विपक्ष के नेताओं के खिलाफ ही बढ़ रहे हैं कानूनी मामले
२३ मार्च २०२३ताजा उदाहरण मानहानि के एक मामले में सूरत की एक अदालत का कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दोषी करार देना है. मामला करीब चार साल पुराना है. 2019 में लोक सभा चुनावों से पहले एक चुनावी भाषण के दौरान कर्नाटक के कोलार में गांधी ने कहा था, "सारे चोरों के नाम मोदी ही क्यों होते हैं?" वो घोटाले के आरोपों का सामना कर रहे उद्योगपति ललित मोदी और नीरव मोदी की बात कर रहे थे.
उनके इसी बयान पर गुजरात में बीजेपी के विधायक पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ पूरे मोदी समुदाय को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए एक मुकदमा दर्ज कर दिया.
मानहानि के कई मुकदमे
सुनवाई करीब चार सालों तक चली और अब जाकर अदालत ने गांधी को दोषी पाया है. उन्हें दो साल कारावास की सजा भी सुनाई गई है. हालांकि अदालत ने फैसला सुनाने के तुरंत बाद सजा को 30 दिनों के लिए रोक दिया ताकि गांधी इस अवधि में सजा के खिलाफ अपील कर सकें.
राहुल गांधी के खिलाफ इसके पहले भी मानहानि के मुकदमे दर्ज किए गए हैं. महाराष्ट्र के भिवंडी में उनके खिलाफ 2014 से मानहानि का एक मुकदमा चल रहा है जिसे आरएसएस के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने दर्ज करवाया था. मामला राहुल गांधी के एक बयान से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने कहा था आरएसएस के लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की थी.
इसके अलावा उनके खिलाफ असम, झारखंड और महाराष्ट्र में एक और मानहानि का मुकदमा चल रहा है. मानहानि का कानून अंग्रेजों के जमाने का एक कानून है जिसके तहत दोषी पाए जाने पर दो साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है. कानून के कई जानकार और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए काम करने वाले ऐक्टिविस्टों का कहना है कि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस कानून की कोई जगह नहीं है और इसे हटा देना चाहिए.
पोस्टरों पर विवाद
हालांकि मानहानि विपक्ष के नेताओं को परेशान करने के लिए सरकार के पास एकलौता जरिया नहीं है. भ्रष्टाचार के आरोप और अन्य आरोपों के आधार पर केंद्रीय एजेंसियों का विपक्ष के नेताओं को ही निशाना बनाना इसी सिलसिले की एक कड़ी है. इसके अलावा और भी कई तरीके हैं.
दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले पोस्टरों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने कम से कम 36 मामले दायर किए हैं और छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. पोस्टरों में "मोदी हटाओ, देश बचाओ" लिखा था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस ने कम से कम 2,000 पोस्टर बरामद किए हैं.
दिलचस्प यह है कि पुलिस ने ये गिरफ्तारियां सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और पोस्टर पर उसे छापने वाले का नाम ना छपा होने के लिए की हैं. लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या ऐसी कार्रवाई के पीछे सरकार की मंशा सिर्फ विपक्ष के नेताओं को परेशान करने की है.