अनियोजित गर्भ से जूझती दुनिया की औरतें
२ अप्रैल २०२२गर्भावस्था हमेशा योजना बनाकर नहीं आती. कई महिलाओं के लिए ये इसलिए मुसीबत बन जाती है क्योंकि गर्भनिरोध के उपायों तक उनकी पहुंच नहीं होती. कई महिलाओं को मुसीबत उठानी पड़ जाती है क्योंकि उनके गर्भनिरोध उपाय नाकाम रह जाते हैं. और कई ऐसी हैं जिनके पास कोई विकल्प ही नहीं होता है.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल, दुनिया भर में गर्भावस्था के 12 करोड़ से कुछ अधिक मामले अनियोजित होते हैं.रिपोर्ट में कई अन्य चीजों के अलावा यौन और प्रजनन से जुड़े स्वास्थ्य रुझानों का अध्ययन भी किया गया है.
यूएनएफपीए की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने डीडब्लू को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि, "ये संकट हमारे चारों तरफ है. लेकिन दिखता नहीं है. इसकी पहचान नहीं हो पाती है और औरतों और ये लड़कियों को प्राथमिकता देने और उनके बुनियादी मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने में वैश्विक नाकामी का हिस्सा है.”
असुरक्षित गर्भपात का खतरा
अनियोजित गर्भावस्था के 60 प्रतिशत से ज्यादा मामलों का अंत गर्भपात में होता है. शेष मामलों में पूरी अवधि तक गर्भ धारण किया जाता है.
अमीर देशों में गर्भपात कानूनी है और वहां औरतों के लिए गर्भपात के तरीके आमतौर पर सुरक्षित होते हैं. हालांकि करीब आधे, यूएन रिपोर्ट के मुताबिक 45 फीसदी मामले, असुरक्षित गर्भपात के होते हैं.
इन असुरक्षित गर्भपातों से दुनिया भर में मांओं की मौत के 13 फीसदी मामले होते है.
विकसित देशों में, 1990 के दशक के बाद से अनचाहे गर्भ के मामलों में नाटकीय गिरावट देखी गई है. रिपोर्ट के मुताबिक इसकी एक वजह ये है कि इन देशों में गर्भनिरोधकों और यौन शिक्षा की उपलब्धतता बढ़ी है.
लेकिन सब सहारा के अफ्रीकी देशों में ऐसा नहीं है. वहां अनिच्छित गर्भ के मामलों में सिर्फ 12 फीसदी की गिरावट आई है.अगर वैश्विक जनसंख्या वृद्धि को मद्देनजर रखें तो रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में अनिच्छित और अनियोजित गर्भावस्था झेल रही औरतों की संख्या में 13 फीसदी की वास्तविक बढ़ोत्तरी हो चुकी है.
अनिच्छा से यानी ना चाहकर भी गर्भवती हो जाने से औरतें खुद को हारा हुआ महसूस करती हैं. वे नहीं जानती कि कैसा महसूस करें या क्या करें. संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के मुताबिक वैसे तो कुछ मामलों में गर्भपात करा दिया जाता है और कुछ मामलों में गर्भावस्था का जश्न मनाया जाता है, लेकिन कई मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें दुविधा, संशय और अनिश्चितता देखी जाती है.
रिसर्च रिपोर्ट के लेखको के मुताबिक ये गर्भ पूरी तरह से अनचाहे ना हों लेकिन पूरी तरह से जानते बूझते भी नहीं होते हैं क्योंकि व्यक्ति के पास इस बात को पूरी तरह से समझने की संभावना नहीं होती है कि वे अपनी जिंदगी में क्या चाहते हैं- या ऐसे जीवन की कल्पना भी कर सकना उनके लिए कठिन होता है जिसमें प्रेग्नेंसी एक विकल्प की तरह होती है.
गर्भ निरोधः पहुंच से से भ्रांति तक
गर्भनिरोध के तरीके यूं मौजूद हैं लेकिन रिपोर्ट का कहना है कि कई औरतों को अपनी दैहिक स्वायत्तता के बुनियादी अधिकार से वंचित रखा जाता है. जैसे कि जरूरत पड़ने पर गर्भनिरोध को चुनने का उनका अधिकार. इसीलिए, रिपोर्ट के मुताबिक, इस समस्या को हल करने वाला कोई समाधान या अचूक दवा जैसी कोई सामग्री नहीं है.
कुछ महिलाएं जिन्हें गर्भनिरोध उपायों तक पहुंच हासिल है वे उनका इस्तेमाल करने से बचती हैं. इसकी कई वजहे हैं. कुछ समुदायों में औरतों को गर्भनिरोधक उपायों के इस्तेमाल से सामाजिक लांछन झेलना पड़ता है तो गर्भनिरोधकों को लेकर गलतफहमियां या भ्रांतियां भी बहुत हैं- जैसे माहवारी बंद होने से जरा पहले की अवधि यानी पेरीमीनोपोज अवस्था वाली महिलाएं सोचती हैं कि उन्हें गर्भनिरोध की जरूरत नहीं है.
बहुत सारी औरतें ऐसे पुरुषों के साथ रिश्ते में रहती हैं जो बच्चे चाहते हैं और अपने पार्टनरों को गर्भ निरोध के अधिकार से वंचित रखते हैं. इस वजह से ऐसी औरतें या तो छिपछिपाकर गर्भनिरोध उपाय अपनाती हैं या ना चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देती हैं.
रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि अधिकांश मामलों में खुद को गर्भवती होने से रोकने की जिम्मेदारी औरतों पर ही आती है. लेकिन इसका मतलब ये नही है कि उनके पास हमेशा कोई विकल्प होता है. रिपोर्ट सब सहारा अफ्रीका में 1990 के दशक के मध्य से 2000 के दशक के मध्य तक जमा किए गए डाटा के हवाले से बताती है औरतों से ज्यादा अधिकांश पुरुषों ने संतान की इच्छा जताई थी.
नतालिया कानेम ने डीडब्ल्यू को बताया कि "औरतों की चाहत और जरूरत के बरअक्स पुरुषों की मान्यता और आदर्श के बीच यह एक बेमेल संकेत है.” वो कहती हैं, "परिवार में मां ही होती है जो आमतौर पर निस्वार्थ होती है. वो भोजन की योजना बनाती है, खाना पकाती है, वही तय करती है कि स्कूल जाने के लिए किसे, कौनसे जूते चाहिए. अपने हर बच्चे पर कितना खर्च आएगा. ये सारा हिसाब मां ही रखती है.”
गर्भनिरोधक उयाप अगर मुकम्मल ढंग से अपना भी लिए जाएं तो वे तब भी नाकाम रह सकते हैं. गर्भनिरोध के लिए कंडोम का इस्तेमाल करने वाली हर सौ औरतों में से 13 को गर्भ ठहर ही जाता है और उन औरतो में भी, जो बड़े ही असरदार गर्भनिरोधक उपाय अपनाती हैं जैसे कि इंट्रायूटेरीन डिवाइस (आईयूडी), उनमें भी अवांछित गर्भ ठहर सकता है.
ब्रिटेन में गर्भपात कराने वाली संस्था, ब्रिटिश प्रेग्नेंसी एडवाइजरी सर्विस का हवाला भी रिपोर्ट में दिया गया है. इस सलाहकारी सेवा के मुताबिक 2016 में 60,000 औरतों में से आधा से ज्यादा जिन औरतों का उनके किसी एक सेंटर में उस साल गर्भपात कराया गया था, वे गर्भनिरोधक ले रही थीं.
दिनचर्या को उलटपलट देते हैं संकट के हालात
युद्ध, संघर्ष और दूसरे किस्म के संकट, समस्या को और विकट बना देते हैं.
नतालिया कानेम कहती हैं कि, "आप क्या करेंगी- ये फैसला करने के लिए अगर आपके पास 15 मिनट या आधा घंटे हो और आप किसी युद्ध के हालात में फंसी हों...एक तरफ बच्चों को संभालना, दरवाजे की ओर भागना, तो ऐसे वक्त में गर्भनिरोध या माहवारी की जरूरतों की बात दिमाग में आ ही नहीं सकती. कहने का मतलब ये है कि अगर आपके पास पासपोर्ट है, तो आप पहले जल्द से जल्द उसकी ओर झपटेंगी, आप ये सुनिश्चित करेंगी कि छोटे से पिट्ठु में जरूरत का सामान ठूंसो और निकलो.”
कानेम कहती हैं कि संघर्ष से भर इलाको और वैसे हालात से भागने वाली औरतों के सामने अनचाहे गर्भ का दबाव और बढ़ जाता है. बहुत सी औरतें गर्भनिरोध की मासिक आमद पर निर्भर होती हैं. जब वे विस्थापित होती हैं या उन्हें पलायन करना पड़ता है, तो उन्हें अपनी जरूरत के सामान से भी वंचित होना पड़ता है.
कानेम के मुताबिक, स्वास्थ्य सेवाओं को होने वाला नुकसान भी अनचाहे गर्भ का कारण बनता है.
मिसाल के लिए अफगानिस्तान में स्वास्थ्य सेवाओं में आए गतिरोध से 2025 के मध्य तक में अनचाहे गर्भधारण के करीब दस लाख अतिरिक्त मामले आने की आशंका जताई गई है.
शिक्षा की कमी से बेहाल गरीब समुदाय
रिपोर्ट के मुताबिक अनचाही गर्भावस्था किसी भी औरत को प्रभावित कर सकती है. उसकी वित्तीय या शैक्षिक पृष्ठभूमि चाहे कैसी भी हो. लेकिन उन देशो में ये ज्यादा हो सकती है जहां की औरतों के पास अपने देह पर आजादी नहीं है.
देश दर देश के लिहाज से देखें तो अफ्रीका में अनचाहे गर्भ की सबसे उच्च दर पाई गई है. 18 साल की कम उम्र की लड़कियों और अनब्याही औरतों में अनचाहे गर्भ के सबसे ज्यादा मामले पाए जाते हैं.
कानेम कहती हैं, "1990 के दशक में जबकि पूरी दुनिया में ओवरऑल दरों में गिरावट आई, लेकिन सब सहारा अफ्रीका में ये दर सबसे धीमी पाई गई थी. दैहिक स्वायत्तता के सूचकांक में अफ्रीकी इलाको के अंक सबसे कम थे.”
कानेम का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह है शिक्षा की कमी. और शिक्षा का संबंध गर्भनिरोधक उपायों तक पहुंच हासिल करने से है.
अगर औरतें नहीं जानती हैं कि उन्हें क्या चाहिए और उन्हें किस चीज की जरूरत है, वे उसे मांग सकती हैं. और जब यौन शिक्षा अफवाह की तरह फैलती है तो उसका गलत मान्यताओं और भ्रांतियों में उलझ जाना लाजिमी है.
कानेम कहती हैं, "जो तरीका आपके लिए सबसे सही है उसका चुनाव करने में समर्थ हो सकना, एक विकल्प है और हमने अफ्रीका में युवतियों के बीच गर्भनिरोध को लेकर खूब प्रचलित मिथकों और अफवाहों के बारे में सुना है.” कानेम इस बात पर जोर देती हैं कि गर्भनिरोध से भविष्य में प्रजनन क्षमता पर असर नहीं पड़ता है बल्कि औरतों को स्वास्थ्य सुरक्षा मिल जाती है.