रग्बी में भी लगा ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों पर बैन
२१ जून २०२२रग्बी लीग के अधिकारियों ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मैचों में ट्रांसजेंडर रग्बी खिलाड़ी नहीं खेल पाएंगे. इस बीच अधिकारी सलाह और रिसर्च के जरिए 2023 तक एक नई नीति तय करने की कोशिश करेंगे.
रग्बी अधिकारियों ने कहा कि फैसला खेल और खिलाड़ियों के "कल्याण, कानूनी जोखिम और प्रतिष्ठा को जोखिम" को ध्यान में रख कर लिया गया. घोषणा का मतलब है कि नवंबर में इंग्लैंड में होने वाले महिला रग्बी लीग विश्व कप में ट्रांसजेंडर खिलाड़ी हिस्सा नहीं ले पाएंगे.
संघ ने एक बयान में कहा, "संघ अपने विश्वास की फिर से पुष्टि करता है कि रग्बी लीग खेल सबके लिए है और इसे सभी खेल सकते हैं." संघ ने आगे कहा कि लेकिन उसे हर खिलाड़ी के हिस्सा लेने के अधिकार और दूसरे खिलाड़ियों के संभावित जोखिम के बीच संतुलन बनाना है और "सुनिश्चित करना है कि सबको एक न्यायपूर्ण सुनवाई मिले."
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ट्रांस खिलाड़ियों का बढ़ता विरोध
संघ ने यह भी कहा कि वो महिला विश्व कप में भाग लेने आठ देशों के साथ मिल कर "2023 के लिए एक ट्रांस महिला समावेशी नीति" बनाएगा. एक ही दिन पहले तैराकी की अंतरराष्ट्रीय प्रबंधक संस्था ने ट्रांसजेंडर तैराकों को महिलाओं की रेसों से प्रतिबंधित कर दिया था और उन्हें एक नई "खुली श्रेणी" में रख दिया था.
विश्व ऐथलेटिक्स ने भी महिलाओं की प्रतियोगिताओं में ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के हिस्सा लेने के खिलाफ कड़ी नीतियां लाने का इशारा किया. विश्व ऐथलेटिक्स अध्यक्ष सेबास्टियन को ने कहा कि समावेशन से ज्यादा जरूरी न्याय है.
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने पिछले साल अलग अलग खेल संघों को अपने खेल के अनुसार नियम बनाने के लिए कहा था. इस विषय पर काफी तीखी बहस शुरू हो गई है जिसमें एक तरफ महिलाओं की तरह प्रतियोगिताओं में भाग लेने के ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के अधिकार के समर्थक हैं.
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व्यापक नीति की जरूरत
दूसरी तरफ वो लोग हैं जिनका कहना है कि महिलाओं की तरह प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को एक अनुचित शारीरिक फायदा बढ़त मिलती है. तैराकी संघ ने कानूनी, मेडिकल और खिलाड़ियों की समितियों से इस विषय की जांच कराई थी.
जांच के बाद संघ ने फैसला किया था कि पुरुष से महिला बने ट्रांस खिलाड़ी तभी महिलाओं की रेसों में हिस्सा ले सकते हैं अगर उन्हें पुरुषों की प्यूबर्टी का किसी भी तरफ से अनुभव ना हुआ हो.
संघ के अनुसार उसकी मेडिकल समिति ने पाया था कि प्यूबर्टी के दौरान पुरुषों को कुछ अंगों और हड्डियों का आकार बढ़ जाने जैसी बढ़त मिल जाती है जो लिंग बदलने के लिए कराई जाने वाली हॉर्मोन थेरेपी में जाती नहीं है.
सीके/एए (एएफपी)