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राजनीतिश्रीलंका

लकड़ी के चूल्हों की ओर लौट रहे हैं श्रीलंका के लोग

७ जुलाई २०२२

श्रीलंका में लोग लकड़ी के चूल्हों की ओर लौट रहे हैं. गैस मिल नहीं रही, बिजली आ नहीं रही और लकड़ी जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इससे लकड़हारे चांदी कूट रहे हैं.

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Sri Lanka | Sri Lanker kehren zum Kochen mit Brennholz zurück, da die Wirtschaft brennt
तस्वीर: Ishara S. KODIKARA/AFP

कुछ समय पहले तक कमोबेश धनी गिने जाने वाले श्रीलंका में हालत ऐसी हो गई है कि लोग चूल्हे पर खाना पकाने की ओर लौट रहे हैं. देश में दवा से लेकर गैस तक हर चीज की किल्लत है और ईंधन की कमी के कारण लोग लकड़ी जलाकर खाना पका रहे हैं.

गैस से लकड़ी की ओर यह बदलाव तब शुरू हुआ जब इस साल की शुरुआत में एक हजार से ज्यादा रसोइयों में धमाकों की खबरें आईं. इन धमाकों में कम कम से सात लोग मारे गए और सौ से ज्यादा घायल हो गए. इन विस्फोटों की वजह यह थी कि सप्लायर अपना खर्च कम करने के लिए प्रोपेन की मात्रा बढ़ा रहे थे. इस कारण दबाव खतरनाक स्तर तक बढ़ गया और कई सिलेंडरों में विस्फोट हुआ.

हालांकि अब वजह धमाकों से ज्यादा बड़ी हो चुकी है. देश के करीब सवा दो करोड़ लोगों के लिए गैस या तो उपलब्ध ही नहीं है या फिर इतनी महंगी है कि वे खरीद ही नहीं सकते. कुछ लोगों ने मिट्टी के तेल का विकल्प अपनाया लेकिन सरकार के पास इतने डॉलर भी नहीं बचे हैं कि पेट्रोल, डीजल तो छोड़ो मिट्टी का तेल भी आयात कर सके. लिहाजा, मिट्टी के तेल का विकल्प भी ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा है.

लकड़ी के चूल्हे पर पक रहा खाान
लकड़ी के चूल्हे पर पक रहा खाानतस्वीर: Ishara S. KODIKARA/AFP

जिन लोगों ने इलेक्ट्रिक कुकर खरीदे, उन्हें तो झटका बिजली से भी ज्यादा जोर का लगा. सरकार के पास डॉलर नहीं हैं, इसलिए जेनरेटर चलाने के लिए डीजल नहीं है. नतीजतन, सरकार ने लंबे-लंबे ब्लैकआउट लागू कर दिए जिनसे बिजली से चलने वाले कुकर बेकार हो गए.

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41 साल की नीलूका हापुआरच्छी उन लोगों में से एक हैं जिनकी रसोई में गैस सिलेंडर फट गया था. नीलूका भाग्यशाली रहीं कि पिछले साल अगस्त में खाना खाने के ठीक बाद हुए इस विस्फोट में उन्हें कोई चोट नहीं आई. वह बताती हैं, "खुशकिस्मती से उस वक्त वहां कोई नहीं था. हर जगह कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे. शीशे के टॉप वाला स्टोव फटकर चकनाचूर हो गया था. अब मैं कभी गैस इस्तेमाल नहीं करूंगी. अब हम बस लकड़ी प्रयोग कर रहे हैं."

सड़क किनारे एक ढाबा चलाने वाले 67 साल की एमजी करुणावती भी गैस छोड़कर लकड़ी प्रयोग कर रही हैं. वह कहती हैं कि दो ही रास्ते बचे थे, काम ही बंद कर दूं या फिर धुएं को झेलूं. करुणावती बताती हैं, "जब लकड़ी पर खाना बनाते हैं तो (धुएं से) तकलीफ तो होती है पर और चारा क्या है. जलावन खोजना कौन सा आसान है. यह भी अब बहुत महंगा होता जा रहा है."

लकड़हारों की चांदी

यह संकट आने से पहले कोलंबो में लगभग हर घर में गैस चूल्हा प्रयोग होता था. अब उसी कोलंबो में रहने वाले लकड़हारे बढ़िया कमाई कर रहे हैं.

60 वर्षीय सेलिया राजा बताते हैं, "पहले हमारा बस एक ग्राहक था, एक रेस्तरां जिसके पास लकड़ी से चलने वाला अवन है. अब हमारे इतने ग्राहक हैं कि मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं." राजा कहते हैं कि उनके टिंबर सप्लायरों ने लकड़ी के दाम दोगुने कर दिए हैं क्योंकि एक तो मांग बढ़ गई है और परिवहन का खर्च भी आसमान छू रहा है.

चाय और रबर की खेती करने वाले दक्षिणी श्रीलंका के नेहिना गांव में लकड़ी काटने का काम करने वाले संपत तुषारा कहते हैं, "पहले जमीन के मालिक हमें पुराने पड़ चुके रबर के पेड़ उखाड़ने के लिए पैसे दिया करते थे. अब हम उन्हें इन पेड़ों के लिए पैसे देते हैं."

क्या श्रीलंका जैसे संकट की तरफ बढ़ रहा है बांग्लादेश?

श्रीलंका एक मध्यम-आय वर्गीय देश हुआ करता था. उसकी जीडीपी फिलीपींस के बराबर थी और लोगों का जीवन-स्तर पड़ोसी देश भारत जैसा था. लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद खराब हुई आर्थिक स्थिति ने देश को भयानक वित्तीय संकट में धकेल दिया. हालांकि इसके लिए बहुत से लोग सरकार के खराब प्रबंधन को भी जिम्मेदार मानते हैं. अब हालत यह है कि सरकार पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर है.

प्रधानमंत्री खुद कह रहे हैं कि अभी मुश्किलें कुछ और समय तक जारी रहेंगी. इसी हफ्ते संसद में दिए एक बयान में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा, "हमें 2023 में भी मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी. यही सच्चाई है. यही वास्तविकता है." देश में मुद्रास्फीति की अनाधिकारिक दर अब जिम्बाब्वे से ही पीछे है और संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 80 प्रतिशत लोग एक वक्त का खाना नहीं खा पा रहे हैं क्योंकि वे उसका खर्च वहन नहीं कर सकते.

विकल्पों की मांग बढ़ी

लकड़ी के अलावा वैकल्पिक ईंधन की मांग भी बढ़ रही है. 51 साल के रियाद इस्माइल ने 2008 में तकनीकी रूप से उन्नत एक लकड़ी का चूल्हा बनाया था. उनकी खोज की मांग पिछले कुछ महीनों में तेजी से बढ़ी है. उन्होंने इस चूल्हे के साथ एक बैट्री लगा रखी है जिससे एक पंखा चलता है जो लकड़ियों को हवा देता रहता है. इस हवा से लकड़ी ज्यादा आंच से जलती है और कम खर्च होती है, वह कम धुआं देती है.

इस्माइल के पास ऐसे दो तरह के चूल्हे हैं. एक महंगा वाला जिसे एजस्टोव कहते हैं और कुछ सस्ता जिसे जनलीपा नाम दिया गया है. वह दावा करते हैं कि इससे कुकिंग गैस के मुकाबले 60 प्रतिशत बचत होती है. भारतीयों रुपयों में इन चूल्हों की कीमत लगभग 4,000 रुपये और 1,500 रुपये है. अब इन चूल्हों की इतनी मांग है कि लोग वेटिंग लिस्ट पर हैं.

इस्माइल कहते हैं, "यह इतना सफल रहा है कि अब कई नकल भी बाजार में आ गई हैं. आपको मेरे डिजाइन की कई नकल मिल जाएंगी."

वीके/एए (एएफपी)

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