अहसासों के रंग पर गूंजता संगीत
२७ जुलाई २०१३तबलची के तीन ताल का साथ दे रही है सितार वादक उस्ताद निशात खान की आवाज. उनका सितार राजकुमारी सुनीता के हर भाव के साथ अपने सुर भी बदल रहा है. सुनीता अपने प्यार से बिछड़ रही है और उस्ताद निशात खान का संयम भी अब उनका और साथ देने को तैयार नहीं, "लड़की के चेहरे के भाव तो देखो, थोड़ा प्रेम से बजाओ भाई!"
1929 की मूक फिल्म प्रपंच पाश हाल ही में जर्मन शहर श्टुटगार्ट में दिखाई गई तो नजारा ऐसा ही था. फिल्म के साथ सितार वादक उस्ताद निशात खान का संगीत भी था. फिल्म के साथ साथ सिंथेसाइजर और तबला बजा रहे थे उनके साथी. रिहर्सल के दौरान उनसे मुलाकात में पता चला कि वह श्टुटगार्ट के बाद लंदन के रॉयल एल्बर्ट हॉल में कंसर्ट देने जा रहे हैं.
जर्मनी में भारतीय फिल्म महोत्सव और मौसम को लेकर वे बेहद खुश थे, "मुझे यहां बहुत मजा आ रहा है. अस्सी के दशक में मैं यहां आया था. कुछ दिन रहा भी. मैं बर्लिन में था." भारतीय सिनेमा के 100 साल होने पर उस्ताद निशात को इस फिल्म में संगीत देने का काम सौंपा गया. नई दिल्ली के सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में सितार के साथ यह फिल्म पेश की गई थी और अब शु्टुटगार्ट के भारतीय फिल्म महोत्सव में उस्ताद भारत की ओर से खास पेशकश हैं.
बिना आवाज की फिल्म में संगीत को तो ऐसा होना होगा जिससे अदाकारों की सारी भावनाएं जाहिर हो जाएं. निशात ने कहा, "मुझे इसकी कहानी पसंद है, इस फिल्म को बहुत सुंदर तरीके से बनाया गया है. तो मैंने सोचा कि मेरे संगीत का आधार होगा मेरा दिल, मेरा दिल इस प्रेम कहानी को देखकर कैसा महसूस करता है. मुझे लगता है कि यह मेरी अपनी प्रेम कहानी है. सबकी जिंदगी में एक ऐसी कहानी होती है, एक लड़की होती है, हो सकता है कोई उसे आपसे लेकर चला जाए. हो सकता है आपने कोई गलती की हो क्योंकि आप बेवकूफ थे."
प्रपंच पाश की कहानी महाभारत पर आधारित है. इसमें राजकुमारी सुनीता की किस्मत चौसर के खेल से तय होगी. लेकिन राजकुमारी को राजा रंजीत से प्यार है. छल और कपट का इस्तेमाल कर राजा सोहन सुनीता को खेल में जीत लेता है. निशात कहते हैं, "मुझे इस कहानी का सफर पसंद है. मुझे कहानी सुनाने का यह तरीका पसंद है, मैं इन भावनाओं को महसूस करता हूं, इन्हें संगीत के जरिए बोलने की कोशिश करता हूं."
बातचीत के दौरान उस्ताद निशात खान के साथियों का रिहर्सल जारी है. लेकिन तबले के ताल और बांसुरी की आवाज में उनके जवाब खो जाते हैं. "चलिए हॉल से बाहर!" उस्ताद के आदेश बिलकुल साफ हैं. फिर बात होती है सितार और जैज म्यूजिक की, "मैं जैज संगीतकारों के साथ काम करता हूं. वैसे भारतीय संगीत से बहुत कुछ किया जा सकता है. दो जैज संगीतकारों के साथ बजाने में मेरी रचनात्मकता बाहर आती है."
पश्चिमी संगीत और भारतीय संगीत में काफी फर्क है और इस फर्क के साथ काम करना बड़ी चुनौती है. उस्ताद निशात खान अपने संगीत के बारे में सोचते हैं, उन्हें वह संगीत अच्छा लगता है जिसकी कोई अहमियत हो. यह आसान काम नहीं और उस्ताद के मानक भी बहुत ऊंचे हैं. "मैं नहीं मानता कि एक डिब्बे में कुछ इधर उधर से डालकर उसे बजाना संगीत है."
रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन
संपादनः निखिल रंजन