नागालैंड में अफस्पा कानून पर घमासान
११ जनवरी २०२२पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड में जहां सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के विरोध में आंदोलन चल रहा है और सोमवार से 70 किमी लंबी पदयात्रा आयोजित की जा रही है वहीं पड़ोसी मणिपुर सरकार ने अफस्पा को एक साल के लिए बढ़ा दिया है. मणिपुर में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले राजनीतिक हिंसा में दो लोगों की इसी हफ्ते मौत हो गई है.
नागालैंड की व्यावसायिक राजधानी दीमापुर में सोमवार सुबह 70 किलोमीटर लंबा शांति मार्च शुरू हुआ. मंगलवार को नागालैंड की राजधानी कोहिमा में मार्च का समापन होगा. दो-दिवसीय मार्च का आयोजन बीते साल चार दिसंबर को नागालैंड में सुरक्षाकर्मियों के हाथों मारे गए 14 लोगों की हत्या के विरोध और अफस्पा को निरस्त करने की मांग में किया गया है.
नागालैंड की स्थिति
नागालैंड में बीते साल चार दिसंबर को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत के बाद से ही राज्य में माहौल बेहद तनावपूर्ण है. आम लोगों के साथ मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो भी केंद्र से अफस्पा हटाने की मांग कर चुके हैं. इसके समर्थन में विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया जा चुका है. यह घटना भारत-म्यांमार सीमा से सटे ओटिंग गांव में हुई थी. उस समय भी लंबे अरसे तक लोग सड़कों पर उतर कर विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे.
अब एक बार फिर हजारों लोग सड़क पर हैं. राज्य में अफस्पा के खिलाफ लगातार तेज होते विरोध को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने इस मुद्दे पर सिफारिश के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन कर दिया. समिति का गठन 23 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में दिल्ली में हुई एक बैठक में किया गया था. बैठक में नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, नागालैंड के उपमुख्यमंत्री वाई पैटन और नागा पीपुल्स फ्रंट के नेताओं ने हिस्सा लिया था. इस समिति को 45 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है.
इससे लोगों की नाराजगी कुछ कम जरूर हुई. लेकिन इसी बीच सरकार ने बीते 30 दिसंबर को राज्य में अफस्पा की मियाद और छह महीने के लिए बढ़ा दी. उसके बाद लोगों में नाराजगी भड़क उठी. उसके बाद ही इस कानून के खिलाफ सबसे बड़े व्यावसायिक शहर दीमापुर से राजधानी कोहिमा तक 70 किमी लंबे शांति मार्च की योजना बनाई गई. सोमवार से शुरू हुई इस शांति मार्च या पदयात्रा में समाज के विभिन्न तबकों के हजारों लोग शामिल हैं. यह पदयात्रा मंगलवार शाम को कोहिमा में खत्म होगी. इस मार्च में शामिल लोगों ने अफस्पा के खिलाफ पोस्टर और बैनर ले रखे हैं.
अफस्पा के खिलाफ इस मार्च के आयोजकों में एक ईस्टर्न नागा स्टूडेंट्स फेडरेशन (ईएनएसएफ) के अध्यक्ष चिंगमाक चांग कहते हैं, "हमारी मांगों में अफस्पा को फौरन रद्द करना, फायरिंग के दोषी जवानों को खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना और उस घटना में मृत लोगों के परिजनों को एक-एक करोड़ और घायलों को 50-50 लाख का मुआवजा देना शामिल है.” उनका कहना है कि बीते छह दिसंबर को ओटिंग में अंतिम संस्कार के दौरान मौजूद मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने मृतकों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. लेकिन एक महीने बाद भी इस मामले में कोई प्रगति नहीं हो सकी है.
एक अन्य आयोजक केविथो केरा बताते हैं, "अफस्पा के खिलाफ मार्च को आम लोगों का भारी समर्थन मिल रहा है. कोविड प्रोटोकॉल का ध्यान रखते हुए हमने कम लोगों को ही इसमें शामिल होने की इजाजत दी है. लेकिन पूरे रास्ते लोगों ने मार्च का अभूतपूर्व समर्थन किया है.”
ईएनएसएफ के सलाहकार वांग्सू अफस्पा का जिक्र करते हुए कहते हैं, "जिस बच्चे (अफस्पा) का जन्म 1958 में हुआ था उसे वर्ष 2022 तक एक ही कपड़ा पहने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अफस्पा और सैन्य बलों की मौजूदगी ही नागालैंड में अशांति की प्रमुख वजह है.”
मणिपुर में मियाद बढ़ी
नागालैंड में अफस्पा को लेकर लगातार तेज होते विरोध के बीच पड़ोसी मणिपुर में सरकार ने मंगलवार को इस विवादास्पद कानून की मियाद एक साल के लिए बढ़ा दी. राज्य में अगले महीने ही विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले राजनीतिक हिंसा भी शुरू हो गई है. रविवार रात को राज्य के पश्चिम इंफाल जिले में इंडियन रिजर्व बटालियन (आईआरबी) के एक जवान सहित दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई है. मरने वाला दूसरा व्यक्ति बीजेपी का कार्यकर्ता था.
इस घटना के बाद से इलाके में तनाव है. इसके विरोध में स्थानीय लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया है. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस मामले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया है. इस बीच, अफस्पा के तहत पूरे राज्य में अशांत क्षेत्र की स्थिति को इस साल के आखिर तक बढ़ा दिया गया है.
क्या है अफस्पा?
11 सितंबर, 1958 को बने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) को पहली बार नागा पहाड़ियों में लागू किया गया था. वह उस समय असम का ही हिस्सा थीं. उग्रवाद के पांव पसारने के साथ इसे धीरे-धीरे पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में लागू कर दिया गया. इस विवादास्पद कानून के दुरुपयोग के खिलाफ बीते खासकर दो दशकों के दौरान तमाम राज्यों में विरोध की आवाजें उठती रहीं हैं. लेकिन केंद्र व राज्य की सत्ता में आने वाले सरकारें इसे खत्म करने के वादे के बावजूद इसकी मियाद बढ़ाती रही हैं.
मणिपुर की महिलाओं ने इसी कानून के आड़ में मनोरमा नामक एक युवती की सामूहिक बलात्कार व हत्या के विरोध में बिना कपड़ों के सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया था. उस तस्वीर ने तब पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं. लौह महिला के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला इसी कानून के खिलाफ लंबे अरसे तक भूख हड़ताल कर चुकी हैं. लेकिन मणिपुर में इसकी मियाद लगातार बढ़ती रही है.
फिलहाल असम के अलावा नागालैंड और मणिपुर और अरुणाचल के कुछ इलाकों में अब भी यह कानून लागू है. अब बीते महीने सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत के बाद इस कानून को खत्म करने की मांग लगातार जोर पकड़ रही है. इससे राज्य में बीते 25 वर्षों से जारी शांति प्रक्रिया भी खटाई में पड़ गई है. नागा संगठन एनएससीएन के इसाक-मुइवा गुट ने साफ कर दिया है कि अफस्पा खत्म नहीं होने तक शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना संभव नहीं है.