पाकिस्तान के आम चुनाव को कैसे देखता है भारत
७ फ़रवरी २०२४24.15 करोड़ की आबादी वाले देश पाकिस्तान दशकों से महंगाई और एक ऐसी अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है जो एक कठिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) बेलआउट प्रोग्राम के कारण चरमरा गई है.
पाकिस्तान में इस्लामी आतंकवाद बढ़ रहा है और उसके तीन पड़ोसियों - भारत, अफगानिस्तान और ईरान के साथ संबंध खराब हो गए हैं, लेकिन ये मामले ज्यादातर चुनाव मैदान से गायब हैं, जिसमें इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) पार्टियां मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं.
जेल में बंद इमरान खान के लाखों समर्थक उनके और उनकी पार्टी पर सैन्य समर्थित कार्रवाई के बावजूद उनके पीछे खड़े होना चाह रहे हैं. पाकिस्तान में सेना के पास बहुत अधिक शक्ति है लेकिन उसका कहना है कि वह राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करती है. विश्लेषकों का कहना है कि 2018 में पिछले चुनाव में इमरान खान को प्राथमिकता देने के बाद इस बार शरीफ को जनरलों का समर्थन मिल रहा है.
भारत की दिलचस्पी कितनी
भारत और पाकिस्तान लोकतांत्रिक देश हैं और दोनों में संसदीय शासन प्रणाली है, लेकिन भारत सरकार ने अभी तक पाकिस्तान के चुनावों के संबंध में कोई बयान नहीं दिया है. भारतीय मीडिया में पाकिस्तान के आम चुनाव की चर्चा तो है लेकिन आम जनता में इस विषय पर कम ही रुचि दिखाई दे रही.
हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी, उनके मुकदमे और सजा के संबंध में खबरें अक्सर छपती हैं और लोग उन्हें पढ़ते भी हैं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि वे कभी पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके हैं और भारतीय क्रिकेट के मामले में पीछे नहीं रहते.
लेकिन भारत के विश्लेषकों की इस चुनाव पर नजर है और वे सभी घटनाक्रमों को बेहद करीब से देख रहे हैं.
पाकिस्तान में जो भी दल सरकार बनाता है तो उसे पड़ोसी देश भारत से रिश्ते के बारे में भी सोचना पड़ेगा, ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों देशों के बीच रिश्ते वर्षों से ठंडे पड़े हुए हैं. ऐसे में इस चुनाव में इस बात पर नजर है कि पाकिस्तान की नई सरकार आने पर ये रिश्ते और खराब होंगे या इनमें सुधार होगा.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा पाकिस्तान में चुनाव को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहते हैं, "अब पाकिस्तान में चुनाव नहीं बल्कि 'सेलेक्शन' होता है."
डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में उन्होंने इमरान खान की पार्टी पर लगाए गए अनौपचारिक प्रतिबंधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह धारणा आम हो गई है कि "पहले मतदान में धांधली हुई है, क्योंकि सबसे लोकप्रिय पार्टी को लगभग चुनाव से बाहर कर दिया गया है."
क्यों सवालों में पाकिस्तान का लोकतंत्र
विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार कलोल भट्टाचार्य कहते हैं, "चुनाव पाकिस्तान के लोकतंत्र की दिशा तय करेंगे कि वह किस दिशा में जा रहा है." उनका कहना है कि पाकिस्तान में संसदीय शासन प्रणाली है, लेकिन 1947 के बाद से "वेस्टमिंस्टर प्रणाली लागू नहीं की गई है."
डीडब्ल्यू से खास बातचीत में कलोल ने कहा कि इमरान खान के शासन में पहली बार स्पष्ट संकेत मिला कि "वह संसदीय सर्वोच्चता की ओर बढ़ रहे हैं." उन्होंने कहा, "इस चुनाव में अब तक सब कुछ सेना के हाथ में नजर आ रहा है, तो इन चुनावों के बाद पता चलेगा कि वहां किस तरह का लोकतंत्र है?"
उन्होंने कहा कि ईरान जैसे देश भी लोकतांत्रिक देश होने का दावा करते हैं, लेकिन अगर आपके यहां संसदीय शासन प्रणाली है तो "संसदीय प्रणाली की सर्वोच्चता स्थापित होनी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री को सभी पर प्राथमिकता मिले."
कमर आगा कहते हैं कि ये चुनाव कितने साफ और पारदर्शी होंगे, ये तो मतदान पूरा होने पर ही पता चलेगा. उन्होंने कहा, "गठबंधन सरकार बनने की अधिक संभावना है, जिसमें धुर-दक्षिणपंथी और उदारवादी दोनों शामिल हो सकते हैं. नवाज शरीफ के 'पाप' माफ कर दिए गए हैं इसलिए वह इमरान खान की जगह ले सकते हैं. हालांकि, किसी भी स्थिति में सेना की भूमिका अहम रहेगी."
वहीं कलोल भट्टाचार्य का कहना है कि चुनाव के बाद पाकिस्तान जो दिशा लेगा, उसमें "देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश की बड़ी भूमिका होगी." उनके मुताबिक, "चुनाव के बाद पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के सामने कई मामले होंगे और इन मामलों में उनकी भूमिका काफी अहम होगी."
सुधरेंगे भारत-पाक रिश्ते?
कलोल भट्टाचार्य के मुताबिक आने वाला समय बताएगा कि इस्लामाबाद में सरकार बदलने के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्ते क्या रुख लेते हैं, क्योंकि अगले कुछ महीनों के भीतर भारत में चुनाव होने वाले हैं.
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर काफी आशावादी नजर आते हैं. उनके मुताबिक नई दिल्ली और इस्लामाबाद के राजनीतिक हलकों में ऐसी उम्मीद है कि नवाज शरीफ दोबारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने जा सकते हैं. डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "नवाज शरीफ और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने साबित कर दिया है कि वे एक साथ काम कर सकते हैं."
उनका कहना है कि इमरान खान के प्रधानमंत्री रहते हुए दोनों देशों के रिश्ते ठंडे थे, अब हो सकता कि यह बिल्कुल अलग हो. वह कहते हैं, "हालांकि, बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा कि भारत में इस राजनीतिक बदलाव को किस तरह से देखा जाता है, जब भारत भी संसदीय चुनावों की दहलीज पर है."
वह कहते हैं, "अगर मोदी सोचते हैं कि पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध उनकी पार्टी को चुनावी मदद कर सकते हैं, तो 8 फरवरी के चुनावों के बाद अच्छे नतीजों की उम्मीद करें."
कपूर कहते हैं, "मुझे लगता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्तों में बदलाव आ रहा है."
नवाज शरीफ ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भारत का नाम लिया है. वह भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए जाने जाते हैं और अगर वे इस बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हैं तो दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच ठप्प पड़ी बातचीत दोबारा पटरी पर लौट सकती है.