लोकसभा चुनाव: उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने स्वीकारी हार
४ जून २०२४अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू और कश्मीर में पहली बार चुनाव हुए हैं.लोकसभा चुनावों के नतीजों में अब तक कश्मीर के दो दिग्गज नेता उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अपनी अपनी सीटों पर काफी पीछे चल रहे हैं. चुनाव आयोग के अब तक के आंकड़ों के मुताबिक नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला बारामूला सीट से पीछे चल रहे हैं. इस सीट पर स्वतंत्र उम्मीदवार अब्दुल राशिद उर्फ 'इंजीनियर राशिद' आगे हैं.
हालांकि उमर अब्दुल्ला ने अंतिम नतीजे घोषित होने से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली हैं. उन्होंने माइक्रोब्लॉगिंग साइट 'एक्स' पर इंजीनियर राशिद को बधाई तो दी लेकिन साथ ही लिखा हुए कि उन्हें नहीं लगता कि लोकसभा चुनावों में राशिद की जीत उन्हें जेल से आजाद करवा पाएगी, और ना ही इससे उत्तर कश्मीर के लोगों को ऐसा प्रतिनिधित्व मिल पाएगा जो कि उनका हक है.
पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी अनंतनाग में पीछे चल रही हैं. इस सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार मियां अल्ताफ अहमद 2,78,416 वोटों से आगे हैं. महबूबा मुफ्ती ने भी एक्स पर अपनी हार स्वीकारते हुए लिखा कि वह लोगों के जनादेश का सम्मान करती हैं. साथ ही उन्होंने लिखा कि हार और जीत खेल का हिस्सा है.
श्रीनगर सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार सैयद आगा रुहुल्ला ने आगे चल रहे हैं. वहीं जम्मू और उधमपुर सीट पर बीजेपी के उम्मीदवारों का दबदबा कायम है. जम्मू से बीजेपी उम्मीदवार जुगल किशोर और जम्मू से डॉ जीतेंद्र सिंह आगे चल रहे हैं.
बारामूला सीट के उम्मीदवार इंजीनियर राशिद चर्चा में
इस लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट के नतीजे बेहद दिलचस्प माने जा रहे हैं. यहां से आगे चल रहे स्वतंत्र उम्मीदवार इंजीनियर राशिद खूब चर्चा में हैं. खबर लिखे जाने तक उनके खिलाफ खड़े उमर अब्दुल्ला करीब 1,75,036 वोटों से पीछे हैं.
राशिद टेरर फंडिंग के आरोप में तिहाड़ जेल में रखे गए हैं. पिछले पांच सालों से जेल में बंद राशिद पर यूएपीए के तहत धाराएं लगाई गई हैं. वह उत्तरी कश्मीर की लंगेट सीट से 2008 और 2014 में विधायक भी चुने जा चुके हैं. लोकसभा चुनावों में उनकी गैरमौजूदगी में उनके दो बेटों अबरार राशिद और असरार राशिद ने उनके लिए चुनाव प्रचार किया था.
बीजेपी ने कश्मीर की तीन सीटों पर नहीं उतारे थे उम्मीदवार
2019 में राज्य में कुल 6 लोकसभा सीटें थीं. लद्दाख के अलग होने के बाद अब जम्मू-कश्मीर में पांच लोकसभा सीटें बची हैं. बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग, जम्मू और उधमपुर. कश्मीर की तीन सीटों श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग में बीजेपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे. स्थानीय पार्टियों का कहना है कि बीजेपी को पता था कि कश्मीर की अवाम अनुच्छेद 370 हटाए जाने से खुश नहीं थी, अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी यहां अपने उम्मीदवार जरूर खड़े करती. उमर अब्दुल्ला ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि बीजेपी ने डर के कारण चुनाव नहीं लड़ा. अगर लोग 370 हटाए जाने से लोग खुश होते तो बीजेपी चुनाव लड़ने से डरती नहीं.
जम्मू कश्मीर से 370 हटाए जाने के बाद लंबे समय तक वहां मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बंद थीं, साथ ही महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला जैसे कई बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साथ ही तब जम्मू कश्मीर राज्य से लद्दाख को अलग कर एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. लोकसभा चुनावों में भी जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दोबारा दिए जाने की मांग सबसे अहम मुद्दों में से एक थी.
जम्मू-कश्मीर में दिखा अब तक का सबसे बड़ा वोटर टर्न आउट
इन आम चुनावों में जम्मू कश्मीर में बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया. चुनाव आयोग के मुताबिक इस साल जम्मू कश्मीर की पांच सीटों पर वोटर टर्नआउट 58. 46 रहा. बीते 35 सालों में यह अब तक का सबसे बड़ा वोटर टर्न आउट है. चुनाव आयोग ने यह भी कहा था कि इसे भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एक सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा सकता है.
लोकसभा चुनावों के नतीजे भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी अहम माने जा रहे हैं. हालांकि, ये चुनाव कब होंगे इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं हैं. लंबे समय से कश्मीर की स्थानीय पार्टियां राज्य में चुनाव करवाने की मांग करती आई हैं.