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अतीत की यादों के बलबूते लंदन में जूझेगा भारत

११ जुलाई २०१२

ओलंपिक करीब आते ही हर हिंदुस्तानी का दिल पुराने दिनों की याद से छलनी हो जाता है जब भारतीय हॉकी टीम दुनिया में सिरमौर हुआ करती थी. सब के मन में एक ही सवाल है, अतीत की सुनहरी चमक पर किन गलतियों ने नाकामियों की कालिख भर दी.

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तस्वीर: Reuters

आठ बार सोने के पदक उठाने का गौरव भूलने वाली चीज नहीं. इसमें भी 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक से शुरू हुआ सिलसिला लगातार छह ओलंपिक तक चला. आज इस पुराने गौरव का ही दम है कि सरकार की तरफ से इतनी बेरुखी दिखाने के बाद भी भारत के कोने कोने में हॉकी जिंदा है. भारत ने हॉकी में कुल 11 मेडल जीते हैं. ओलंपिक में भारत को दूसरे खेलों से मिले कुल पदकों की संख्या भी इससे दो कम है. सोने का तो हाल यह है कि हॉकी को छोड़ दूसरे खेल में सोना बस पिछली बार ही अभिनव बिंद्रा की निशानेबाजी से मिला.

भारत ने हॉकी का आखिरी सोना 1980 में मास्को ओलंपिक में जीता था. तब इस खेल पर बहिष्कार की छाया थी. पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स जैसे देशों ने इसमें हिस्सा नहीं लिया था. यह एक असाधारण बात थी हालांकि यह सच भी किसी से छिपा नहीं है कि 1970 के दशक में हॉकी के मैदानों में कृत्रिम घास का चलन शुरू होने के बाद से ही भारत की स्थिति बिगड़ने लगी थी. प्राकृतिक घास पर जहां स्टिक और गेंद का गणित खेल की दिशा और दशा तय करता था, वहीं कृत्रिम घास पर खिलाड़ी की ताकत और ऊर्जा ये जिम्मेदारी निभाने लगे.

2008 के बीजिंग ओलंपिक से बाहर रहने के बाद लंदन के नीले गुलाबी मैदान पर भारत क्षेत्री के नेतृत्व में टीम उतरने तो जा रही है लेकिन कितनी कामयाबी मिलेगी यह कहना थोड़ा मुश्किल है. टीम को जिम्मेदारी का अहसास है और यह भी कि ओलंपिक में प्रदर्शन खेल की सेहत के लिए कितना जरूरी है. भारतीय टीम के पूर्व कप्तान वीरेन रसकिन्हा ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, "यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में हॉकी को ओलंपिक में प्रदर्शन के आधार पर आंका जाता है. अच्छा प्रदर्शन न सिर्फ खेल को बढ़ावा देगा बल्कि लाखों लोगों को खेलने के लिए प्रेरित भी करेगा."

हॉकी पर 14 किताब लिख चुके ए अरुमुगम भी इस बात से सहमति जताते हैं. अरुमुगम कहते हैं, "भारतीय हॉकी इसलिए बची हुई है क्योंकि गुजरे जमाने में हमने इसमें बहुत अच्छा किया है. ओलंपिक में अच्छा नतीजा देना जरूरी है क्योंकि इसने देश को बहुत सम्मान दिलाया है." हालांकि अरुमुगम को यह उम्मीद नहीं है कि टीम सेमीफाइनल तक पहुंच पाएगी. वह कहते हैं, "अगर वह शीर्ष की छह टीमों में भी रहते हैं तो अच्छा प्रदर्शन कहा जाएगा. सेमीफाइनल तक पहुंचने के लिए आपको अपने ग्रुप में शीर्ष की दो टीम में होना होगा जो हमारे ग्रुप की बाकी टीमों, नीदरलैंड्स, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और बेल्जियम को देखते हुए बहुत मुश्किल है." इसके साथ ही अरुमुगम ने कहा, "हमारे ग्रुप की दूसरी टीमें और उनके कोच बहुत पहले से निश्चित हैं जबकि हमारी टीम को महज एक साल पहले कोच मिला है जिससे मुश्किलें बढ़ी हैं."

2004  के एथेंस ओलंपिक में टीम के प्रमुख खिलाड़ी रहे रसकिन्हा अच्छे नतीजों की उम्मीद पर सावधान हैं लेकिन यह भी महसूस करते हैं कि अगर वो अच्छा खेले तो प्रदर्शन सुधार भी सकते हैं. रसकिन्हा ने कहा, "ओलंपिक में कभी कोई आसान ग्रुप नहीं होता. मुझे लगता है कि रक्षापंक्ति और शॉर्ट कॉर्नर अहम रोल अदा करेंगे. हमें ज्यादा से ज्यादा शॉर्ट कॉर्नर बना कर हमारे विश्व स्तर के दो ड्रैग फ्लिकर्स संदीप सिंह और वीआर रघुनाथ को गोल करने का मौका दे सकते हैं."

भारतीय टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै मानते हैं कि सबसे जरूरी है अच्छी शुरुआत करना. पिल्लै ने कहा, "मैंने चार ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया है और हर बार हम शुरुआत में ही हारे. भारतीय टीम को अगर सेमीफाइनल तक पहुंचने की उम्मीद बनाए रखनी है तो पहला मैच जीतना बहुत जरूरी है." भारत अपना पहला मैच 30 जुलाई को नीदरलैंड्स के खिलाफ खेलेगा.

एनआर/ओएसजे(एपी)

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