महिला के दिमाग से निकला 8 सेंटीमीटर लंबा कीड़ा, पहला ऐसा केस
२९ अगस्त २०२३यह वाकया ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा का है. यहां एक 64 साल की महिला को पेट दर्द, डायरिया और खांसी जैसी दिक्कतें हुईं. ये लक्षण जनवरी 2021 से उभरने शुरू हुए. 2022 आते-आते लक्षण और गंभीर हो गए. उनकी याद्दाश्त प्रभावित होने लगी. वो चीजें भूलने लगीं. उन्हें अवसाद महसूस होने लगा. अस्पताल में हुए ब्रेन एमआरआई में पता चला कि उनके मस्तिष्क के दाहिने फ्रंटल लोब में असामान्य रूप से घाव है.
सर्जरी में निकला जिंदा कीड़ा
डॉक्टरों ने दिमाग के ऑपरेशन की जरूरत महसूस की. ऑपरेशन के दौरान बायोप्सी करते हुए न्यूरोसर्जन हरि प्रिया बंदी को मरीज के दिमाग के भीतर एक जिंदा कीड़ा मिला. वो हिल-डुल रहा था, चल रहा था. उन्होंने कैंची से पकड़कर उसे बाहर निकाला. वह कीड़ा पैरासाइटिक राउंडवर्म था, जो आमतौर पर अजगरों की एक प्रजाति कार्पेट पायथन में पाया जाता है. इस "खोज" से डॉक्टर हैरान हैं. यह पहली बार है, जब दुनिया में किसी शख्स के भीतर ऐसा कीड़ा मिला, जो अजगरों में पाया जाता है.
इस केस की जानकारी जर्नल "इर्मजिंग इंफेक्शियस डिजीजेस" के ताजा संस्करण में छपी है. इसमें न्यूरोसर्जन हरि प्रिया बंदी और एएनयू मेडिकल स्कूल, कैनबरा हॉस्पिटल के संक्रामक रोग विशेषज्ञ संजय सेननायाके ने इस असाधारण मेडिकल केस के ब्योरे देते हुए एक आर्टिकल लिखा है. लेख के मुताबिक, दिमाग से कीड़ा निकाले जाने के छह महीने बाद मरीज की स्थिति बेहतर तो हुई, लेकिन लक्षण पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं.
दिमाग में कैसे पहुंचा कीड़ा?
पीड़ित महिला के घर के पास एक झील है. इस इलाके में कार्पेट पायथन की बसाहट भी है. यहां वॉरिगल ग्रीन्स नाम की एक स्थानीय वनस्पति पाई जाती है, जिसका इस्तेमाल खाना बनाने में भी होता है. कार्पेट पायथन में पाए जाने वाले पैरासाइटिक राउंडवर्म के अंडे अक्सर पायथन के मल के साथ निकलकर घास पर रह जाते हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वॉरिगल ग्रीन्स तोड़ते हुए अनजाने में ही महिला कीड़े के अंडों के संपर्क में आई होगी. या तो वॉरिगल ग्रीन्स को खाने या हाथ के माध्यम से राउंडवर्म के अंडे उसके शरीर में पहुंचे होंगे.
यह केस असामान्य तो है, साथ ही एक चेतावनी भी है. जानवरों की कुदरती बसाहटों और इंसानों के बीच की दूरियां खत्म होती जा रही हैं. ऐसे में इंसानों के कई ऐसे वायरसों से संपर्क में आने और संक्रमित होने की आशंकाएं बढ़ गई हैं, जिनसे रक्षा के लिए हमारी शरीर की स्वाभाविक मशीनरी तैयार नहीं है. ऐसा ही कोरोना के साथ हुआ. सार्स और नीपा वायरस का मामला भी ऐसा ही था. यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, नई या उभर रही संक्रामक बीमारियों के तकरीबन 75 फीसदी मामले जानवरों से इंसानों में आ रहे हैं.
एसएम/एडी (एपी)