उत्तर प्रदेश में इस विधेयक की इतनी क्यों हो रही है चर्चा?
३१ जुलाई २०२४उत्तर प्रदेश विधानसभा के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन यानी सोमवार को संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2024' सदन के पटल पर रखा और अगले ही दिन मंगलवार को इसे विधानसभा ने पारित कर दिया.
इस विधेयक में तथ्यों को छिपा कर या डरा-धमका कर धर्म परिवर्तन कराने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और इसके लिए उम्र कैद का प्रावधान किया गया है. विधेयक में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन के लिए विदेश और किसी भी अवैध संस्था से फंड लेना भी अपराध के दायरे में माना जाएगा और इसमें भी सजा का प्रावधान बढ़ाया गया है.
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पहले किसी महिला को धोखा देकर और उसका धर्मांतरण कर उससे शादी करने के मामले में दोषी पाए जाने वाले के लिए अधिकतम 10 साल तक की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान था.
विधानसभा में मंगलवार को संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदस्यों से विधेयक को पारित कराने का अनुरोध किया. हालांकि विधेयक पारित हो गया लेकिन उससे पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कई सदस्यों ने इस विधेयक को सलेक्ट कमेटी को सौंपने का प्रस्ताव दिया. हालांकि सलेक्ट कमेटी को सौंपने के विरोध में सदस्यों की संख्या ज्यादा होने के कारण यह प्रस्ताव गिर गया.
आजीवन कारावास की सजा
इस संशोधित अधिनियम में छल-कपट या जबर्दस्ती कराए गए धर्मांतरण के मामलों में कानून को पहले से सख्त बनाते हुए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है. संशोधित विधेयक में किसी महिला को धोखे से फंसा कर उसका धर्मांतरण करने, उससे अवैध तरीके से विवाह करने और उसका उत्पीड़न करने के दोषियों को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है.
विधेयक के पक्ष में सरकार का तर्क है कि महिलाओं की गरिमा और सामाजिक स्थिति, महिला, एससी, एसटी आदि का अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए ऐसा महसूस किया गया है कि इसमें सजा के प्रावधानों को और सख्त बनाया जाए.
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विधेयक पर बहस के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को कहा था कि उनकी सरकार आने के बाद एंटी रोमियो स्क्वैड जैसे नियम बनाए गए थे और इससे मनचलों की समस्या से छुटकारा मिला है.वहीं विधेयक पेश करते हुए संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि इस बिल पर कोई विवाद नहीं है. इस बिल का मकसद उन लोगों को न्याय दिलाना है, जो अवैध तरीके से धर्म परिवर्तन के पीड़ित हैं.
फर्जी मामले बढ़ने की आशंका
भारत की राजनीति में बीते सालों में धर्म अहम होता गया है और इसके दुरुपयोग की बातें अकसर उठती हैं. इस विधेयक को लेकर कई तरह के सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं. राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडे ने इस कानून के दुरुपयोग को लेकर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा, "विधेयक में झूठी शिकायत करने पर भी सख्त कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए.”
माता प्रसाद पांडेय ने आशंका जताई कि इससे फर्जी मामले बढ़ेंगे. उन्होंने कानून में एक धारा जोड़ने का भी सुझाव दिया कि यदि ऐसे मामलों में अभियुक्त को निर्दोष साबित करके रिहा कर दिया जाता है तो झूठी प्राथमिकी दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज करने का प्रावधान होना चाहिए और पुलिसकर्मियों के लिए कम से कम एक साल की सजा का प्रावधान होना चाहिए ताकि ऐसे मामलों में झूठे मुकदमे दर्ज करने से बचा जा सके.
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विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि कोई भी व्यक्ति डरा-धमकाकर या जान माल की हानि की धमकी देकर धर्म परिवर्तन कराता है, तो इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में माना जाएगा. साथ ही अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन के इरादे से शादी करता है या नाबालिग लड़की या महिला की मानव तस्करी करता है, तो उसे 20 साल तक की सजा हो सकती है.
कोई भी कर सकता है शिकायत
इस संशोधन विधेयक में एक खास बात और भी है कि धर्म परिवर्तन की शिकायत सिर्फ पीड़ित या उसके परिवार के लोग ही नहीं बल्कि कोई भी व्यक्ति कर सकता है और किसी भी थाने में इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. इससे पहले वाले कानून में पीड़ित या उसके भाई या फिर माता-पिता ही शिकायत दर्ज करा सकते थे.
इस तरह की शिकायत होने पर ये गैर जमानती अपराध होगा और इसकी सुनवाई सेशन कोर्ट से नीचे की अदालत नहीं कर सकती है. इसके अलावा जमानत पर फैसला बिना अभियोजन को सुने नहीं दिया जा सकता है.
विधेयक के मसौदे पर सवाल उठाते हुए विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल की नेता अराधना मिश्रा ‘मोना' ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि ये एक संवेदनशील मामला है और उन्होंने मांग की कि इस मामले में एक आयोग बनाया जाना चाहिए, जो इस बात की जांच करे कि शिकायत सही है या नहीं.
"संविधान के खिलाफ"
अराधना मिश्रा का कहना था, "हम ये मानते हैं कि जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर अपराध है. लेकिन सरकार को सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि हमेशा ये जबरन नहीं होता, कभी-कभी स्वेच्छा से भी होता है. यह राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दा है और इस पर उसी तरह सोचने की जरूरत है.”
वहीं समाजवादी पार्टी की विधायक डॉक्टर रागिनी सोनकर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिए जरूरी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है. उनका कहना था, "यह विधेयक पूरी तरह से संविधान के खिलाफ है क्योंकि दो युवा यदि अपनी मर्जी से शादी करते हैं, तो उसमें किसी को क्या दिक्कत है. दूसरे, यदि उनके मां-बाप और घरवाले तैयार हैं तो किसी तीसरे व्यक्ति की शिकायत का क्या औचित्य है.”
यह कानून सबसे पहले नवंबर 2020 में अध्यादेश के जरिए लाया गया था जिसे साल 2021 में कानून बनाया गया. तब यह तर्क दिया गया था कि राज्य में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं हो रही हैं जो लगातार बढ़ रही हैं, शादी के बहाने लोग अपनी पहचान छिपा कर, बहला-फुसला कर शादी कर रहे हैं, जिसकी वजह से यह कानून बनाना जरूरी हो गया है.