वहां से 88 लाख यात्रियों और 3.8 लाख टन माल का आना-जाना हुआ. हवाई अड्डा केन्या की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, जहां से यात्रियों और माल से होने वाली आय देश के जीडीपी का 5 प्रतिशत से अधिक है. हालांकि, पुराने ढांचे और बार-बार बिजली कटौती जैसी समस्याओं के चलते हवाई अड्डे को अपग्रेड करने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी.
केन्या सरकार का कहना है कि अदाणी के साथ यह समझौता हवाई अड्डे को आधुनिक बनाने और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए जरूरी था. लेकिन समझौते के आलोचक इसे केन्या के लिए एक खराब सौदा मान रहे हैं. समझौते के तहत अदाणी को 30 साल के बाद भी जेकेआईए के हवाई सेवा व्यवसाय में 18 फीसदी हिस्सेदारी मिलनी थी और कंपनी को 10 साल तक टैक्स में छूट भी दी जाती.
सार्वजनिक विरोध और प्रदर्शन
इस समझौते के खिलाफ केन्या में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. जुलाई में प्रदर्शनकारियों ने जेकेआईए को बंद करने की कोशिश की थी और केन्या एविएशन वर्कर्स यूनियन (केएडब्ल्ययू) ने भी विरोध जताया था. यूनियन ने समझौते के खिलाफ हड़ताल की धमकी दी थी, लेकिन दो बार इसे टाल दिया गया ताकि बातचीत जारी रह सके. यूनियन का कहना है कि समझौते के कारण स्थानीय लोगों की नौकरियां जा सकती हैं और विदेशी कामगारों को लाया जा सकता है.
भारत के मुख्य विपक्षी दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, "अदाणी ग्रुप का नैरोबी के हवाई अड्डे पर कब्जा केन्या में बड़े पैमाने पर विरोध का कारण बना है. यह विरोध भारत और भारतीय सरकार के खिलाफ गुस्से में बदल सकता है."
अदाणी के वैश्विक विस्तार को झटका
केन्या में अदाणी के खिलाफ कानूनी चुनौती उसकी वैश्विक विस्तार योजनाओं के लिए एक और झटका है. इससे पहले अदाणी के कई सौदे विवादों में घिर चुके हैं. बांग्लादेश में अदाणी के कोयला बिजली समझौते पर भी सवाल उठाए गए थे, जबकि श्रीलंका और म्यांमार में भी उनके निवेश को लेकर स्थानीय विरोध हुआ था.
अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदाणी ग्रुप पर लगाए गए धोखाधड़ी के आरोपों ने भी कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचाया है. हालांकि अदाणी ग्रुप ने इन आरोपों से इनकार किया है.
2019 में, मोदी सरकार ने अदाणी ग्रुप को भारत के छह प्रमुख हवाई अड्डों का संचालन करने का अधिकार दिया था. इस फैसले की भारत में तीखी आलोचना हुई थी क्योंकि कंपनी के पास पहले से हवाई अड्डों के प्रबंधन का कोई अनुभव नहीं था. कुछ लोगों का कहना था कि अदाणी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए निजीकरण प्रक्रिया के नियमों में बदला किया गया. हालांकि भारत सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया था.
रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)