तरकीबों की कमी से जूझ रहा है भारत का विपक्ष
२० दिसम्बर २०२३तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने मंगलवार को हुई 'इंडिया' गठबंधन की बैठक में प्रस्ताव दिया कि गठबंधन को एक चेहरा चाहिए. बनर्जी ने कहा कि खरगे को या तो गठबंधन का संयोजक या प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना देना चाहिए.
'आप' के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया. और किसी पार्टी के नेता के मुखर रूप से इस प्रस्ताव के समर्थन या विरोध की खबर नहीं है. जानकारों का मानना है कि इस प्रस्ताव के तीन महत्वपूर्ण मायने हैं.
खरगे को आगे करने के मायने
पहला, कम से कम गठबंधन के कुछ नेताओं को यह अहसास हो चुका है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्ष की रणनीति की गति बढ़ाने का समय आ गया है. शायद इसलिए एक चेहरे को जनता के सामने रखने की जरूरत महसूस हो रही है.
दूसरा, अपने अलावा किसी तीसरे नेता का नाम आगे बढ़ा कर बनर्जी और केजरीवाल ने संदेश दिया है कि वो इस रेस से बाहर हैं. इससे पहले तक गठबंधन के अंदर समझौता इस बात पर हुआ था कि चुनाव से पहले किसी भी एक नेता को चेहरा बना कर आगे नहीं किया जाएगा.
इस वजह से माना जा रहा था कि लोकसभा चुनावों में अपनी अपनी पार्टियों के प्रदर्शन के आधार पर बनर्जी, केजरीवाल, एनसीपी मुखिया शरद पवार, जेडीयू मुखिया नीतीश कुमार जैसे कई नेता प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी आगे रख सकते हैं.
नए प्रस्ताव का तीसरा महत्वपूर्ण निहितार्थ यह है कि इसके जरिए बनर्जी और केजरीवाल ने कांग्रेस को संदेश दिया है कि अगर पार्टी अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम आगे करने के बारे में सोच रही हो तो यह कम से कम इन दोनों नेताओं को मंजूर नहीं है.
कांग्रेस कैसे देखती है खरगे को
कांग्रेस की तरफ से चेहरे के सवाल पर कोई स्पष्ट बयान अभी तक नहीं आया है. गठबंधन की बैठक में भी बनर्जी और केजरीवाल ने खरगे के नाम का प्रस्ताव पार्टी के पूर्व अध्यक्षों राहुल गांधी और सोनिया गांधी की मौजूदगी में दिया, लेकिन दोनों कांग्रेस नेताओं ने प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
बल्कि पार्टी की तरफ से सिर्फ खरगे बोले. उन्होंने खुले शब्दों में प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया और कहा कि पहले सबको मिलकर चुनाव जीतना जरूरी है, क्योंकि "अगर एमपी ही नहीं होंगे तो पीएम की बात करके क्या फायदा."
उन्होंने पुराने समझौते को ही आगे रखा और कहा कि लोकतांत्रिक परंपरा के अनुसार गठबंधन के नेता का फैसला चुनाव बाद गठबंधन के चुने हुए सांसद ही लेंगे. हालांकि सोनिया गांधी ने कुछ दिनों पहले खरगे के नाम पर अपनी मुहर लगाने का संकेत दिया था.
29 नवंबर, 2023 को नई दिल्ली में खरगे के जीवन पर लिखी गई एक किताब के विमोचन के कार्यक्रम में गांधी ने खरगे की सराहना में एक लंबा भाषण दिया. भाषण के अंत में उन्होंने कहा, "हमारे विश्वासपात्र और एक मजबूत संगठनात्मक नेता के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे भारत की आत्मा के लिए इस ऐतिहासिक लड़ाई में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने में सबसे उपयुक्त हैं."
सीटों का सवाल
गठबंधन में शायद प्रधानमंत्री पद के दावेदार से भी ज्यादा बड़ा सवाल सीटों के बंटवारे का है, लेकिन इस मोर्चे पर 'इंडिया' की बैठक में कोई फैसला नहीं हो पाया. खरगे ने पत्रकारों को बताया कि तय यही हुआ कि पहले राज्य स्तर पर पार्टियों के नेता मिल बैठ कर समझौता करेंगे.
जहां राज्य स्तर पर फैसला नहीं हो पाएगा वहां गठबंधन के केंद्रीय नेता हस्तक्षेप करेंगे. इसके अलावा खरगे ने संकेत दिया कि जिन राज्यों में एक पार्टी का वर्चस्व है वहां उसी पार्टी को प्राथमिकता दी जाएगी. उन्होंने इन राज्यों में तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और बिहार का उदाहरण दिया.
इनमें से दो राज्यों में कांग्रेस के पास बहुमत है और दो में वो सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है. उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब के बारे में खरगे ने कहा, "वो समस्या को भी किस ढंग से सुलझाना, ये भी बात बाद में तय हो जाएगी."
हालांकि इस मोर्चे पर अपनी गंभीरता का संकेत देते हुए कांग्रेस ने बैठक के पहले एक विशेष समिति का गठन किया. इसे "राष्ट्रीय गठबंधन समिति" का नाम दिया गया है और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, मुकुल वासनिक, सलमान खुर्शीद और मोहन प्रकाश को इसका सदस्य बनाया गया है.
लेकिन नेतृत्व और सीटों के बंटवारे के अलावा कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के आगे बड़ी चुनौती उन मुद्दों को पहचानने की है जिन्हें लेकर वे जनता के सामने वोट मांगने जाएंगे. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश चुनावों में बीजेपी की जीत ने दिखाया है कि विपक्ष के सामने चुनौती काफी बड़ी है.
ऐसे में जानकारों का मानना है कि विपक्ष अभी भी इस सवाल से जूझ ही रहा है कि किन विचारों को आगे रख कर चुनाव लड़ा जाए, जिन पर जनता चिंतिति हो और विपक्ष की तरफ रूचि से देख सके.
फिलहाल 'इंडिया" गठबंधन ने तय किया है कि आने वाले दिनों में और भी बैठकें और रैलियां आयोजित की जाएंगे. देखना होगा कि इनमें विपक्ष की कोई मुकम्मल नीति की रूपरेखा उभरती है या नहीं.