आंग सान सू ची आजाद
१३ नवम्बर २०१०हाथ हिलातीं और मुस्कुरातीं सू की दुबली पतली काया से लोकतंत्र की इतनी साफ आवाज बाहर निकलती है कि उसे हजारों लोगों की भीड़ के शोर में भी दूर खड़े होकर सुना जा सकता है. पर लोग आज इस आवाज को न सिर्फ सुनना बल्कि छूना चाहते थे. घर के बाहर खड़ी भीड़ अपने हक की इस आवाज को कांधे पर बिठा कर इतनी उंचाई तक ले जाना चाहती थी कि तानाशाही की आवाज उसे छू भी न सके. पर सू ची आज भी अपनी पहचान के मुताबिक उतनी ही शांत और गंभीर थीं. किसी ने उन पर फूल फेंके तो सू ची ने उसे उठाकर अपनी बालों में लगा लिया.
बाहर निकल कर उन्होंने अपने समर्थकों से कहा, "चुप रहने का एक वक्त होता है और बोलने का एक वक्त होता है. लोगों को मिलकर काम करना होगा, कभी हमारे मकसद पूरे हो सकेंगे."
समर्थकों का सैलाब सुबह से ही उनके घर की तरफ बढ़ रहा था. पुलिस ने भी भीड़ का मूड देख कर अपने बैरियर पहले ही हटा लिए. सैनिक शासन जुंटा ने उन्हें किनारे करने के लिए सारी तैयारियां कीं. चुनाव पहले ही करा लिए गए और दशकों तक उन्हें जेल में रखा गया पर लोगों के दिल से सू ची को निकालना जुंटा के बूते की बात नहीं. समर्थकों की भीड़ में मौजूद नाइंग नाइंग विन कहती हैं, "वह मुझे मेरी मां, मेरी बहन और मेरी दादी सब लगती हैं क्योंकि वह हमारे आजादी के नायक आंग सान की बेटी हैं और उनकी रगों में उनके पिता का खून दौड़ता है."
सैनिक शासन के विरोध का डर होने के बावजूद ज्यादातर समर्थकों ने ऐसी टीशर्ट पहन रखी थीं जिन पर आंग सान सू ची के समर्थन में नारे लिखे थे. जुंटा ने देश भर में 2200 से ज्यादा लोगों को राजनीतिक कैदी बनाकर जेल में डाल रखा है. पुलिस वाले छुप कर भीड़ की तस्वीरें और विडियो बना रहे थे.
म्यांमार की सबसे प्रमुख विद्रोही नेता आंग सान सू ची 2003 से ही अपने घर में नजरबंद थीं. पिछले साल उनकी सजा को तब बढ़ा दिया गया जब एक बिन बुलाया अमेरिकी नागरिक तैर कर उनके घर तक चला गया. पूरी दुनिया में दो दशकों तक सू ची को कैद में रखने की निंदा हुई लेकिन जुंटा के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.
पिछली बार सू ची को 2002 में रिहा किया गया था तब भी बड़ी संख्या में लोग उनके पास पहुंचे और यह साबित कर दिया कि सालों तक जेल में रखने के बाद भी सू ची की लोकप्रियता कम नहीं हुई है बल्कि बढ़ी ही है. ऐसा डर था कि जुंटा प्रमुख थान श्वे कहीं फिर सूची की कैद को आगे न बढ़ा दें. सू ची के वकील न्यान विन ने सलाह दी थी कि वह अपनी आजादी के लिए उन पर लगाई किसी शर्त को न मानें. इससे पहले एक बार उन्होंने सैनिक शासन से बचने के लिए यंगोन छोड़ने की कोशिश की थी.
लोकतंत्र समर्थक सूची की पार्टी दो दशक पहले हुए चुनाव में भारी बहुमत से जीती लेकिन सत्ता उनके हवाले नहीं की गई. इस बार के चुनावों का सू ची की पार्टी ने बहिष्कार किया.
सूची का संघर्ष उनके लिए निजी रूप से भी नुकसान देने वाला रहा. उनके पति की 1999 में मौत हो गई और कैंसर से जूझते पति ने आखिरी बार पत्नी से मिलना चाहा तो सैन्य सत्ता ने उन्हें वीजा देने से इंकार कर दिया. सूची ने पिछले एक दशक से अपने दो बेटों को नहीं देखा है और पोते से तो कभी मिली ही नहीं.
सूची की रिहाई को जानकार सैन्य सरकार की अंतरराष्ट्रीय विरोध को कम करने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं. 20 सालों में पहली बार पिछले रविवार को चुनाव हुए. इन चुनावों को ज्यादातर देशों ने मान्यता देने से इनकार कर दिया है. रिहा होने के बाद सूची क्या करेंगी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. सू ची के वकील ने बस इतना कहा है कि उन्होंने ट्विटर पर इंटरनेट के जरिए लोगों से जुड़ने के इच्छा जताई है. वह अब अपनी पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की तैयारी कर रही हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार