प्यार की भूख ने बनाया कुत्तों को पालतू!
२० फ़रवरी २०२०जानवरों में प्यार का अनुभव उनके लिए अभिशाप माना जाता था. उनका अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिक मानते थे कि ऐसा करना भावुकता को वैज्ञानिक सोच से परे हट कर देखने जैसा है. अब एक नई किताब की दलील है कि अगर बात कुत्तों की हो, तो उन्हें और इंसानों से उनके रिश्ते को समझने के लिए प्यार को जानना जरूरी है.
किताब के लेखक का मानना है कि इतिहास में इंसान और किसी दूसरे जीव के अब तक के सबसे गहरे संबंध को सिर्फ इसी के जरिए जाना जा सकता है. एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में केनाइन साइंस कोलैबोरेटरी के संस्थापक क्लाइव वायने ने इस बार में डॉग इज लवः वाय एंड हाओ योर डॉग लव्स यू" में इस पर विस्तार से चर्चा की है.
जानवरों के मनोवैज्ञानिक वायने ने 21वी सदी के शुरुआती सालों में कुत्तों पर अध्ययन शुरू किया. अपने सहकर्मियों की तरह वह भी यही मानते रहे कि कुत्तों की जटिल भावनाओं को इसके लिए जिम्मेदार मानना उन्हें इंसान जैसा समझने की भूल होगी. हालांकि बाद में कुछ ऐसे सबूत उनके सामने आए जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. वायने ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मेरा ख्याल है कि एक ऐसा वक्त आया जब अपने संदेहों पर संदेह जताना जरूरी हो गया."
कितने होशियार हैं कुत्ते
बीते दो दशकों में केनाइन साइंस यानि कुत्तों से जुड़ा विज्ञान काफी ज्यादा उभर कर सामने आया है. ज्यादातर रिसर्च रिपोर्टों में कुत्तों को काफी चतुर बताया गया है. कुछ रिसर्चरों ने तो उन्हें अतुलनीय रूप से बुद्धिमान माना है. हालांकि वायने ने इस पूरी अवधारणा को उलट दिया है. उनका कहना है कि कुत्ते इतने होशियार नहीं होते.
कबूतर 2डी तस्वीरों में अलग अलग तरह की तस्वीरों की पहचान कर सकते हैं, डॉल्फिन ने दिखाया है कि उन्हें व्याकरण समझ में आती है, मधुमक्खियां खाने के स्रोत के बारे में एक दूसरे को नाच कर बताती हैं और इनमें से कोई भी काम कुत्ते के वश का नहीं. यहां तक कि कुत्तों के पूर्वज कहे जाने वाले भेड़िये जिनके बारे में माना जाता है कि वो इंसानों में ज्याद दिलचस्पी नहीं रखते, उन्होंने भी यह क्षमता दिखाई है कि वो इंसानों के संकेत को पकड़ लेते हैं.
वायने का दावा एक बड़ा बदलाव है. उनका कहना है कि रिसर्च से पता चला है कि कुत्तों में "अत्यधिक सामुदायिक भावना" उन्हें दूसरे जीवों से अलग करती है.
मां और बच्चे जैसी भावना
सबसे बड़ी जानकारी जो सामने आई है वो ऑक्सिटोसिन से जुड़ी रिसर्च के कारण है. दिमाग में स्रावित होने वाला यह रसायन इंसानों के भावनात्मक संबंधों के लिए जिम्मेदार है. नई रिसर्च के मुताबिक यही रसायन कुत्तों और इंसानों के बीच विजातीय रिश्तों का भी कारण है.
जापान के आजाबू यूनिवर्सिटी में ताकेफुमी किकुसुई के नेतृत्व में हुई एक रिसर्च ने दिखाया है कि जब इंसान और कुत्ते एक दूसरे की आंखों में देखते हैं तो इस रसायन का स्तर काफी ऊंचा होता है. एक मां और उसके बच्चे में भी इसका स्तर इतना ही होता है.
जेनेटिक्स में यूसीएलए के जेनेटिसिस्ट ब्रिगेट फॉन होल्ट ने 2009 में एक चौंकाऊ खोज की थी. इस खोज के मुताबिक कुत्तों में भी इंसानों में विलियम्स सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार जीन का म्यूटेशन होता है. विलियम सिंड्रोम वो स्थिति है जिसमें आपकी बुद्धिमता सीमित होती है जबकि सामुदायिकता की भावना असाधारण रूप से बहुत ज्यादा होती है.
वायने लिखते हैं, "कुत्तों और विलियम्स सिंड्रोम वाले इंसानों में एक जरूरी चीज होती है करीबी रिश्ता बनाने की इच्छा, वो एक गर्मजोशी से भरा निजी रिश्ता चाहते हैं, प्यार करना और प्यार पाना चाहते हैं."
व्यवहारों पर नए परीक्षणों के जरिए कई तरह के संकेत हासिल किए जा सकते हैं. इनमें से कई की खोज तो खुद वायने ने की है और इन्हें घर में भी आसानी से आजमाया जा सकता है.
खाने से ज्यादा प्यार की भूख
एक परीक्षण में रिसर्चरों ने एक रस्सी से खींच कर कुत्ते के घर के मुख्य दरवाजे को खोला. उसके सामने खाना और उसके मालिक को बराबर दूरी पर रखा. परीक्षण के दौरान देखा गया कि कुत्ता पहले अपने मालिक के पास गया.
एमआरआई के नतीजों को न्यूरोसाइंस के जरिए परखा गया तो दिखा कि कुत्तों का दिमाग खाने से ज्यादा तारीफों का भूखा होता है. हालांकि भले ही कुत्तों में स्नेह पाने की प्रवृत्ति होती है लेकिन इसके असर में आने के लिए शुरुआती दिनों में इस भावना को पोषित करने की जरूरत पड़ती है.
ऐसा नहीं कि प्यार केवल इंसानों में होता है. ऑस्ट्रेलिया के एक द्वीप पर एक किसान ने कबूतरों के साथ कुछ पिल्लों को भी पाल रखा था. इन पिल्लों ने बड़े होने के बाद परिंदों की आवारा लोमड़ियों से रक्षा की. जानवरों के रिश्तों की यह कहानी 2015 में एक फिल्म का आधार भी बनी.
कुत्ता क्यों बना इंसानों का साथी
वायने के लिए अगला मोर्चा शायद जेनेटिक्स होगा. यह उस रहस्य पर से पर्दा उठा सकता है जिसकी वजह से करीब 14,000 साल पहले कुत्ते घरेलू बने.
वायने इस दिशा में कूड़े के ढेर वाले सिद्धांत की वकालत करते हैं. इस सिद्धांत के मुताबिक प्राचीन काल में कुत्ते इंसानों के कचरे डालने की जगह के आस पास जमा हुए और फिर धीरे धीरे इंसानों के साथ उनकी दोस्ती बढ़ने लगी जो आगे चल कर शिकार में मदद के कारण और मजबूत हुई.
एक दूसरा सिद्धांत भी है जो यह कहता है कि शिकारियों ने भेड़ियों के पिल्लों को पकड़ लिया था और फिर उन्हें ट्रेन किया. हालांकि वायने इसे पूरी तरह से खारिज करते हैं. उनका कहना है कि वयस्क भेड़ियों को देख इंसानों में क्रूरता और उग्रता का भाव आता है.
प्राचीन डीएनए की कड़ियां जोड़ने में मिली नई कामयाबी वैज्ञानिकों को यह पता लगाने की सुविधा देगी कि विलियम्स सिंड्रोम को नियंत्रित करने वाले जीन का म्यूटेशन कब हुआ. वायने का अनुमान है कि यह करीब 8-10 हजार साल पहले हुआ. यह आखिरी हिमयुग के अंत का समय था और तब तक इंसान नियमित रूप से कुत्तों के साथ शिकार करने लगा था.
विज्ञान में प्रगति के अलावा इन खोजों का कुत्तों की भलाई में इस्तेमाल इन्हें ज्यादा अहम बनाता है. इसका मतलब है कि क्रूर और दर्द देने वाले तरीकों से कुत्तों की ट्रेनिंग बंद की जानी चाहिए. वायने के मुताबिक कुत्ते बस इतना चाहते हैं कि आप उन्हें करने के तरीके सिखाएं. इसके लिए दयालु नेतृत्व और साकारात्मक पोषण की जरूरत है.
इसका एक मतलब यह भी है कि इन कुत्तों को लंबे समय तक तन्हाई में रखने की बजाय उनकी सामाजिक जरूरतों का ध्यान रखना जरूरी है. वायने ने कहा, "कुत्ते हमें इतना कुछ देते हैं और बदले में हमसे ज्यादा कुछ नहीं मांगते. उन्हें महंगे खिलौने और खाने की नहीं, हमारे साथ की जरूरत है."
एनआर/आईबी (एएफपी)
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