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कानून और न्यायभारत

हाथरस कांड में साबित नहीं हुआ गैंगरेप

समीरात्मज मिश्र
२ मार्च २०२३

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में दो साल पहले एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या के मामले में स्थानीय अदालत ने तीन अभियुक्तों को बरी कर दिया है.

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हाथरस कांड के विरोध में दिल्ली में प्रदर्शन
तस्वीर: Amarjeet Kumar Singh/ZUMA Wire/Imago Images

स्थानीय अदालत ने एक अभियुक्त को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराते हुए उसे उम्र कैद की सजा सुनाई है. दोषी संदीप सिंह पर पचास हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. इस मामले में रेप का आरोप साबित नहीं हो सका है. मुख्य अभियुक्त संदीप सिंह को गैर इरादतन हत्या और एससी-एसटी एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया है. वहीं, पीड़ित पक्ष के वकील का कहना है कि वो कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करेंगे.

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वहीं अभियुक्तों के वकील मुन्ना सिंह पुंढीर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि शुरू से ही दिख रहा था कि गैंगरेप के कोई सबूत नहीं हैं और अदालत ने फैसला भी वही सुनाया है. उन्होंने कहा, "ऐसा कोई गवाह नहीं मिला, जिसके बयान से गैंगरेप की पुष्टि हो. इसमें साजिश थी और यह पूरा केस बनाया गया था जिसका अंत यही होना था. संदीप भी निर्दोष है, वो भी छूट जाएगा. इसके लिए हम लोग हाई कोर्ट जाएंगे.”

यह मामला उस वक्त काफी चर्चित रहा था, इसलिए पुलिस ने सुरक्षा के लिहाज से आज सुबह से ही कोर्ट में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए थे. यही नहीं, आस-पास के जिलों में भी सुरक्षा काफी बढ़ा दी गई थी.

हाथरस कांड के विरोध में भारत के कुछ शहरों में प्रदर्शन भी हुए
हाथरस कांड के विरोध में भारत के कुछ शहरों में प्रदर्शन भी हुएतस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture alliance

क्या हुआ था हाथरस में

14 सितंबर 2020 को हाथरस जिले के चंदपा गांव में एक दलित युवती के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया था. युवती के साथ कथित तौर पर गैंगरेप उस वक्त हुआ था जब वो गांव में ही अपने खेत में अपनी मां के साथ घास काटने गई थी. पीड़ित लड़की की जीभ भी काट दी गई थी.

पीड़ित लड़की की मां ने उस वक्त बताया था कि जब वो लड़की के पास पहुंची तो वह घायल थी और उसके कपड़े फटे हुए थे. बाद में लड़की की मां और बड़ा भाई उसे मोटरसाइकिल से चंदपा थाने लेकर गए थे और फिर उसे जिला अस्पताल ले जाया गया था लेकिन वहां से उसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया.

गैंगरेप का आरोप गांव के ही चार युवकों पर लगा था. लड़की ने अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में होश में आने के बाद बयान दिया था जिसके आधार पर उसके भाई ने गांव के ही संदीप ठाकुर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. बाद में तीन अन्य लोगों- लवकुश सिंह, रामू सिंह और रवि सिंह को भी अभियुक्त बनाया गया और चारों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था.

इस बीच, पीड़ित लड़की की हालत खराब होने पर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 29 सितंबर को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. लड़की का शव हाथरस लाया गया तो पुलिस वालों ने बिना परिजनों की अनुमति के ही उसी रात शव का अंतिम संस्कार कर दिया था. परिजनों ने आरोप लगाया था कि यूपी पुलिस ने उन्हें अपनी बेटी का मुंह तक नहीं देखने दिया.

Indien | Uttar Pradesh Polizei
उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई पर भी सवालतस्वीर: IANS

यूपी पुलिस पर आरोप

पुलिस के इस कृत्य और घटना की वीभत्सता की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे तो जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. मामला बढ़ने पर राज्य सरकार ने एसपी और सीओ समेत पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया था. कई मानवाधिकार संगठनों ने भी राज्य पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए. मामले की जांच पहले यूपी पुलिस और फिर एसआईटी ने की लेकिन बढ़ते आक्रोश और यूपी पुलिस की भूमिका को लेकर उठ रहे सवालों के बीच 11 अक्टूबर को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई.

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घटना के बाद भी पीड़ित परिवार को कई बार धमकियां मिलती रहीं जिसके कारण उन्हें सुरक्षा दी गई. पीड़ित परिवार घटना के बाद से ही हर वक्त सीआरपीएफ की सुरक्षा के साये में रहता है और जहां कहीं भी जाता है तो सुरक्षा के साथ ही जाता है.

सीबीआई ने इस मामले में 104 लोगों को गवाह बनाया. करीब तीन महीने की जांच के बाद सीबीआई ने 18 दिसंबर 2020 को चारों अभियुक्तों खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की. सीबीआई ने 22 सितंबर को मौत से पहले पीड़ित के आखिरी बयान को आधार बनाकर करीब दो हजार पेज की चार्चशीट दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि चारों अभियुक्तों ने हत्या करने से पहले पीड़ित से गैंगरेप किया था.

पीड़ित पक्ष के वकील महिपाल सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "कोर्ट ने गैंगरेप की बात को कैसे खारिज किया है, यह जजमेंट की कॉपी देखने के बाद ही पता चलेगा लेकिन हम इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करेंगे.”