कश्मीर में बढ़ता मानव-पशु संघर्ष
२ दिसम्बर २०२०आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच सालों में वादी में जंगली जानवरों के हमले में 67 लोग मारे गए हैं और 940 लोग घायल हो गए हैं. इस मुसीबत के केंद्र में है हिमालय का काला भालू. विशेषज्ञों का कहना है कि मृतकों और घायलों में से 80 प्रतिशत लोगों की हालत के लिए जिम्मेदार काले भालू ही हैं.
अगस्त में, मंजूर अहमद दर जब अपने सब्जियों के खेत में काम कर रहे थे तब वहां एक काला भालू उन पर टूट पड़ा. हमले में उनके सर पर गहरी चोट आई और वो अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है. पिछले साल 50-वर्षीय खानाबदोश शौकत अहमद खताना ने श्रीनगर के बाहर ही हरवान इलाके में एक काले भालू के हमले से अपने छोटे भाई को बचाते बचाते अपनी जान गंवा दी थी. उनका भाई भी उस हमले में घायल हो गया था.
पहाड़ों और मैदानों के बीच बसे कश्मीर में जमीन के इस्तेमाल को लेकर काफी तेज बदलाव आए हैं. बड़े बड़े धान के खेतों को मुख्य रूप से सेब के बगीचों में बदल दिया गया है. दलदली जमीन और जंगलों के आस पास नए मोहल्ले बस गए हैं. वन-कटाई और जलवायु परिवर्तन ने परेशानियों को बढ़ा दिया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस वजह से वन्य पशु भोजन और आश्रय की तलाश में इंसानी इलाकों की तरफ आ रहे हैं, जिससे हमलों की संख्या काफी बढ़ गई है. कश्मीर के प्रमुख वाइल्ड लाइफ वार्डेन राशीद नक्श कहते हैं, "जानवरों ने भी इस बदलाव के साथ मेल बिठा लिया है. और दिलचस्प बात यह है कि उन्हें अब बगीचों में और जंगलों की तलहटी में उन स्थानों पर आसानी से भोजन और आश्रय मिल जाता है जहां लोगों ने बस्तियां बसा ली हैं."
नकश ने बताया कि पहले काले भालू सर्दियों में अमूमन सीतनिद्रा में चले जाते थे, लेकिन अब वो "गहरी, कड़ी सर्दियों में भी सक्रिय रहते हैं और पूरे साल शिकार की तलाश में घूमते रहते हैं." यह संघर्ष इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि जानवरों की तस्करी के लगभग रुक जाने से वन्य जीवों की आबादी भी बढ़ी है. तस्करी के रुकने का कारण वादी के तनाव ग्रस्त हालात और जंगल में भारतीय सेना के जवानों की मौजूदगी है.
सेना के शिविरों के किचन से फेंका गया खाना भी भालुओं के लिए भोजन का आसान स्त्रोत है. पहाड़ी इलाके में इन पशुओं ने अपने रहने के प्राकृतिक स्थान भी खो दिए हैं क्योंकि अब वहां हजारों किलोमीटर तक कंटीली तारें बिछी हुई हैं जिनके इर्द गिर्द हजारों सैनिक गश्त लगाते हैं.
सीके/एए (एपी)
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