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कश्मीर में सेना पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप

चारु कार्तिकेय
११ अगस्त २०२०

कश्मीर में भारतीय सेना के हाथों हाल में मारे गए तीन व्यक्तियों के आतंकवादी ना होने की संभावना से उस मुठभेड़ को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. दावा किया जा रहा है कि मृतक आतंकवादी नहीं बल्कि श्रमिक थे और मुठभेड़ फर्जी थी. 

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Indische Soldaten
तस्वीर: picture-alliance/AA/F. Khan

18 जुलाई को भारतीय सेना ने कहा था कि दक्षिणी कश्मीर के शोपियां में एक मुठभेड़ में तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया है. उसके अगले दिन सेक्टर कमांडर ब्रिगेडियर अजय कटोच ने बताया था कि सेना को एक मुखबिर ने आम्शीपूरा गांव में 4-5 अज्ञात आतंकवादियों की उपस्थिति की खबर दी थी जिसके आधार पर सेना ने वहां कार्रवाई की, जिसमें वो तीन व्यक्ति मारे गए.

इस मुठभेड़ के करीब 20 दिन बाद रविवार नौ अगस्त को राजौरी जिले के तीन परिवारों ने जिला पुलिस से संपर्क किया और बताया कि तीनों परिवारों के युवक 16 जुलाई को काम के सिलसिले में कश्मीर गए थे, लेकिन 17 जुलाई के बाद से उनकी कोई खबर नहीं है. सोमवार 10 अगस्त को सोशल मीडिया पर जुलाई में हुई मुठभेड़ में मारे गए तीनों व्यक्तियों की तस्वीरें आईं और उन तस्वीरों को देख कर राजौरी के उन तीनों परिवारों ने पुष्टि की कि ये तीनों उनके ही लापता लड़कों की तस्वीरें हैं.

परिवारों ने लड़कों के नाम बताए मोहम्मद ईब्रार, उम्र 25 साल, इम्तियाज अहमद, 20 और ईब्रार अहमद, 16. परिवारों का कहना है कि उन्हें लगा था कि तीनों लड़कों को कश्मीर पहुंचने के बाद शायद कोविड-19 प्रबंधन के नियमों के अनुसार क्वारंटाइन कर दिया होगा, इसीलिए उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. अब उन्हें इस बात का यकीन हो गया है कि तीनों सेना के साथ मुठभेड़ में मारे गए. परिवारों ने मांग की है कि तीनों के शव उन्हें लौटा दिए जाएं और पूरे मामले की उच्च-स्तरीय जांच हो.

मामले को तूल पकड़ता देख सेना ने मुठभेड़ से संबंधित शिकायतों को संज्ञान में लिया है और कहा है कि मुठभेड़ की जांच की जा रही है. बताया जा रहा है कि दफनाए हुए शवों को निकाल कर उनकी डीएनए जांच करने की संभावना पर विचार किया जा रहा है. सेना ने अपने बयान में यह भी कहा कि मारे गए तीनों व्यक्तियों की पहचान नहीं हो पाई थी जिसके बाद उन्हें तयशुदा प्रोटोकॉल के तहत दफना दिया गया था.

कश्मीर में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पार्टियों ने इसे फर्जी मुठभेड़ कहा है और इसे घाटी में सेना को कुछ भी करने की खुली छूट का नतीजा बताया है. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की तरफ से उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने उनके ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा है कि हाल में सेना द्वारा की गई सभी मुठभेड़ों की जांच की जानी चाहिए.

अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता इमरोज परवेज ने डीडब्ल्यू को बताया कि इसके पहले भी कई बार जम्मू से आए श्रमिक फर्जी मुठभेड़ में मारे गए हैं और यह चलता रहेगा क्योंकि कश्मीर में सेना की कोई जवाबदेही नहीं है.

2010 में कुपवाड़ा जिले के मछिल सेक्टर में भी इसी तरह की घटना सामने आई थी जब सेना ने तीन व्यक्तियों को एक मुठभेड़ में मार गिराया था और दावा किया था कि वो तीनों पाकिस्तान से आए आतंकवादी थे. लेकिन चार साल बाद सेना की ही जांच में साबित हुआ कि तीनों निर्दोष कश्मीरी थे जिन्हें नकद इनाम के लिए सेना के अफसरों ने फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था.

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