बुरे बैक्टीरिया से लड़ने वाले 'अच्छे वायरस'
२८ जुलाई २०२३एंटीबायोटिक दवाओं के असर में आती कमी को देखते हुए वैज्ञानिक मानते हैं कि बैक्टीरिया का शिकार कर उन्हें खत्म करने वाले बैक्टीरियाफेज यानी जीवाणुभोजी वायरस, बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों का उपचार कर सकते हैं. यह वायरस हैं तो सूक्ष्म लेकिन इंसानों पर उनकी बहुत बड़ी मार पड़ी है. चेचक, जुकाम-नजला, एचआईवी और कोविड-19 जैसी वायरल बीमारियों के प्रकोप से अरबों लोग मार गए हैं और इन बीमारियों ने समूचे मानव इतिहास में समाजों के आकार में बुनियादी बदलाव किए हैं. हालांकि सभी वायरस जानलेवा नहीं होते. बैक्टीरिया की ही तरह कुछ "अच्छे" या "दोस्ताना" वायरस सेहत के लिए फायदेमंद भी हो सकते हैं.
वैज्ञानिक अब एक वायरोम की चर्चा करने लगे हैं. ये वे बिल्कुल ही अलहदा किस्म के वायरस हैं जो हमारे शरीरों में मौजूद होते हैं और स्वास्थ्य में योगदान देते हैं, बहुत कुछ माइक्रोबायोम बैक्टीरिया की मानिंद. ये वायरोम विशाल आकार का है. फिलहाल आपके शरीर पर या उसके भीतर 380 खरब वायरसों का निवास है– बैक्टीरिया की संख्या से 10 गुना ज्यादा तादाद में.
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ये वायरस हमारे फेफड़ों और खून में छिपे रहते हैं, त्वचा पर जीवित रहते हैं और हमारी आंतो के जीवाणुओं के भीतर पड़े रहते हैं. सारे के सारे वायरस बुरे नहीं. ऐसे भी वायरस होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करते हैं और ट्युमर को विखंडित करने में मदद करते हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो हमारी प्रतिरोध प्रणाली को प्रशिक्षित कर उन्हें रोगाणुओं से लड़ने में मदद करते हैं. और कुछ तो गर्भावस्था में जीन व्यवहार को भी नियंत्रित करते हैं.
बैक्टीरियाफेजः बैक्टीरिया निरोधी गश्ती दल
हमारे भीतर बड़े पैमाने पर मौजूद अधिकांश वायरस, बैक्टीरिया को हजम कर जाने वाले यानी बैक्टीरियाफेज होते हैं- यानी वह वायरस जो हमारे माइक्रोबायोम में बैक्टीरिया को खत्म कर देते हैं. बैक्टीरीअफेज को फेज भी कहा जाता है. वे मानव कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचाते क्योंकि उन्हें वह अपने शिकार के तौर पर नहीं पहचानते हैं. वह बैक्टीरिया को खोज कर उनका शिकार करते हैं, बैक्टीरिया की कोशिका की सतह से जुड़ जाते हैं. और उसके बाद उस कोशिका में अपनी डीएनए सामग्री पहुंचा देते हैं.
वायरल डीएनए फिर बैक्टीरिया के भीतर रेप्लीकेट करता है, कभी-कभार बैक्टीरिया का अपना डीएनए रेप्लीकेशन का साजो सामान अपने काम में ले आता है. एकबारगी बैक्टीरिया की कोशिका में पर्याप्त मात्रा में नये वायरस बन जाते हैं तो कोशिका फट जाती है और नये वायरल कण निकल जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में सिर्फ 30 मिनट लगते हैं. मतलब एक वायरस दो घंटो में बहुत सारे वायरसों में तब्दील हो सकता है.
फेज थेरेपीः एक संक्षिप्त इतिहास
बैक्टीरिया को चट कर जाने वायरसों की इसी क्षमता ने 20वीं सदी की शुरुआत में वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर किया कि क्या उनका इस्तेमाल बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों में किया जा सकता है. लेकिन जब पेनिसिलिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएं आ गईं तो वो रिसर्च भी पीछे छूट गई. लेकिन बैक्टीरिया के कई स्ट्रेन यानी स्वरूप एंटीबायोटिक निरोधी हैं और उनकी संख्या बढ़ने लगी है, जानकार कहते हैं कि वैश्विक समुदायों के सामने एंटीबायोटिक प्रतिरोध सबसे बड़ी मेडिकल चुनौतियों में से एक है.
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नतीजतन, अब वैज्ञानिक एंटीबायोटिक एजेंटों के नये रूपों की तलाश में जुट गए हैं. इसी सिलसिले में जीवाणुभोजी वायरस भी बैक्टीरिया जनित संक्रमणों से निपटने की लड़ाई के तहत उनकी सूची में लौट आए हैं. येना यूनिवर्सिटी अस्पताल में इन्स्टीट्यूट फॉर इंफेक्शियस मेडिसन एंड हॉस्पिटल हाइजीन के निदेशक माथियस प्लेत्स कहते हैं, "बैक्टीरिया खाने वाले वायरसों के लाभ, प्रत्येक बहु-प्रतिरोधी रोगाणु के खिलाफ उनकी प्रभाविता में निहित हैं."प्लेत्स ये भी बताते हं कि ये वायरस, बैक्टीरिया के सभी रूपों को खत्म करने के मामले में कतई अचूक होते हैं. इतनी सफाई से अपना काम करते हैं कि आंतों के माइक्रोबायोम को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाते, जैसा कि एंटीबायोटिक दवाएं कर डालती हैं. सैद्धांतिक तौर पर लगता यही है कि ये वायरस एंटीबैक्टीरियल प्रतिरोध के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक बड़ा भारी वरदान हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में साक्ष्य क्या कहते हैं?
बैक्टीरियाभोजी वायरस सोवियत दवा थी
ये वायरस हर जगह से इस्तेमाल से बाहर नहीं हो गए. सोवियत दौर के रूस में एंटीबायोटिक्स की कमी के चलते, इनका इस्तेमाल बैक्टीरिया जनित संक्रमणों के इलाज में होता था. जॉर्जिया, यूक्रेन और रूस में दशकों से ये इस्तेमाल जारी रहा. फेज टूरिज्म का हॉटस्पॉट है- जॉर्जिया. दुनिया भर से मरीज वहां इलाज के लिए जाते हं. उन्ही क्लिनिकों से मिले परिणामों के आधार पर ही कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि पारंपरिक बैक्टीरिया निरोधी एजेंटों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर चुके संक्रमणों से निपटने में इन वायरसों के योगदान के अच्छे सबूत मौजूद हैं.
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जॉर्जिया फेज थेरेपी के एक प्रमुख वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है. उसके पास उपचार के लिए दुनिया में बैक्टीरियाभोजी वायरसों के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है. लेकिन बेल्जियम और अमेरिका जैसे देश, विशेषीकृत थेरेपी केंद्रों में भी असाधारण मामलों के लिए फेजों का इस्तेमाल करने लगे हैं. जर्मनी भी फेज थेरेपियों में दिलचस्पी लेने लगा है. 18 जुलाई को प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में नीतिनिर्माताओं को ये सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया कि बैक्टीरिया खाने वाले वायरसों को बेहतर ढंग से खंगाला और इस्तेमाल में लाया जाए, न सिर्फ दवा के रूप में बल्कि खाद्यजनित संक्रमणों के खिलाफ और फसल सुरक्षा के उपाय के रूप में भी.
कितने कारगर होंगे बैक्टीरिया खाने वाले वायरस?
क्या ये वायरस एंटीबैक्टीरियल प्रतिरोध की समस्याओं का जवाब हो सकते हैं? शायद हां, जानकार कहते हैं. लेकिन वे इसके लिए भी आगाह करते हैं कि व्यापक रूप से अमल में लाने की मंजूरी देने से पहले जान लेना चाहिए कि फेज थेरेपियों के नुकसान भी हैं जिन पर ध्यान देना होगा. जर्मनी के कोलोन स्थित यूनिवर्सिटी अस्पताल में संक्रामक बीमारी के विशेषज्ञ गेर्ड फैटकेनह्युअर कहते हैं, "मुख्य समस्या ये है कि थेरेपी का कोई मानकीकरण तो है नहीं. फेज थेरेपी ठीक-ठीक उसी बैक्टीरिया के खिलाफ की जानी चाहिए जो मरीज को संक्रमित करता है."
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वो कहते हैं कि विभिन्न विशेषताओं वाले बैक्टीरिया से संक्रमण हो सकता है, तो थेरेपी के लिए आपको अलग अलग किस्म के फेजों का कॉकटेल चाहिए. इन वायरसों का ये मिश्रण, संक्रमण के बेकाबू होने से पहले ही, तत्काल रूप से उपलब्ध कराया जाना होगा क्योंकि बैक्टीरिया भी फेज थेरेपी के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं. लेकिन फेज थेरेपी की सुरक्षा को लेकर अच्छा रिकॉर्ड है. प्लेत्स कहते हैं कि इंसान अपने खाने के जरिए ऐसे अरबों वायरस रोजाना हजम कर जाते हैं. इसके कोई उल्लेखनीय नकारात्मक प्रभाव भी नहीं होते. इसका मतलब हमारा शरीर फेज थेरेपी को भी भली-भांति बर्दाश्त करने लायक होना चाहिए.
जर्मन शोध ने सिफारिश की है कि अगले कदम के रूप में व्यापक पैमाने पर शोध कराए जाने चाहिए और क्लिनिकल प्रोजेक्ट चलाए जाने चाहिए जिससे अलग अलग किस्म के संक्रमणों के लिए असरदार फेज थेरेपियां चिन्हित की जा सकें. अभी के लिए, बैक्टीरिया खाने वाले वायरस (बैक्टीरीअफेज) एंटीबायोटिक्स की जगह लेने से तो रहे. लेकिन वैज्ञानिक आशावादी हैं कि मिलाकर इस्तेमाल करने से एंटीबायोटिक्स को ज्यादा असरदार बनाने में वे काम आ सकते हैं, खासतौर पर बैक्टीरिया के प्रतिरोधी रूपों (स्ट्रेन्स) के खिलाफ.